काग़ज़ों में खो गई संवेदना।
आप ही कहिए -
करें तो क्या करें?
शब्द-मंथन भी हुआ है,
अर्थ-चिंतन भी हुआ है,
किंतु निर्वासित हुई है सर्जना।
आप ही कहिए -
करें तो क्या करें?
स्वस्ति आतंकों-घिरी है,
लेखनी की मति फिरी है,
विश्वव्यापी अर्थ की अभ्यर्थना।
आप ही कहिए -
करें तो क्या करें?
बादलों की छाँव-ख़ातिर,
राह से भटका मुसाफ़िर,
कुछ कहो तो है 'उभयनिष्ठी' तना।
आप ही कहिए -
करें तो क्या करें?
--
राजेंद्र वर्मा
ek achchhi rachna ka lekhan
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
इस नवगीत की ये पंक्तियाँ -' काग़ज़ों में खो गई संवेदना।
जवाब देंहटाएंआप ही कहिए -
करें तो क्या करें?'
ध्यान आकर्षित करती हैं।
काग़ज़ों में खो गई संवेदना।
जवाब देंहटाएंआप ही कहिए -
करें तो क्या करें?
गहन चिन्तन का विषय है
बहुत बहुत बधाई धन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़
किन्तु निर्वासित हुई है सृजना ,उम्दा गीत है,
जवाब देंहटाएं