जिसके कारण ख़त्म हो गए
ख़ुशियों के सब राज़!
कभी नहीं कर पाएँगे हम
इस हरक़त पर नाज़!
पैरों में पैंजनियाँ बाँधे,
सिर पर ओढ़े लाल चुनरिया!
ठुमक-ठुमककर, किलक-किलककर,
नाच रही थी नन्ही बिटिया!
सुध-बुध खोकर मम्मी-पापा,
उसे देखकर रीझ रहे थे!
सोच विदाई की बातों को,
मन ही मन में भीज रहे थे!
तभी वहाँ पर आई धम से
बारूदी आवाज़!
सिसक-सिसककर क्षण-भर में ही
बंद हुए सब साज़!
कभी नहीं कर पाएँगे ... ... .
थकी हुई थी, वह सोई थी,
मीठे सपनों में खोई थी!
दोनों ख़ुश हो बतियाते थे,
हनीमून को वे जाते थे!
मम्मी क्या लेकर आएँगी,
ख़ुश हो सोच रहे बच्चे सब!
जाग रही बहना आशा में,
भइया-भाभी पहुँचेंगे अब!
ताजमहल हो गई अचानक
ट्रेन, दफ़न मुमताज़!
तड़प-तड़पकर पल-भर में ही
बिखरे सब अंदाज़!
कभी नहीं कर पाएँगे ... ... .
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रावेंद्रकुमार रवि
सुध-बुध खोकर मम्मी-पापा,
जवाब देंहटाएंउसे देखकर रीझ रहे थे!
सोच विदाई की बातों को,
मन ही मन में भीज रहे थे!
ये पंक्तियाँ संवेदित कर गयीं।
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत अच्छी लगी आप की यह कविता
जवाब देंहटाएंउम्दा गीत है,पर आतंक कहाँ मिटता है।
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंI like this Poem very much. It is very touchable to my deep heart.
जवाब देंहटाएंBraj Kishor Mishra
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