भारत माँ का घर जर्जर है सब मिल पुनः बनाएँ
सेवा के कुछ फूलों में हम मन की महक मिलाएँ
बेघर करके बेचारों को
बीत रही बरसात
दबे पाँव जाड़ा आता है
करने उनपर घात
कम से कम हम एक ईंट इक वस्त्र उन्हें दे आएँ
हुए अधमरे अधनंगे जो उनके प्राण बचाएँ
मंदिर मस्जिद जो भी टूटा
टूटीं भारत माँ ही
चाहे जिसका सर फूटा हो
रोई तो ममता ही
मंदिर एक हाथ से दूजे से मस्जिद बनवाएँ
अब तक लहू बहाया हमने अब मिल स्वेद बहाएँ
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धर्मेंद्रकुमार सिंह सज्जन
वरिष्ठ अभियन्ता (जनपद निर्माण विभाग - मुख्य बाँध)
बरमाना, बिलासपुर
हिमाचल प्रदेश
भारत
भारत माँ का घर जर्जर है सब मिल पुनः बनाएँ
जवाब देंहटाएंसेवा के कुछ फूलों में हम मन की महक मिलाएँ
सुन्दर सन्देश देती कविता के लिये धर्मेन्द्र कुमार जी को बधाई।
मंदिर मस्जिद जो भी टूटा
जवाब देंहटाएंटूटीं भारत माँ ही
चाहे जिसका सर फूटा हो
रोई तो ममता ही
मंदिर एक हाथ से दूजे से मस्जिद बनवाएँ
अब तक लहू बहाया हमने अब मिल स्वेद बहाएँ
सज्जन जी साधुवाद। बहुत अच्छा लिखा है।
बेघर करके बेचारों को चली जाती बरसात
जवाब देंहटाएंदबे पांव जाड़ा आता है करने उन पर घात।
सुन्दर अभिव्यक्ति। बहुत बहुत बधाई।
मंदिर मस्जिद जो भी टूटा
जवाब देंहटाएंटूटीं भारत माँ ही
चाहे जिसका सर फूटा हो
रोई तो ममता ही
मंदिर एक हाथ से दूजे से मस्जिद बनवाएँ
अब तक लहू बहाया हमने अब मिल स्वेद बहाएँ
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धर्मेंद्रकुमार सिंह सज्जन जी हार्दिक बधाई।
uttam rachna. samyik kathya.
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