2 मार्च 2011

४. गाल गुलाबी हुए धूप के

इस मौसम में
आज दिखा है
पहला-पहला बौर आम का।

गाल गुलाबी
हुए धूप के
इन्द्रधनुष सा रंग शाम का।

साँस-साँस में
महक इतर सी
रंग-बिरंगे फूल खिल रहे,
हल्दी अक्षत के
दिन लौटे
पंडित से यजमान मिल रहे,
हर सीता के
मन दर्पण में
चित्र उभरने लगा राम का।

खुले-खुले
पंखों में पंछी
लौट रहे हैं आसमान से
जगे सुबह
रस्ते चौरस्ते
मंदिर की घंटी अजान से।
बर्फ पिघलने
लगी धूप से
लौट रहा फिर दिन हमाम का।

खुली-बन्द
ऑंखों में आते
सतरंगी सपने अबीर के।
द्वार-द्वार गा रहा
जोगिया मौसम
पद फगुआ कबीर के
रूक-रूक कर चल रहा बटोही
इंतजार है किस मुकाम का

--जयकृष्ण राय तुषार

14 टिप्‍पणियां:

  1. फागुन के मौसम का आकर्षक चित्रण करनेवाला गीत। लगभग हर पंक्ति सराहनीय है और शब्दों को चुन चुन कर सही जगह पर जड़ा गया लगता है। कोई भी सदस्य इसे पढ़कर फागुन के रंग में डूबने से बचेगा नहीं।

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  2. एक बार फिर से प्रस्तुति देने वाले का नाम गायब| फिर भी दिलचस्प नवगीत है ये| भाषा चिर परिचित सी लग रही है, बातें सीधी दिल से निकली हुईं और खास कर 'हमाम' शब्द प्रयोग इस नवगीत को और भी प्रासंगिक बना रहा है|

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  3. जय भाई का यह गीत न केवल बसंत का सचित्र चित्रण कर रहा है, बल्कि आदमी के राग-अनुराग, वर्तमान व्यवस्था को भी व्यंजित कर रहा है. पूर्णिमाजी आपके पारखी व्यक्तित्व एवं जय भाई की कवताई - दोनों को नमन करता हूँ. -अवनीश सिंह चौहान

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  4. sunder geet hai .panchhi ,mandir ki ghanti azan sab kuchh sunder haiu
    badhai

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  5. सहज भाषा शैली में
    आकर्षक सुंदर नवगीत के लियें
    तुषार जी को बधाई...

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  6. पूर्णिमा जी और नवीन जी से पूरी तरह सहमत। रचनाकार को बधाई।

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  7. आदरणीया पूर्णिमा जी और आप सभी सहृदय पाठकों /ब्लोगरों का आभार आप सब को यह गीत अच्छा लगा |

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  8. इस नवगीत में मन्दिर की घण्टी और अजान से रस्ते -चौरस्ते के जगने का सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत किया गया है । शब्दद चयन में बहुत सावधानी बरती गई है फिर भी नवगीत सायास नहीं, वरन,सहज लगता है ।

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  9. 'हर सीता के मन-दर्पण में / चित्र उभरने लगा राम का' और 'द्वार-द्वार गा रहा / जोगिया मौसम / पद फगुआ कबीर के' जैसी पंक्तियों ने इस गीत को अनूठा बना दिया है | भाई जयकृष्ण राय तुषार को मेरा हार्दिक साधुवाद | ऐसी ही रचनाएँ नवगीत पाठशाला को समृद्ध करती हैं | यह नवगीत वास्तव में पाठशाला की उपलब्धि है |
    कुमार रवीन्द्र

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  10. 'हर सीता के मन-दर्पण में / चित्र उभरने लगा राम का' और 'द्वार-द्वार गा रहा / जोगिया मौसम / पद फगुआ कबीर के' जैसी पंक्तियों ने इस गीत को अनूठा बना दिया है | भाई जयकृष्ण राय तुषार को मेरा हार्दिक साधुवाद | ऐसी ही रचनाएँ नवगीत पाठशाला को समृद्ध करती हैं | यह नवगीत वास्तव में पाठशाला की उपलब्धि है |
    कुमार रवीन्द्र

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  11. एक और नया सदस्य ! एक और नए सदस्य का बढ़िया गीत। यह देखकर प्रसन्नता हुई कि अच्छा लिखने वाले इसे अपना घर समझ रहे हैं और यहाँ जुड़ने लगे हैं। आपका भी अभिनंदन और स्वागत तुषार जी, आशा है आगे भी यहाँ आपकी रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।

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  12. जय कृष्ण राय जी एक सिद्धहस्त नवगीतकार हैं, और इस नवगीत की हर पंक्ति से उनकी नवगीत पर पकड़ दिखाई पड़ रही है, इसके लिए उन्हें हार्दिक बधाई

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  13. शब्द शब्द में झंकार भरा एक बेहद ही उम्दा और दिशानिर्देशक नवगीत हार्दिक आभार भाई जयकृष्ण राय तुषर जी।

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