
हवा बिछाती पीले पत्ते
रोज सुबह से शाम।
टेसू के फूलों में कोई मौसम फूट रहा
टीले पर रुमाल नाव में रीबन छूट रहा
बंद गली के सिर आया है
एक और इल्जाम।
क्या कहने हैं पढ़ने लायक सरसों के तेवर
भाभी खातिर कच्ची अमियाँ बीछ रहे देवर
नये -नये अध्याय खोलते
नए नए आयाम।
टूट रही है देह सुबह से उलझ रही आँखे
फिर बैठी मुंडेर पर मैना फुला रही पाँखे
मेरे आंगन महुआ फूला
मेरी नींद हराम।
--कैलाश गौतम
कैलाश गौतम जी से हमारा बड़ा करीबी रिश्ता रहा है |डॉ० धर्मवीर भारती जी ने इनके गीतों के प्रथम संकलन की भूमिका लिखी है |उनका गीत यहाँ देने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत ..स्वर्गीय कैलाश जी के इस गीत से रूबरू करवाने के लिए शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंकैलाश गौतम का यह गीत नवगीत को निश्चित ही एक नया आयाम प्रदान करता है | कैलाश जी के रचना-संसार से मैं भली प्रकार परिचित रहा हूँ | व्यक्तिगत रूप से भी उनसे जुडाव रहा | इस गीत के माध्यम से मैं एक बार फिर उनकी स्मृति से जुड़ सका | आभार |
जवाब देंहटाएंकुमार रवीन्द्र
बहुत ही सुंदर गीत है कैलाश जी, इसे प्रस्तुत करने के लिए पूर्णिमा जी का आभार।
जवाब देंहटाएंnaye bhav naye shabd bahut hi sunder
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
इस गीत के बहाने पाठशाला में कुमार रवींद्र जी की टिप्पणी देखना एक सुखद अनुभव है। आशा है पूर्णिमा जी कुमार रवींद्र जी का एक न एक होली / वसंत गीत यहाँ अवश्य प्रस्तुत करेंगी। कैलाश गौतम जी सिद्धहस्त नवगीतकार थे। उनके गीत की उपस्थित मन हरषा गई।
जवाब देंहटाएंगीत के साथ-साथ टिप्पणियाँ पढ़ना भी ज़रूरी होता है, इस पोस्ट ने साबित किया है| आदरणीय कैलाश जी के इस मनोहारी गीत को हम तक पहुँचाने के लिए पूर्णिमा जी का आभार|
जवाब देंहटाएंक्या बात है इस बार तो चुन चुन कर बेहतरीन गीत लाए जा रहे हैं। पीले पत्ते, टेसू, फूलों का मौसम, सरसों के तेवर, कच्ची अमियाँ और मुँडेर पर पाँखें फुलाती मैना क्या दृश्य उकेरा है... साक्षात फागुन उतर आया है। मज़ा आ गया कैलाश जी का यह सदाबहार नवगीत पढ़कर।
जवाब देंहटाएंसबको गीत पसंद आया हार्दिक आभार ! कुछ प्रसिद्ध गीत हर कार्यशाला में प्रकाशित करने का यत्न रहता है। यों तो अनुभूति में गीत-नवगीत का अलग स्तंभ है पर एक ही विषय के चुने हुए नवगीत यहाँ प्रकाशित करने से कई लाभ होते हैं। एक तो रचनाकारों के बीच विषय से संबंधित वातावरण निर्मित होता है, वरिष्ठ रचनाकारों से पहचान करने का अवसर मिलता है और अच्छा नवगीत कैसा होता है उसका पता भी चलता है। एक बार पुनः इस प्रयत्न को पसंद करने के लिये सबका आभार।
जवाब देंहटाएं-पूर्णिमा वर्मन
ऐसे गीतों को पढ़कर यदि अपने गीत या नवगीत पर प्रतिक्रिया करूं तो अभी वह वर्णमाला के स्तर पर दिखाई देता है। पूर्णिमा दीदी से मेरा नम्र निवेदन है कि प्रत्येक कार्यशाला की शुरूआत यदि ऐसे गीतों से करें तो हमारा सही मार्गदर्शन होगा । स्वर्गीय कैलाश गौतम को मेरा शातशत नमन और श्रद्धांजली।
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