
क्या कहे सुलेखा !
खनन माफ़िया
मिलकर लूटें
जल औ' जंगल
नित-नित टूटें
मेट रहे
कुदरत का लेखा !
बोली 'छविया'
धरा-दबोचा
नेता-मालिक
सबने नोंचा
समाचार
यह सबने देखा !
दुस्साहस-
क्रशरों का बढ़ता
चट्टानों से
चूना झड़ता
टूट रही
है जीवन रेखा !
अवनीश सिंह चौहान
(मुरादाबाद)
चौहान जी आपने इस नवगीत के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है |बधाई |
जवाब देंहटाएंइस रचना में देश की दुर्दशा को स्वर मिला है। छविया और सुलेखा के साथ प्रकृति पर मानव के अत्याचारों को आवाज देने के लिये अवनीश जी को बधाई !
जवाब देंहटाएंएक अच्छे नवगीत के लिये बधाई स्वीकारें अवनीश जी।
जवाब देंहटाएं-पूर्णिमा वर्मन
बहुत सटीक, संक्षिप्त और सुंदर नवगीत। अवनीश जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअवनीश भाई सुलेखा को केंद्र में रख कर आप ने राष्ट्रीय सरोकारों को बखूबी उकेरा है, आप के इस नवगीत को पढ़ कर लगता है कि साहित्य के, आई मीन अच्छे साहित्य के प्रेमी आज भी मौजूद हैं, बस ज़रूरत है एक उचित मंच की जो कि पूर्णिमा जी ने उपलब्ध करा ही दिया है| इस बार तो कई सारे दिग्गजों को भी पढ़ने का मौका मिला| आप के इस नवगीत के लिए आप को बहुत बहुत बधाई|
जवाब देंहटाएंसमस्या पूर्ति मंच पर आप का स्वागत है:- http://samasyapoorti.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
आपको पढ़ना अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत के लियें ...
बधाई अवनीश जी....
कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भाव को सुन्दर ढंग से संप्रेषित करने की कला में माहिर अवनीश जी को सादर नमन
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