![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnsir659GIKFZKGA4tGxMP2SBGg0WgwCcn8O_Feq2MKa7PZ26l43u6uqsSRpCC4AVqD6TO5npniSLURyXIymOg9p752ilonJEcOJga7dCd8qNn0lSuDE6EsgNzXKmxI7MbppbEuWjDCm0/s200/newspaper.jpg)
समाचार है
सोप-क्रीम से जवां दिख रही
दुष्प्रचार है
बिन खोले- अख़बार जान लो,
कुछ अच्छा, कुछ बुरा मान लो
फर्ज़ भुला, अधिकार माँगना-
यदि न मिले तो जिद्द ठान लो
मुख्य शीर्षक अनाचार है
और दूसरा दुराचार है
सफे-सफे पर कदाचार है-
बना हाशिया सदाचार है
पैठ घरों में टी. वी. दहके
मन निसार है
अब भी धूप खिल रही उज्जवल
श्यामल बादल, बरखा निर्मल
वनचर-नभचर करते क्रंदन-
रोते पर्वत, सिसके जंगल
घर-घर में फैला बजार है
अवगुन का गाहक हजार है
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है
मस्ती, मौज-मजे का वाहक
असरदार है
लाज-हया अब तलक लेश है
चुका नहीं सब, बहुत शेष है
मत निराश हो बढ़े चलो रे-
कोशिश अब करनी विशेष है
अलस्सुबह शीतल बयार है
खिलता मनहर हरसिंगार है
मन दर्पण की धूल हटायें-
चेहरे-चेहरे पर निखार है
एक साथ मिल मुष्टि बाँधकर
संकल्पित करना प्रहार है
-संजीव सलिल
(जबलपुर)
//घर-घर में फैला बजार है
जवाब देंहटाएंअवगुन का गाहक हजार है
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है//
बहुत सुन्दर नवगीत आचार्य सलिल जी ! मैं इसे बार बार गुनगुना रहा हूँ ! बधाई स्वीकार करें !
आपको पढ़ना जैसे एक पूरे अनुभव को बटोर लेना है
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा...
सुंदर समाचारों के साथ ....
भावपूर्ण सुंदर नवगीत के लियें . ...
आपको बधाई....
नमन...
आचार्य जी की कलम से निकला, जीवन के हर पहलू को छूता शानदार नवगीत। आचार्य जी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी रचना अच्छी लगी. बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
जवाब देंहटाएंशमा प्रभाकर सज्जन चिंतित
हावी सिंह पर क्यों सियार है?
हैं अगीत के चंद पक्षधर
'सलिल' गीत चाहक हजार है..
आचारी जी का नवगीत यानि सीखने के लिए एक खजाना| आप के नवगीतों में सदैव ही भांति भांति के शब्द प्रयोगों के साथ साथ सामाजिक विसंगतियों का सफल निरूपण भी रहता है| हम जैसे नए बच्चों के लिए आप कि रचनाएँ सदैव ही प्रारना स्रोत का काम करती हैं| नमन सलिल जी|
जवाब देंहटाएंघर-घर में फैला बजार है
जवाब देंहटाएंअवगुन का गाहक हजार है
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है
bahut sunder
ek ek pankti sunder hai
saader
rachana
सदा की तरह- बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंआप सबकी गुण ग्राहकता को नमन.
जवाब देंहटाएंमुख्य शीर्षक अनाचार है
जवाब देंहटाएंऔर दूसरा दुराचार है
सफे-सफे पर कदाचार है-
बना हाशिया सदाचार है
--
बिल्कुल सही!
यही तो है आज समाचार पत्रों में!