सूखे पर्वत घटा बिरानी
मौसम भी लाचार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
सड़क ओढ़
पगडंडी सोए
उस पर सत्ता काँटे बोए
ज़ख़्मी आँचल
सपने खोए
ममता सिसके आँसू रोए
दिन निकालकर घूँघट घूमे
रात बिकी बाजार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
शब्द खेलते गुल्ली डंडा
कलम सिसकती रोती है
सच जब घायल
हो जाता है
रूह दर्द में खोती है
अंधा बहरा हुआ न्याय जब
सुनता कौन गुहार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
रचना श्रीवास्तव
(डलास यू.एस.)
बहुत ही सुन्दर कविता है।
जवाब देंहटाएंदिन निकालकर घूँघट घूमे
रात बिकी बाजार है
दिन निकालकर घूँघट घूमे
जवाब देंहटाएंरात बिकी बाजार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
शब्द खेलते गुल्ली डंडा
कलम सिसकती रोती है
सच जब घायल
हो जाता है
रूह दर्द में खोती है
अंधा बहरा हुआ न्याय जब
सुनता कौन गुहार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
क्या खूबसूरती से गीत लिखा गया है |रचना जी आपको इस प्यारे से गीत के लिए बधाई और शुभकामनाएं |
Gunge Bahara hua hai shasan, Ham Andhe aur lachar hain.
जवाब देंहटाएंSuno suno ye samachar hai!
Desh se dur
Fir bhi kareeb.
Badhai
गीत तो अच्छा है ही, इसके बहाने टिप्पणीकारों में रमण कौल का नाम देखकर मन प्रसन्न हो गया जैसे पहले दर्जे के किसी सहपाठी से 25 साल बाद मिलने पर मिलकर होता है। बहुत दिनों से हिंदी में आपकी कोई नई रचना नहीं देखी। रमण जी बहुत अच्छी ग़ज़लें लिखते हैं कितना अच्छा हो कि नवगीत में भी आ जाएँ, स्वागत है। अभी कुछ नया आपके चिट्ठे पर देख रही हूँ लगता है कहानी है आराम से पढूँगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत| रचना जी को बधाई हो|
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya aur dil ko choo lenewali kavita hai. itnee sunder kavita se roob-roo karane ke liye purnimaji ka aabhar.
जवाब देंहटाएंरचना जी
जवाब देंहटाएंआपका यह गीत नवगीत की नई कहन का एक अच्छा उदाहरण है | सुदूर डलास में हमारे देश की चिन्ताओं की यह गूँज पूरी मानुषी अस्मिता को रेखायित करती है | साधु-साधु! इस सुंदर रचना हेतु | आपके नाम को सार्थक करे आपकी यह रचनाधर्मिता और नित नये आयाम प्राप्त करे, इसी स्नेहाशीष के साथ,
आपका
कुमार रवीन्द्र
शब्द खेलते गुल्ली डंडा
जवाब देंहटाएंकलम सिसकती रोती है
सच जब घायल
हो जाता है
रूह दर्द में खोती है
अंधा बहरा हुआ न्याय जब
सुनता कौन गुहार है
वाह....आपको बहुत समय से पढ़ रही हूँ
हमेशा अच्छा लग है आपको पढ़ना ....
सुंदर नवगीत के लियें ...
रचना जी ... बधाई...
कितना खूबसूरत नवगीत है ! नई सोच , नए उपमान और आज के परिवेश को बहुत गहराई से उकेरने की कला । बहुत बधाई ! मंच पर सड़ी -गली तुकबन्दी करके क्षणिक प्रशंसा बटोरने वालों को ऐसी रचना पढ़कर कुछ तो सुधार करना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंsach me aajkal aisa hi samachar hai...
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत!
जवाब देंहटाएंरचना श्रीवास्तव जी को बहुत बहुत बधाई| सूखे पर्वत, गुल्ली डंडा और रात बिकी बाजार ने इस नवगीत में चार चाँद लगा दिए हैं| समस्या पूर्ति मंच पर आप का हार्दिक स्वागत है :- http://samasyapoorti.blogspot.com
जवाब देंहटाएंदिन निकालकर घूँघट घूमे
जवाब देंहटाएंरात बिकी बाजार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
रचना जी बहुत सुंदर नवगीत है सुंदर सटीक शब्दों को बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने हार्दिक बधाई
सादर
अमिता
सूखे पर्वत घटा बिरानी
जवाब देंहटाएंमौसम भी लाचार है
सुनो ! सुनो ! ये समाचार है
पर्वतों का सूखना और मौसम की लाचारी समाचार बन रहा है. अच्छी सोच और लयात्मक अभिव्यक्ति आपके इस गीत को विशिष्ट बना देती है. इससे भी ज्यादा यह सुखद है कि अनिल जनविजय जी और पूर्णिमा वर्मन जी की तरह ही आप भी विदेशों में रहकर हिन्दी गीत को गा-गुनगुना रहीं हैं. बधाई स्वीकारें .
हमेशा की तरह इस बार भी एक शानदार नवगीत लिखा है रचना जी ने, इसके लिए उन्हें हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआप सभी के स्नेह शब्द सम्भाल के रख लिए हैं .इतने मान के लिए धन्यवाद कहना कम लग रहा है .
जवाब देंहटाएंबस उम्मीद करती हूँ कि आप सभी का आशीर्वाद ऐसे ही मिलता रहेगा .
पूर्णिमा जी देखिये हमने हिन्दी को हिन्दी में ही लिखा है ठीक है न .आगे भी मै कोशिश करुँगी कि हिन्दी का दामन न छूटे.
सादर
रचना
पूरे नवगीत की यह केन्द्रीय पंक्तियाँ हैं। बहुत सुन्दर नवगीत है।
जवाब देंहटाएं"सड़क ओढ़
पगडंडी सोए"
पंक्तियों को देखकर लगता है कि आपके अन्दर एक बहुत ही मँजा हुआ नवगीतकार कहीं छिपा हुआ बैठा है। भविष्य में इन पंक्तियों के स्तर का पूरा नवगीत पढ़ने की प्रतीक्षा रहेगी। सुन्दर नवगीत के लिए वधाई।
'नवगीत की पाठशाला' में विलम्ब से आया। रचना श्रीवास्तव जी का नवगीत पढ़कर सचमुच भीतर से 'वाह' निकली, बहुत सुन्दर नवगीत है। रचना जी को बधाई, आपको भी कि आपने इतना सुन्दर नवगीत प्रकाशित किया।
जवाब देंहटाएंसुभाष नीरव
सटीक और प्रभावी नवगीत. बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरा भी स्वर सभी के साथ सम्मिलित माना जाय :)
जवाब देंहटाएंसादर