12 अप्रैल 2011

१२. समाचार है

समाचार है आज मंच से
रोटी बोलेगी
भरे पेट के भेद सभी
श्रीमुख से खोलेगी

भीत‌र‌ माल स‌त‌ह‌ से त‌ह‌ त‌क‌
भ‌रा ठ‌साठ‌स‌ है
तिन‌का भ‌र‌ भी र‌ख‌ पाने को
न‌हीं ज‌ग‌ह‌ अब‌ है
भानुम‌ती का अज‌ब‌ पिटारा
पेट‌ ब‌ना डाला
स‌च्चाई ईमान‌ स‌द‌ विचारों को
खा डाला
आज‌ प‌ते की बात‌ ह‌वा
क‌ण‌ क‌ण‌ में घोलेगी


खाने और अधिक खाने की
होड़ मची कैसी
सतयुग त्रेता द्वापर में भी
नहीं दिखी वैसी
लगता है कि आसमान
धरती को पा लेगा
अपनी निष्ठुर बाहों में
स‍पूर्ण‌ समा लेगा
रोटी अब‌ भी म‌न‌ ही म‌न‌
क्या अंसुअन‌ रो लेगी?


न‌दी दौड़्ती जाती है
साग‌र‌ से मिल‌ने को
डाल‌ डाल‌ प‌र‌ क‌लियाँ
दिख‌तीं उत्सुक‌ खिल‌ने को
प‌र‌म‌ पिता से मिल‌ने को
क‌ण‌ क‌ण‌ म‌त‌वाला है
आँखों प‌र‌ क्यों इंसानों ने
प‌र‌दा डाला है?
भ्रमित‌ आत्मा भ्रम‌ के
जंग‌ल‌ जंग‌ल‌ डोलेगी

-प्रभु दयाल
(छिंदवाड़ा)

12 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी लगी आपकी रचना ...प्रभुदयाल जी...
    रोटी और जीवन दोनों को बखूबी व्यक्त किया है....


    आभार....

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  2. सुंदर गीत के लिए प्रभुदयाल जी को बहुत बहुत बधाई

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  3. समाचार है आज मंच से
    रोटी बोलेगी
    भरे पेट के भेद सभी
    श्रीमुख से खोलेगी

    बहुत सुन्दर। बिल्कुल सही कटाक्ष किया है आपने...।

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  4. समाचार है आज मंच से
    रोटी बोलेगी
    भरे पेट के भेद सभी
    श्रीमुख से खोलेगी-
    पंक्तियाँ अच्छी लगीं. बधाई स्वीकारें .

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  5. प्रभुदयाल जी काफी अरसे से गीतों में आधुनिक सरोकारों को लाते रहे हैं। इस सुंदर गीत के लिये बधाई, और पाठशाला का हिस्सा बनने के लिये धन्यवाद। इस टुकड़े की अंतिम दो पंक्तियाँ कुछ बेहतर हो सकती थीं, शायद जल्दी के कारण रह गयी हैं-

    भीतर माल सतह से तह तक‌
    भरा ठसाठस है
    एक ग्रास भी ज्यादा रखने
    नहीं जगह अब है

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  6. भाई प्रभु दयाल जी के इस नवगीत की लयात्मकता सहसा ही मन मोहित करने में सक्षम है| मंच से रोटी का बोलना - बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति| काश गीतकार का ये स्वप्न साकार हो| पूर्णिमा जी द्वारा इंगित की गई शंका मेरे मन में भी है|

    लगता है कि आसमान धरती को पा लेगा........... वाह क्या दूरदर्शिता है इस कथ्य में| बहुत बहुत बधाई प्रभु दयाल जी| समस्या पूर्ति मंच पर आप का हार्दिक स्वागत है:- http://samasyapoorti.blogspot.com

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  7. समाचार है आज मंच से
    रोटी बोलेगी
    भरे पेट के भेद सभी
    श्रीमुख से खोलेगी

    भीतर माल सतह से तह तक‌
    भरा ठसाठस है
    एक ग्रास भी ज्यादा रखने

    सुंदर गीत
    बधाई
    रचना

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  8. बहुत सुन्दर नवगीत है प्रभूदयाल जी आपका। नवगीत की पाठशाला में दरअसल पाठक ऍसे ही नवगीतों की प्रतीक्षा करते रहते हैं।

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  9. पूर्णिमाजी
    अभिवादन सादर‌
    नवगीत पर प्रतिक्रिया व्यक्त की धन्यवाद,और अच्छा लिखने की प्रेरणा दी इसका भी धन्यवाद|
    यथार्थ में इस नवगीत को रचने में मैं शायद आधा घंटा भी नहीं दे पाया| 3,4 अप्रेल को ओरछा में बुंदेली का
    राष्ट्रीय सम्मेलन था जिसमें बुंदेली गद्य लेखन एवं बुंदेली के मानकी करण की कार्यशाला भी थी|अंग्रेजी और हिं‍दी वातावरण से हटकर लोकभाषाओं में गद्य‌ लिखना कुछ कठिन होता है|सारा ध्यान उसी तरफ था|नवगीत में कुछ कमी थी मैंने भी अनुभव किया था|पर तीर हाथ से निकल फिर क्या?


    भीत‌र‌ माल स‌त‌ह‌ से त‌ह‌ त‌क‌
    भ‌रा ठ‌साठ‌स‌ है
    तिन‌का भ‌र‌ भी र‌ख‌ पाने को
    न‌हीं ज‌ग‌ह‌ अब‌ है
    भानुम‌ती का अज‌ब‌ पिटारा
    पेट‌ ब‌ना डाला
    स‌च्चाई ईमान‌ स‌द‌ विचारों को
    खा डाला
    आज‌ प‌ते की बात‌ ह‌वा
    क‌ण‌ क‌ण‌ में घोलेगी

    स‌म‌य‌ मिल‌ता तो शाय‌द‌ ऐसा ब‌न‌ता|

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  10. सशक्त अभिव्यक्ति. बधाई.
    मैं आजकल छिंदवाड़ा में ही पदस्थ हूँ. चलभाष है ९४२५१८३२४४. संपर्क हो सके तो आनंद होगा.

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  11. प्रभु दयाल जी, संशोधन भेजने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। इसे ठीक कर दिया गया है।
    -पूर्णिमा वर्मन

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  12. नवगीत की सम्पूर्णता दिखाई दे रही है इसमें।
    बधाई एवं आभार
    सादर

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