28 अप्रैल 2009

तुमसे मिलके


तुमसे मिलके
खुश रहता हूँ
तुमसे मिलके

उजले लगते
धूल धूसरित मैले से दिन
तुमसे मिलके

जग से मिलते
बंजारे मेरे सब पल-छिन
तुमसे मिलके

अनायास ही
हट जाते कुंठा के छिलके
तुमसे मिलके

वात्सल्य का
एक अजब झरना सा झरता
तुमसे मिलके

मन आँगन में
तुलसी जैसा बोध उभरता
तुमसे मिलके

--डॉ. अश्वघोष

7 टिप्‍पणियां:

  1. "मन आँगन में
    तुलसी जैसा बोध उभरता"
    अति सुन्दर भाव इन पंक्तियों में झलकता सा !
    सादर . . . शार्दुला

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  2. दुर्गम पथ पर
    दिखने लगे चिह्न मंज़िल के
    तुमसे मिल के

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  3. बहुत सुन्दर गीत
    मन अंगना में तुलसी जैसा
    बदली कोई बरसी जैसा

    धन्यवाद
    शशि

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  4. जी,ढेर सी बधाई!
    बहुत सुंदर रचना। वाह।
    kamal ashique,
    09412561672
    www.ashiquekamal.blogspot.com
    kamalashique@gmail.com
    kamalashique@rediffmail.com

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  5. vehad nape tule shabdo mai behtareen navgeet hai
    वात्सल्य का
    एक अजब झरना सा झरता
    तुमसे मिलके

    मन आँगन में
    तुलसी जैसा बोध उभरता
    तुमसे मिलके
    lekin pyaar kaa rang naa badlaa vishay se door hai.

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