24 मई 2009

17-अर्चना श्रीवास्तव

युग बीते, ज़माना बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

अब भी शीतल झोंकों में
मेघों की मधुर झंकार होती है
फूलों की मदमस्त बहार आती है
चुपके से जवाँ दिलों में
एक मिठी पुकार होती है
धड़कनों का 'वही' अंदाज़ न बदला
युग बीते, ज़माना बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

इतिहास के पन्ने गवाह हैं
सिरी-फरहाद, लैला मजनू की दास्तान
बंदिशे-दस्तुरों की जंजीर में
ज़ुल्मों के काँटों पर
आज भी
सच्चे प्यार की राह में
चलते जाने की मिशाल है
एक-दूजे के लिए मर-मिटने का
वो जुनून न बदला
युग बीते...
मगर प्यार का रंग न बदला

संदेशवाहक परिंदों से
मोबाइल इंटरनेट के तंत्रों तक
पायल की झन-झन, चूड़ियों की खन-खन
बाँसुरी की तान, मीरा की गान से
उत्तेजक धुनों की थिरकन
इंटरनेट मैसेजों की बाढ़ तक
देशी से परदेशा तक
फैशन के मिज़ाज़ तले
रिश्तों के ढंग न बदले
लेकिन नयनों की भाषा,
अंतर के अहसास न बदले
युग बीतें ज़माना बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

10 टिप्‍पणियां:

  1. नवगीत में 'मीटर' का ध्यान नहीं रखना होता क्या?
    यदि नहीं तो यह गेय कैसे होगा?
    जो गेय नहीं , वह गीत कैसे हुआ?
    नवगीत और लयबद्ध कविता में क्या अन्तर है?
    काव्य की इस विधा की आवश्यकता क्यों है?

    यदि उत्तर दें तो बहुत मेहरबानी होगी.
    हिन्दी को धनी करने के लिए किए गए इस प्रारम्भ को साधुवाद.

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  2. अर्चना जी आपके भीतर बैठे नवगीतकार को प्रणाम
    लेकिन बहुत अच्छा कथ्य लय/छन्द में न होने के कारण सुन्दर नवगीत बनने से रह गया. थोडी सी मेहनत अगर हो जाती जैसे...
    युग बीते, ज़माना बदला
    मगर प्यार का रंग न बदला
    के स्थान पर
    युग बीते, संवत्सर बदले
    मगर प्यार का रंग न बदला
    होता तो कैसा रहता?
    इसी तरह...
    पहला बन्द.
    अब भी शीतल झोंकों में
    जब बादल गाते हैं.
    सावन की रिमझिम में अब भी,
    काजल गाते हैं.
    आदि-आदि....
    तो मज़ा आ जाता.....
    खैर अगली बार सही....
    शुभकामनाएं

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  3. युग बीते जमाना बीता मगर प्यार का रन्ग ना बदला
    सही कहा इसी लिये तो अजकल सच्चा प्यार नज़र नहीं आता क्योंकि जमाना बदल गया है और बदल गये हैं प्यार करने वाले

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  4. कुछ नये अंदाज़ में अर्चना जी का गीत लुभाता है

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  5. संदेशवाहक परिंदों से
    मोबाइल इंटरनेट केतंत्रों तक
    पायल की झन-झन, चूड़ियों की खन-खन
    बाँसुरी की तान, मीरा की गान से
    उत्तेजक धुनों की थिरकन
    इंटरनेट मैसेजों की बाढ़ तक
    देशी से परदेशा तक
    फैशन के मिज़ाज़ तले
    bahut sunder likha hai

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, यह ब्लॉग एक सार्थक प्रयास है, आज यहाँ आकर मन प्रसन्न हो गया!

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  7. यह एक भाव प्रणव काव्य रचना है जो न तो गीत या नव गीत के मानकों पर खरी है न ही छंद हीन है. संकेत यह की नव गीत लिखते समय स्थाई की पंक्तियों की संख्या यथा संभव सामान हो तथा अंतरे की पंक्तियों की संख्या सामान हो. पंक्तियों का पदभार सामान होना गीत की शर्त है. नवगीत कुछ ढील देता है. पंक्तियाँ कुछ छोटी बड़ी हो सकती हैं पर कुल मिलाकर पद का पदभार संतुलित हो. शब्दों के पर्यायवाची बदल-बदलकर संतुलन लायें. अभ्यास हो जाने पर अपने आप सही शब्द आने लगेगा.

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  8. अर्चना जी का नवगीत पसँद आया -- अच्छे प्रयास के लिये उन्हेँ बधाई
    -लावण्या

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  9. गीत शब्द की उत्पत्ति " गै " धातु में भूत कालिक कृदन्त " क्त " प्रत्यय के संयोग से हुई है, जिसका अर्थ है ,जो गाया गया हो। अर्थात् गीत वही है जो गाया जा सकता हो। गाने के लिये स्वर और लय की प्राथमिक आवश्यकता होती है। संगीत शास्त्र के विद्वानो् ने स्वर के नियन्त्रण के लिये विभिन्न रागों की, और लय के नियन्त्रण के लिये विभिन्न मात्राओं वाले तालों की रचना की है। गीत शब्दों की वह सुनियोजित रचना है ,जो किसी राग का आश्रय लेकर लय को नियन्त्रित करने वाले किसी ताल में निबद्ध हो। विभिन्न प्रकार के तालों के अनुसार विभिन्न प्रकार के गीतों की रचना होती है । सबसे छोटा ताल है " कहरवा " ४ मात्रा , दादरा ६ मात्रा , रूपक ७ मात्रा , दीपचन्दी ८ मात्रा , झपताल १० मात्रा .एकताल १२ मात्रा, और तीन ताल १६ मात्रा, । जब कोई गीत की रचना करें तो यह ध्यान रखें कि गीत की सभी पंक्तियाँ किसी एक ताल से नियंत्रित हों। जैसे आप ४ मात्रा वाली लय बनाते है तो सभी पंक्तियों में ४,८,१२,१६,२०,या २४ मात्राएँ होनी चाहिये। यदि दादरा की लय बनाना चाहते है् तो सभी पंक्तियों में ६,१२,१८,२४ या ३० मात्राएँ होनी चाहिये.।इसी प्रकार यदि रूपक ताल की लय बानाना हो तो प्रत्येक पंक्ति में ७,१४,२१, या २८ मात्राएँ रखें। नवगीत में यह छूट है कि आप चाहें तो एक पंक्ति ४ मात्रा दूसरी ८ मात्रा तीसरी १२ मात्रा और चौथी पंक्ति १६ मात्रा की बना सकते हैं पर लय तभी बनेगी जब आप ये गुणनखण्ड याद रखेंगे। अब आप सभी अपने अपने गीतों को इस कसौटी पर परख कर देखिये । नवगीत की पाढशाला के प्रथम मास की बहुत बड़ी उपलब्धि रही जिसमें १८ नवगीतों की रचना की गई जो आज की आवश्यकता है। मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि सभी प्रतिभागियों ने बड़े मन से गीत लिखे । अगले विषयों पर भी गीत के नियमों को ध्यान में रखकर लिखेंगे। सभी को बहुत बहुत शुभकामना।

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  10. इन अनूठी जानकारी के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया

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