13 मई 2009

8- अनाम

कैसा भ्रम है
अविरल क्रम है
हर पल,
क्षण सब कुछ बदला है
मेरा मन तो नहीं मानता
प्यार का रंग नहीं बदला है।।

कितने धोखे
छल-प्रपंच हैं
मक्कारों से भरे मंच हैं
झूठों की झूठी दुनिया में
झूठे ही बन गए पंच हैं
झूठ कहेंगे
झूठ सहेंगे
झूठ की खातिर
झूठ लिखेंगे
झूठ-
नगर के कोलाहल में
झूठों का परचम बदला है
चलो जूठ ही लिख देता हूँ
प्यार का रंग नहीं बदला है ।।

12 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहूँ तो ये कविता मुझे बहुत बहुत अच्छी लगी, पता नहीं कवि ने अपना नाम देना क्यों उचित ना समझा.

    "कैसा भ्रम है
    अविरल क्रम है"
    ---
    "कितने धोखे
    छल-प्रपंच हैं
    मक्कारों से भरे मंच हैं
    झूठों की झूठी दुनिया में
    झूठे ही बन गए पंच हैं"
    --
    "चलो झूठ ही लिख देता हूँ"
    ---
    ये सब अति सुंदर और बेबाक !
    सादर शार्दुला

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  2. नवगीतों के नाम है, यह अनाम का गीत।
    गीतकार देखें, इसे कहते हैं नवगीत ।।

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  3. वाह! मुझे ये गीत बड़ा अच्छा लगा। सटीक, न कोई मधुर-मधुर बातें, न बनावटी जज़्बात...

    और लय में भी है।
    अनाम जी, नाम दे देना था आपको...

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  4. मक्कारों से भरे मंच हैं
    झूठों की झूठी दुनिया में
    "चलो झूठ ही लिख देता हूँ"
    वाह!
    इसे कहते हैं नवगीत
    मुझे ये नवगीत बड़ा अच्छा लगा।

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  5. बहुत अच्छा लिखा है और सत्य भी। नवगीत की दृष्टि से नहीं जानती कि कितना सही है परंतु पढ़ कर अच्छा लगा।

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  6. अनाम भाई/देवी: एक साथ इतने झूठ कि एक झूठ ने अपनी अलग पहचान बनानी चाही, लेकिन उसे भी शार्दुला जी ने ताड़ लिया। बिचारा!

    झूठों की झूठी दुनिया में
    झूठे ही बन गए पंच हैं
    झूठ कहेंगे
    झूठ सहेंगे
    झूठ की खातिर
    झूठ लिखेंगे
    झूठ-
    नगर के कोलाहल में
    झूठों का परचम बदला है
    इसमें जो अकेला 'झूठ-' है, वो किसलिए? क्या यह पिछली पंक्ति के संदर्भ में हैं? जैसे कि 'झूठ की खातिर झूठ लिखेंगे झूठ' जिसका भावार्थ यह हो सकता है कि 'झूठ की खातिर झूठे लोग झूठ लिखेंगे'
    या मैं गलत समझ रहा हूँ?

    तो फिर ये '-' किसलिए?

    परचम अर्थात झंडा। झूठो का झंडा बदला है? भला क्यों? कुछ गूढ़ बात है शायद जो अपने पल्ले नहीं पड़ रही है।

    कटारे जी - आपने लिखा:
    नवगीतों के नाम है, यह अनाम का गीत।
    गीतकार देखें, इसे कहते हैं नवगीत ।।
    जरा विस्तार से समझाइए कि इसे क्यों कहते हैं नवगीत। मैंने पूर्णिमा जी के सुझावानुसार दाहिने कॉलम में गीत और नवगीत तथा नवगीत का वस्तु विन्यास लेख ध्यान से पढ़ें। लेकिन फिर भी समझने में असमर्थ हूँ कि 'इसे' क्यों कहते हैं नवगीत? अन्य गीत किस मामले में कम रह गए थे। अगर एक चेक-मार्क वाली टेबल ही बना दी जाए तो मुझे समझने में आसानी होगी। अंक देना भले ही स्थगित कर दें कुछ समय के लिए, जैसा कि पूर्णिमा जी न बताया। लेकिन यह तालिका अभी से बना दी जाए।

    महेश अनघ के आलेखानुसार, नवगीत को इन छ: आयामों में आंका जा सकता है:
    एक आशय यह कि नवगीत का तौर-तरीका अब तक रचे गए गीत से बिल्कुल अलग तरह का, नया हो। दूसरा आशय यह कि गीत की प्रथम बाध्यता-छंद को लय के आधार पर नया आकार दिया गया हो। तीसरा आशय यह कि अनुप्रास पंक्ति के अंत में होने की बजाय और कहीं भी हो, अथवा न भी हो। चौथा आशय यह कि गीत का अंदाज़ेबयाँ यानी शिल्प नए तरह का, बिल्कुल मौलिक हो। पाँचवाँ आशय यह कि गीत में प्रयुक्त हिंदी भाषा को आंचलिकता के साथ सविस्तार ग्रहण किया गया हो अथवा नए निजी शब्द गढ़े गए हों। और छठा आशय यह कि गीत में ऐसा कुछ कहा गया हो, जो अभी तक गीत विधा का विषय नहीं बन पाया था, आदि आदि। (Pasted from http://www.abhivyakti-hindi.org/rachanaprasang/2007/navgeet.htm )

    और यह रही आपकी टेबल जिसमें 7 कालम है:
    1 - प्रतिभागी का नाम
    क - नया तौर तरीका
    ख - छंद को लय के आधार पर नया आकार दिया गया
    ग - अनुप्रास पंक्ति के अंत में होने की बजाय और कहीं भी हो, अथवा न भी हो
    घ - अंदाज़ेबयाँ बिल्कुल मौलिक हो
    च - प्रयुक्त हिंदी भाषा को आंचलिकता के साथ सविस्तार ग्रहण किया गया हो अथवा नए निजी शब्द गढ़े गए हों।
    छ - ऐसा कुछ कहा गया हो, जो अभी तक गीत विधा का विषय नहीं बन पाया
    और फिर हर प्रतिभागी के नाम के आगे हर खाने में एक चेक-मार्क हो। अनाम जी तो शायद हर खाने में फ़िट बैठते। बाकी की एकाध जगह कोई खामी रह जाती।

    टिप्पणी में टेबल के tag की अनुमति नहीं है। वरना मैं उसका प्रारूप दिखा भी सकता था।

    अगर कक्षा में सब विद्यार्थी समझ पा रहे हैं और एक मैं ही अनाड़ी हूँ तो फिर जाने दें। एक विद्यार्थी के लिए इतना परिश्रम शायद अनुचित हो।

    और हाँ, निर्मल सिद्धू जी की कड़ी टूट गई है। फिर से जोड़ दें। वरना उनकी प्रविष्टि खोजने में कठिनाई होती है।


    सद्भाव सहित
    राहुल
    http://mere--words.blogspot.com

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  7. यह नवगीत तो कुनैन की गोली है, जो कड़वी लगेगी पर वाद में सुखद लगेगी। मुझे तो लगता है कि अनाम ने मेरे मन की ही बात लिख दी है।
    -डा० व्योम

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  8. आदरणीय
    मुझे दुःख इस बात का है कि मेरे द्बारा प्रेषित टिप्पणी प्रकाशित नहीं हो पाई.
    हो सकता है वह आप तक न पहुँची हो या आपके स्तर से मेल न खाती हो.
    सखेद
    - विजय

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  9. राहुल जी आपकी खोज की यात्रा बिल्कुल सही दिशा में जा रही है और में सोचता हूँ आप बहुत जल्दी स्वयं नवगीत की अच्छी व्याख्या करेंगे। नवगीत का तात्पर्य नया गीत , जिसमे् कुछ नवीनता हो, कुछ नये प्रयोग हों, नये मौलिक विचार हों,नयी कल्पना हो,कहने का नया अंदाज हो,नये प्रतीक हों.गीत में कुछ न कुछ नयापन हो उसे नवगीत कहा जायेगा जैसे प्राचीन काल में लोग जो कपड़े पहनते थे उन्हें अंगवस्त्र कहते थे।बाद में नये प्रयोग हुए और कुर्ता, कमीज,फुलसर्ट ,हाफसर्ट टीसर्ट,सफारी जाकिट कोट आदि नये नये तरीके से वस्त्रों की रचना हुई। इनके अलग अलग नाम होते हुए भी इन्हें अंग वस्त्र कहने से नहीं रोक सकते।उसी प्रकार गीत के भी नये नये संस्करण आ रहे हैं ये सब नवगीतों के कई प्रकार हैं । नवगीतकार पं॑, गिरिमोहन गुरु केशब्दों मे॰॰
    नवगीतों में अवतरित है युगीन प्रतिबिम्ब।
    नव गति नव लय ताल नव नव नव प्रगटे बिम्ब।।
    आगे चर्चा होती रहेगी।

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  10. अभी तक जितने भी गीत आए हैं उनमें अनाम जी का गीत नवगीत का सबसे बेहतर उदाहरण हैं। कड़वी गोली तो नहीं लेकिन इसमें छंद नया है, कहने का ढंग नया है हालाँकि झूठ शब्द का अनेक स्थान पर प्रयोग किया गया है पर हर जगह अलग अर्थों में प्रयोग है। इसमें एक अंतरा और लिखा गया होता तो बहुत अच्छा था। झूठों का परचम बदला है के स्थान पर झूठों का परचम फहरा है होता तो भी नवगीत के हिसाब से तुक बिगड़ती नहीं। पर गीतकार की अपनी रुचि की बात है। सुंदर नवगीत।

    विजय जी की टिप्पणी हमें मिली नहीं है। शायद किसी कारण पोस्ट नहीं हो सकी या फिर किसी अन्य कविता के साथ पोस्ट हो गई हो सकती है।

    राहुल जी ने नवगीत के 6-7 तत्त्व ऊपर गिनाए हैं। 9 तत्त्व पाठशाला के मुखपृष्ठ पर भी लिखे हैं। इन सबसे अलग भी कुछ तत्त्वों का उल्लेख बातचीत में हुआ है। अगर इस सबमें से 3 से 5 तत्त्व भी गीत में हों तो वह नवगीत हो सकता है। सारे तत्त्व तो किसी भी नवगीत में एक साथ नहीं होंगे। नवगीत कोई गणित का फार्मूला नहीं है, न ही दोहा या चौपाई है इसलिए सूची या टेबल बनाने से जबरदस्ती नहीं आ जाएगा। कुछ आभास अनुभूति के गीतों को पढ़ने से भी लग सकता है कि नवगीत कैसे लिखे जाने चाहिए। इसका लिंक भी दाहिने कॉलम में है।

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  11. धन्यवाद उन सभी को जिन्होंने मेरे नवगीत को पढ़ा, गुना और उस पर कुछ लिखा। बहुत बड़ी बात है आज के युग में कि किसी दूसरे के गीत, नवगीत या कविता को पढ़कर कोई दूसरा उस पर टिप्पणी लिखे। इतना अच्छा यह मंच बन गया है कि यदि यह चलता रहा तो गीत नवगीत के प्रति फिर से एक नई शुरुआत होगी। सभी आयोजकों का नवगीत आभारी रहेगा और मैं भी आभारी हूँ।
    अब कुछ अपने गीत के विषय में-
    राहुल जी ने बहुत सारे प्रशन उठा डाले शायद प्रशंसायुक्त टिप्पणियाँ देखकर, उनका नवगीत दरअसल इतना खरा नवगीत है कि यह नवगीत उसके सामने नहीं टिक रहा है।
    द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने अपने गीतों के विषय में लिखा है-
    "मेरे गीतों के अर्थ अनेकों हैं
    तुमसे जो बन सके लगा लेना।।"
    "झूठों का परचम बदला है" का अभिप्राय है कि झूठे लोगों की अब पहचान (परचम) बदल गई है, नई परिभाषा उन्होंने गढ़ ली है वह यह कि वे अपने को ही सच्चा ईमानदार मानते हैं और समाज का एक बड़ा तबका उनके आगे पीछे घूम रहा है, उन्हें मान्यता दे रहा है। इस दृष्टि से "झूठों का परचम बदला है" यह लिखा गया है।
    -अनाम

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  12. इतने सुंदर गीत के रचयिता "अनाम" क्यों, मगर?

    अभी तक की सबसे खूबसूरत रचना....

    एकदम अनूठा गीत

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