3 मई 2009

2- मोहिन्द्र कुमार

युग बीते
क्या क्या न बदला
फिर भी प्यार का रंग न बदला

जब भी फूटा
दिल में
नेह का अंकुर
नैनों की भाषा बदली है
पहरों की छाँव में
मिलने का ढंग बदला है
फिर भी प्यार का रंग न बदला

इतिहास साक्षी है
राज मिटे हैं
ताज झुके हैं
दुनिया ने नाता तोडा है
अपनो की आँखे बदली हैं
फ़िर भी प्यार का रंग न बदला

प्राण मूल से
चुभन शूल से
किस तरह अलग हो
प्यार बिना जीवन बंजर
बिना धार ज्यूं हो खंजर
मान्यताओं के मौसम बदले हैं
फिर भी प्यार का रंग न बदला

जहाँ कहीं है
ऊँच नीच का संगम
और नजर आ जाये
रेशम में टाट का पैबंद
समझो नेह निवास वहीं है
भीतर बाहर के प्रसंग हैं बदले
फिर भी प्यार का रंग न बदला

युग बीते
क्या क्या न बदला
फिर भी प्यार का रंग न बदला

--मोहिन्द्र कुमार

11 टिप्‍पणियां:

  1. मोहिन्द्र कुमार जी ने नवगीत लिखने का अच्छा प्रयास किया है । कथ्य सार्थकता लिये हुए है। कुछ पंक्तियों को छोड़कर शेष गीत की लयात्मकता भी कायम है, किन्तु कहीं कहीं गीत के प्रवाह में निरन्तरता में बाधा पड़ रही है। जैसे मुखड़ा ही "फ़िर भी प्यार का रंग न बदला"
    यहाँ एक मात्रा अधिक हो रही है जिसे समायोजित करना पड़ रहा है। इससे बचने के लिये फिर भी के स्थान पर किन्तु या मगर करने से काम चल जायेगा। इसी तरह प्रथम अन्तरा में थोड़ा परिवर्तन करने से लय बनेगी ॰॰॰यथा॰॰॰
    जब भी फ़ूटा
    दिल में अजब
    नेह का अंकुर
    नैनों की भाषा बदली है
    पहरों की गहरी छाया में
    मिलने का है ढंग भी बदला
    किन्तु प्यार का रंग न बदला
    दूसरे अन्तरे में भी शब्दों को इधर से उधर कर देने से माधुर्य बढेगा यथा॰॰
    साक्षी है इतिहास
    मिटे हैं राज
    झुके हैं ताज
    और दुनिया नें नाता तोडा है
    अपनों की आंखे बदली हैं
    आंखों की भाषा बदली है
    भाषा का व्याकरण भी बदला
    किन्तु प्यार का रंग न बदला
    तीसरे अन्तरे में भी इस तरह करके देखें ॰॰॰
    प्राण मूल से
    चुभन शूल से
    अलग किस तरह
    गन्ध फूल से
    प्यार बिना है जीवन बंजर
    बिना धार जैसे हो खंजर
    विश्वासों का मौसम बदला
    किन्तु प्यार का रंग न बदला

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  2. मोहिन्दर जी बहुत बधाई. कथ्य आपने बहुत अच्छा लिया है.
    कृपया अन्यथा न लें मैं माफी चाहते हुए चूँकि ये पाठशाला है इस लिये एक बन्द पर मैँ भी कुछ कहने की कोशिश करता हूँ..
    राज मिटे हैं
    ताज झुके हैं
    प्यार भरे दिल
    कहाँ रुके हैं
    सब ने नाता तोड़ दिया हो.
    साथ समय ने छोड़ दिया हो.
    गति बदली हो भले समय ने,
    किन्तु प्यार ........


    इसी तरह दादा कटारे जी के सुझाव............

    अलग किस तरह
    गन्ध फूल से को अगर यूँ कहा जाये.........
    अलग कहाँ है
    गन्ध फूल से
    सहभागिता और अचछे गीत के लिये बधाई

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  3. मोहिन्दर जी बहुत बधाई,
    अच्छा प्रयास किया है नवगीत लिखने का

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  4. जहाँ कहीं है
    ऊँच नीच का संगम
    और नजर आ जाये
    रेशम में टाट का पैबंद
    समझो नेह निवास वहीं है
    भीतर बाहर के प्रसंग हैं बदले
    फ़िर भी प्यार का रंग न बदला

    बहुत खूब लगा आपका नवगीत....बधाई ....!!

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  5. मोहिन्द्र जी की यह रचना सुंदर बन पड़ी है। विचार आशावादी है, अभिव्यक्ति आकर्षक है, नवगीत के भाव तो हैं पर प्रस्तुति और शैली कविता की है। गीत में मुखड़ा और अंतरा जिस प्रकार आता है उस प्रकार नहीं आया है। इस पर शास्त्री जी ने विशेष श्रम से एक टिप्पणी लिखी है। उसको पढ़ते हुए यह ठीक से समझा जा सकता है कि एक नवगीत कविता से किस प्रकार भिन्न होता है, और एक ही भाव को किस प्रकार व्यक्त करने से उसे कविता का रूप दिया जा सकता है और किस प्रकार नवगीत का। इस दृष्टि से यह रचना बहुत महत्व की है। यदि कवि या पाठक कुछ प्रतिप्रश्न करना चाहें तो उसका भी स्वागत है।

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  6. नवगीत नई विधा है कम से कम वेब के संदर्भ में सब लोग इसे अभी ठीक से समझे नहीं हैं। इस ब्लॉग के ज़रिए समीक्षा के साथ इसे ठीक से समझने में मदद मिल रही है। यह जानना अत्यंत रोचक है कि मोहिन्द्र जी की रचना कविता है और गीत में किस प्रकार रूपांतरित होती है। एक बेहतरीन कविता के लिए मोहिन्द्र जी को बधाई। इसका गीत रूपांतर अति मधुर रहा।

    सुपर्णा

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  7. कटारे जी - प्रणाम। आपको कोटि-कोटि धन्यवाद कि आप अपना अमूल्य समय इस कार्य में दे रहे हैं।

    कुछ प्रश्न हैं - जिनका उत्तर मिल सके तो कृपा होगी।

    1 - कितने गीत इस शीर्षक के अंतर्गत प्राप्त हुए?
    2 -
    आपने लिखा कि -
    शीर्षक की सीमा में रहते हुए जो गीत लिखे गए उनमें कुछ सामान्य, कुछ अच्छे और कुछ बहुत अच्छे नवगीत कहे जा सकते हैं।
    क्या आप यह बता सकते हैं कि - कितने सामान्य है, कितने अच्छे और कितने बहुत अच्छे?

    मैं यह मान कर चल रहा हूँ कि अभी तक जो दो गीत हमने देखे हैं, वे 'बहुत अच्छे' की श्रेणी में आते हैं।

    3- क्या आप हर गीत पर टिप्पणी देंगे और उसे ब्लाग पर प्रकाशित करेंगे? या फिर गीत इतने ज्यादा हैं कि ऐसा सम्भव नहीं होगा?

    यह जानकर खुशी हुई कि मेरा गीत सामान्य से कम नहीं है। वरना मैं तो डर रहा था कि मेरा तो पत्ता कटा रे!

    पुनश्च: धन्यवाद,
    राहुल
    http://mere--words.blogspot.com/

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  8. आदरणीय राहुल जी नमस्कार वैसे तो किसी भी कविता को अच्छी या कम अच्छी कहना उचित नहीं है , क्योंकि किसी कविता का एक पक्ष कमजोर होता है तो दूसरा पक्ष बहुत मजबूत होता है। हर एक कविता में कुछ अच्छा होता है और कुछ कमी भी होती है।हम लोग जो टिप्पणी कर रहे हैं वह केवल सीखने की दिशा में ध्यान खींचना भर है।गीत पर चर्चा हो और लोग गीत लिखें यही एक मात्र उद्देश्य है। आपके ३ प्रश्नों का उत्तर क्रमशः
    १॰ इस शीर्षक पर कुल ८ गीत प्राप्त हुए हैं।
    २॰ आगे देखते जाइये और आप भी टिप्पणी लिखियेगा।
    ३॰ हां सभी गीत ब्लाग पर प्रकाशित होंगे और सभी पर मैं टिप्पणी लिखूंगा और आपसे भी चाहूंगा।
    आप अच्छी कविताएं लिखते हैं मैं पढता रहता हूँ

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  9. फिर भी प्यार का रंग न बदला के पहले १५, १६ से लेकर १९-२० मात्राओं की पंक्तियाँ हैं. यह असंतुलन लयात्मकता में बाधक बनता है. पदों में भी पंक्ति संख्या, शब्द संख्या या मात्रा किसी भी दृष्टि से देखे असंतुलन है इस कारण भावों का सौन्दर्य शिल्प शैथिल्य से घटा है. ध्यान दें.

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  10. मोहिन्द्र कुमार की यह कविता नवगीत के निकट की कविता है। नवगीत रूपी महल बनाने में जो सामग्री लगती है वह सब कुछ यहाँ जुटाई गई है, परन्तु उन सब को चुन चुन कर लगाने की कला का अभ्यास अभी थोड़े और परिश्रम की अपेक्षा रखता है। अगली कार्यसाला में बहुत सुन्दर और परिपक्व नवगीत मिल सकेगा ऐसा पूरा आभास हो रहा है। नवगीत में लयात्मकता और प्रवाहात्मकता बहुत आवश्यक हैं। छन्द प्रयोग में स्वतंत्रता है पर प्रवाह में नहीं। सुन्दर प्रयास के लिए मोहिन्द्र कुमार जी को हार्दिक वधाई।
    -डा० व्योम

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  11. मोहिन्द्र जी को अच्छी रचना के लिये बधाई....
    "प्राण मूल से
    चुभन शूल से
    किस तरह अलग हो
    प्यार बिना जीवन बंजर
    बिना धार ज्यूं हो खंजर"
    बहुत सुंदर पंक्तियां लगी ये

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