19 मई 2009

14- अर्बुदा ओहरी

बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला

बादल बरसे धरती पिघले
माटी सींचे अंकुर निकले
बदला मौसम
खिलने का पर ढंग न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला

उंगली थामे नन्हे हाथ
पंख पसारे माँ का साथ
बदले संगी
पर मंजिल का पंथ न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला


आश-निराशा, उलझन-सुलझन
समय उम्र में अटका सा मन
बदला बचपन
लेकिन मन स्वछंद न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला

13 टिप्‍पणियां:

  1. कविता की इतनी सुन्दर विवेचना डॉ व्योम ने कर दी , हम तो मंत्र-मुग्ध से पढ़ने का आनन्द ले रहे हैं...

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  2. अर्बुदा जी आप तो बहुत अच्छा लिखती है आपकी कविता को पढ़ कर मन मॆं तरावट आजाती है ऐसे ही लिखती रहिये

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  3. बहुत अच्छी कविता अर्बुदा जी की है यह। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टि से सुन्दर, सधी हुई। कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं........... फूल के खिलने का ढँग, मंजिल का पंथ और मन की स्वच्छंदता भी कभी बदलती है भला...... बहुत ठीक से पकड़ा है इन भावों को। कहने का तरीका सहज और सरल है। अगली कार्यशाला में और सुन्दर नवगीत मिलेगा अर्बुदा की कलम से।
    क्या कहने इन पंक्तियों का-------
    खिलने का पर ढंग न बदला
    ०००००००००००००००००००
    पर मंजिल का पंथ न बदला
    ०००००००००००००००००००
    लेकिन मन स्वछंद न बदला

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  4. यहाँ नवगीत की विधा सीखने के सुनहरा अवसर मिल रहा है। मेरे पहले प्रयास को व्योम जी ने खूब प्रोत्साहित किया, शुक्रिया। शुक्रिया पूर्णिमा जी, मीनाक्षी और मनीष जी। गुरुजनों के सानिध्य में और सीखने का मौका मिलता रहे यही इच्छा है।

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  5. बहुत खूब अर्बुदा जी. शानदार कहन है. बधाई............संजीव गौतम

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  6. अर्बुदा जी का यह नवगीत पाठशाला में आये बहुत अच्छे नवगीतों में से एक है। कथ्य में मौलिकता है ,और लय पूर्णतः सधी हुई है । फिर भी एक छोटी सी कमी की ओर अर्बुदा जी का ध्यान आकर्षित किये बिना पाठशाला का दायित्व पूर्ण नहीं होगा। गीत के पहले और तीसरे अन्तरों में १६ मात्रा हैं किन्तु दूसरे अन्तरा में १५ मात्राएँ हैं । जैसे

    १ बादल बरसे धरती पिघले १६
    माटी सींचे अंकुर निकले १६
    ३ आश-निराशा, उलझन-सुलझन १६
    समय उम्र में अटका सा मन १६
    २ उंगली थामे नन्हे हाथ १५
    पंख पसारे माँ का साथ १५
    यहाँ गीत की लय कमजोर हौ जाती है । इसे इस तरह या इन जैसे शब्दों द्वारा दूर किया जा सकता है ।
    उंगली थामे नन्हा बचपन १६
    पंख पसारे मातृ सहचलन १६

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  7. बहुत ही खूबसूरत गीत...बिल्कुल आपके सुंदर नाम जैसा ही

    "आश-निराशा, उलझन-सुलझन
    समय उम्र में अटका सा मन"

    इस समय उम्र का प्रयोग अनूठा लगा

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  8. कटारे जी, बहुत अच्छी तरह से मात्राओं का गणित समझाया आपने। मेरा ध्यान ही नहीं गया था पहले :)
    शुक्रिया।

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  9. बहुत ही सुंदर गीत और उतनी ही शानदार प्रतिक्रियाये. पाठशाला सार्थक हो रही है. आज हम जैसे जो प्राथमिक खंड मे हैं शायद कोई इतनी अच्छे शिक्षा से हाई स्कूल तक पहुच जाए.

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  10. कविता में हर रंग बढ़िया खिला है....पसंद आया...

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