26 मई 2009

कार्यशाला-१ की उपलब्धियाँ

कार्यशाला-1 में हमने दी गई पंक्ति पर नवगीत लिखना सीखा। हमने नए गीत बनाए और विद्वानों ने उस पर टिप्पणी की। हममें से बहुत कम लोग पहले से गीत लिखना जानते थे और नवगीत क्या है इसका भी ठीक अनुमान नहीं था। इस कार्यशाला में हमने नवगीत के आधारभूत ढाँचे के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। कार्यशाला में लिखे गए गीतों पर विद्वान गीतकारों की विस्तृत समीक्षा से हमें अपने नवगीतों को कैसे सुधारें इस विषय में भी जानकारी मिली। फिर भी हो सकता है कि सब कवियों का ध्यान इन महत्वपूर्ण टिप्पणियों की ओर न गया हो इसलिए यह पोस्ट विशेष रुप से-

पहली महत्वपूर्ण टिप्पणी शास्त्री नित्यगोपाल कटारे जी की मात्राओं के संबंध में, वे लिखते हैं-

गीत शब्द की उत्पत्ति " गै " धातु में भूत कालिक कृदन्त " क्त " प्रत्यय के संयोग से हुई है, जिसका अर्थ है ,जो गाया गया हो। अर्थात् गीत वही है जो गाया जा सकता हो। गाने के लिये स्वर और लय की प्राथमिक आवश्यकता होती है। संगीत शास्त्र के विद्वानों ने स्वर के नियन्त्रण के लिये विभिन्न रागों की, और लय के नियन्त्रण के लिये विभिन्न मात्राओं वाले तालों की रचना की है। गीत शब्दों की वह सुनियोजित रचना है,जो किसी राग का आश्रय लेकर लय को नियन्त्रित करने वाले किसी ताल में निबद्ध हो।

नवगीत में भी गीत तो है, इसलिए मात्राओं का ध्यान रखना आवश्यक है- वे आगे लिखते हैं-

नवगीत में यह छूट है कि आप चाहें तो एक पंक्ति ४ मात्रा दूसरी ८ मात्रा तीसरी १२ मात्रा और चौथी पंक्ति १६ मात्रा की बना सकते हैं पर लय तभी बनेगी जब आप ये गुणनखण्ड याद रखेंगे।

ताल के विषय में वे आगे बताते हैं-
विभिन्न प्रकार की तालों के अनुसार विभिन्न प्रकार के गीतों की रचना होती है । सबसे छोटी ताल है "कहरवा" ४ मात्रा, दादरा ६ मात्रा, रूपक ७ मात्रा, दीपचन्दी ८ मात्रा, झपताल १० मात्रा, एकताल १२ मात्रा, और तीन ताल १६ मात्रा। जब कोई गीत की रचना करें तो यह ध्यान रखें कि गीत की सभी पंक्तियाँ किसी एक ताल से नियंत्रित हों। जैसे आप ४ मात्रा वाली लय बनाते है तो सभी पंक्तियों में ४, ८, १२, १६, २० या २४ मात्राएँ होनी चाहिये। यदि दादरा की लय बनाना चाहते है् तो सभी पंक्तियों में ६, १२, १८, २४ या ३० मात्राएँ होनी चाहिये। इसी प्रकार यदि रूपक ताल की लय बानाना हो तो प्रत्येक पंक्ति में ७, १४, २१, या २८ मात्राएँ रखें। नवगीत में यह छूट है कि आप चाहें तो एक पंक्ति ४ मात्रा दूसरी ८ मात्रा तीसरी १२ मात्रा और चौथी पंक्ति १६ मात्रा की बना सकते हैं पर लय तभी बनेगी जब आप ये गुणनखण्ड याद रखेंगे।

आचार्य संजीव सलिल जी ने नवगीत के रूप से संबंध में एक और महत्वपूर्ण बात कही। वे कहते हैं-

नव गीत लिखते समय स्थाई की पंक्तियों की संख्या यथा संभव सामान हो तथा अंतरे की पंक्तियों की संख्या सामान हो। पंक्तियों का पदभार सामान होना गीत की शर्त है। नवगीत कुछ ढील देता है। पंक्तियाँ कुछ छोटी बड़ी हो सकती हैं पर कुल मिलाकर पद का पदभार संतुलित हो। शब्दों के पर्यायवाची बदल-बदलकर संतुलन लायें। अभ्यास हो जाने पर अपने आप सही शब्द आने लगेंगे।
नवगीत के संबंध में एक बहुत अच्छा नवगीत भी आचार्य जी ने प्रस्तुत किया है। जिसमें संक्षेप में नवगीत के मूल तत्वों की व्याख्या कर दी गई है। आज इस गीत को फिर से पढ़ते हैं-
गीत क्या?
नवगीत क्या है?
यह समझ लें,
फिर लिखें।
गीत संसद में
सभी से,
बेहतर ही
हम दिखें।
शब्द कम,
हों भाव ज्यादा।
न्यून सज्जा,
अधिक सादा।
शिल्प-बिम्ब
प्रतीक नव हों,
कलश कम हों,
नींव ज्यादा।
धरा से
ऊगे हुए
नव अंकुरों
जैसे दिखें।


इस कार्यशाला में हमने यह भी सीखा कि कविता, गीत और नवगीत में क्या अंतर है। अभी तक हमने मात्राएँ कैसे गिनें यह नहीं सीखा है तो अगली पोस्ट में यह सीखेंगे कि मात्राएँ कैसे गिने। बाएँ कॉलम में अगली कार्यशाला की घोषणा हो चुकी है। कुछ रचनाएँ हमारे पास पहुँच भी गई हैं। बाकी अनुसरणकर्ताओं की रचनाओं की प्रतीक्षा है।

कार्यशाला के जिन 6 गीतों को पाठशाला के अध्यापकों ने अनुभूति में प्रकाशन के लिए चुना है उनके रचनाकार हैं- संजीव गौतम, अनाम, मुक्ता पाठक, अर्बुदा ओहरी, मानसी और गौतम राजरिशी। छहों गीतकारों को बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ गीत अनुभूति में यहाँ पढ़े जा सकते हैं। लेख के अंत में शास्त्री के कुछ शब्द पुनः
नवगीत की पाठशाला के प्रथम मास की बहुत बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसमें १८ नवगीतों की रचना की गई जो आज की आवश्यकता है। मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि सभी प्रतिभागियों ने बड़े मन से गीत लिखे । अगले विषयों पर भी गीत के नियमों को ध्यान में रखकर लिखेंगे। सभी को बहुत बहुत शुभकामना।
आप सबके विचार आमंत्रित हैं। -- पूर्णिमा वर्मन

18 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तो सहज ही विश्‍वास नहीं हो रहा पूर्णिमा जी...

    और इन तमाम टिप्पणियों और निर्देशों को एक साथ संकलित करके हम सब पर बड़ा उपकार हुआ है।

    कार्यशाला की जय हो !!!!

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  2. गौतम जी, आपकी तरह मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा कि इतनी महत्वपूर्ण बातें सामने निकलकर आई हैं। हम सबको कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है।

    - पूर्णिमा वर्मन

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  3. पूर्णिमा जी - अपनी अकल थोड़ी मोटी है। समझने में वक़्त लगता है। (प्यार का पहला ख़त …)

    आचार्य जी के नवगीत के अनुसार नवगीत के मूल तत्व क्या हैं? एक एक शब्द को छान मारा, तब जा कर ये सूची बनी। आप देखें और बताए कि यह सूची कितनी सही है और कितनी गलत।
    - कम शब्द
    - भाव ज्यादा
    - न्यून सज्जा
    - नया शिल्प
    - नए बिम्ब
    - नए प्रतीक
    - कम कलश
    - ज्यादा नींव
    - जमीन से जुड़े हो
    - ताजे हो

    मैंने इस नवगीत की हर पंक्ति की मात्राएँ गिनी। गिनी क्या गिनवाई। मात्रा गणक (http://tinyurl.com/maatra) के सौजन्य से। मुझे तो कोई लय/ताल नहीं बनती दिखाई दे रही। आप थोड़ा समझाए तो समझ में आए।

    गीत क्या? ( कुल मात्राएं = 5 )
    नवगीत क्या है.? ( कुल मात्राएं = 9 )
    यह समझ लें, ( कुल मात्राएं = 7 )
    फिर लिखें. ( कुल मात्राएं = 5 )

    गीत संसद में ( कुल मात्राएं = 9 )
    सभी से, ( कुल मात्राएं = 5 )
    बेहतर ही ( कुल मात्राएं = 7 )
    हम दिखें. ( कुल मात्राएं = 5 )

    शब्द कम, ( कुल मात्राएं = 5 )
    हों भाव ज्यादा. ( कुल मात्राएं = 9 )
    न्यून सज्जा, ( कुल मात्राएं = 6 )
    अधिक सादा. ( कुल मात्राएं = 7 )

    शिल्प-बिम्ब ( कुल मात्राएं = 6 )
    प्रतीक नव हों, ( कुल मात्राएं = 9 )
    कलश कम हों, ( कुल मात्राएं = 7 )
    नींव ज्यादा. ( कुल मात्राएं = 7 )

    धरा से ( कुल मात्राएं = 5 )
    ऊगे हुए ( कुल मात्राएं = 6 )
    नव अंकुरों ( कुल मात्राएं = 6 )
    जैसे दिखें...( कुल मात्राएं = 7 )

    सद्भाव सहित
    राहुल
    http://mere--words.blogspot.com

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  4. इतना कुछ सीखने को मिला इस कार्यशाला से। ये तो एक संगीत की कक्षा जैसा ही हो गया, ताल, मात्रा, छंद आदि सभी का ज्ञान एक साथ। अगली कार्यशाला गर्मी के दिन के लिये भी तयारी हो रही है।

    अनुभूति में प्रकाशित सभी रचनाओं को बधाई।

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  5. कार्यशाला में बहुत सीखने को मिल रहा है। पूर्णिमा जी की यह पोस्ट बहुत काम की लगी। शुक्रिया।

    अगली कार्यशाला-पोस्ट का इंतज़ार है क्योंकि नवगीत में मात्राओं की गिनती कैसे करुँ इसमें अभी तक उलझी हुई हूँ।

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  6. नवगीत में लय और प्रवाह पर विशेष ध्यान दिया जाता है, मात्राओं पर विशेष ध्यान अनिवार्य नहीं है।
    आचार्य संजीव जी के नवगीत -
    गीत क्या?
    नवगीत क्या है?
    यह समझ लें,
    फिर लिखें।
    गीत संसद में
    सभी से,
    बेहतर ही
    हम दिखें।
    ...... में लय और प्रवाह पूरी तरह से सुरक्षित है, कहीं प्रवाह टूटा नहीं है........
    सभी को वधाई जिनके नवगीत अनुभूति में प्रकाशनार्थ चुने गए हैं........ दूसरी कार्यशाला में और अच्छे नवगीत पाठकों को पढ़ने के लिए मिलेंगे ...... ऐसी उम्मीद है।
    -डा० व्योम

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  7. ये क्या दादा उपाध्याय जी मशीनों से मात्राएं जुड्वाने लगे. अरे अब क्या मशीनें कवितायें भी लिखेंगी? हे राम! क्या साहित्य को ये दिन भी देखने होंगे? दादा मशीन ने ज्यादातर गणना गलत की है. उदाहरण..
    न्यून सज्जा, ( कुल मात्राएं = 6 )
    प्रतीक नव हों, ( कुल मात्राएं = 9 )
    नव अंकुरों ( कुल मात्राएं = 6 )
    कटारे जी से निवेदन कि उपाध्याय जी के तर्कों पर विस्तार से टिप्प्णी दें ताकि उनके साथ-साथ शेष मित्र भी और बेहतर समझ लें.

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  8. राहुल जी बहुत अच्छे प्रश्नों को रखते हैं और हम सबका यही उद्देश्य है कि गीत के बारे में चर्चा होती रहे। जहाँ तक आचार्य सलिल जी के गीत की मात्राओं का प्रश्न है, तो बहुत ही नपी तुली लय है उनकी और मात्राएँ भी पूर्ण हैं। आपने जो मात्राओ की गणना की है पहले उसे सुधार लें ,फिर ध्यान से देखें ।
    सलिल जी का गीत ७ मात्रा वाले ताल रूपक के लिये लिखा गया है। इसकी दो पंक्तियों का योग १४ होता है ।स्थाई के अन्त में २ मात्रा का विराम है । यहाँ २ मात्रा रुका जाता है। यदि वहाँ सब और जोड़ कर देखें तो समझ में आयेगा।
    गीत क्या? ( कुल मात्राएं = 5 )
    नवगीत क्या है.? ( कुल मात्राएं = 9 )
    यह समझ लें, ( कुल मात्राएं = 7 )
    फिर लिखें. ( कुल मात्राएं = 5 )
    ( सब ) = 2
    गीत संसद में ( कुल मात्राएं = 9 )
    सभी से, ( कुल मात्राएं = 5 )
    बेहतर ही ( कुल मात्राएं = 7 )
    हम दिखें. ( कुल मात्राएं = 5 )
    ( सब ) = 2
    शब्द कम, ( कुल मात्राएं = 5 )
    हों भाव ज्यादा. ( कुल मात्राएं = 9 )
    न्यून सज्जा, ( कुल मात्राएं = 7 )
    अधिक सादा. ( कुल मात्राएं = 7 )

    शिल्प-बिम्ब ( कुल मात्राएं = 6 )
    प्रतीक नव हों, ( कुल मात्राएं = 8 )
    कलश कम हों, ( कुल मात्राएं = 7 )
    नींव ज्यादा. ( कुल मात्राएं = 7 )

    धरा से ( कुल मात्राएं = 5 )
    ऊगे हुए नव ( कुल मात्राएं = 9)
    अंकुरों ( कुल मात्राएं = 5 )
    जैसे दिखें...( कुल मात्राएं = 7 )
    ( सब ) = 2

    जवाब देंहटाएं
  9. बड़ी ही रोचक बात है कि मात्रा गिनने का फ़्टवेयर वेब पर है। पर कुछ बातें सॉफ्टवेयर के परे भी होती हैं। उदाहरण के लिए अगर क के बाद बड़ा आ हो तो अक्सर दोनों मिलकर 3 नहीं बल्कि दो ही रह जाते हैं। इस तरह की कुछ बातें आधे अक्षरों के साथ भी होती हैं। इन्हें पंक्तियों की लय को देखते हुए समझना चाहिए।

    दूसरी बात यह है कि नवगीत में हम जिस प्रकार पंक्तियाँ लिखते हैं उसी प्रकार मात्राएँ नहीं जोड़ी जातीं। बल्कि जहाँ विराम होता है, यानी हम जहाँ रुकते हैं वहाँ तक एक पंक्ति के रूप में गिनते हैं। आचार्य जी के गीत को अगर 5 टुकड़ों में देखें तो हर टुकड़ा 26 मात्राओं का बना हुआ है। यह एक विशिष्ट प्रयोग है कि चारों पंक्तियों में अलग मात्राएँ रखते हुए भी अंत में कुल मात्राएँ 26 ही रहें। फिर भी लय न टूटे बहाव न रुके।

    काव्य के लिए मात्राएँ सीखना हैंडिल पकड़कर साइकिल चलाने जैसा है। जब हम हैडिल पकड़कर साइकिल चलाना सीख जाते हैं तब हम हैंडिल छोड़कर भी चला सकते हैं और सर्कस के जोकर की तरह एक पहिए की साइकिल भी चला सकते हैं। नवगीत में एक हाथ से साइकिल चलाने, दोनो हाथ छोड़कर साइकिल चलाने या एक पहिए वाली साइकिल चलाने की छूट है पर साइकिल चलनी चाहिए। गिरनी नहीं चाहिए। यह सब अभ्यास से आता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर हम पहले ही दिन हाथ छोड़कर साइकिल चलाएँगे तो गिर जाएँगे। पहले हैंडिल पकड़कर साइकिल चलाने का अभ्यास
    करना ज़रूरी है।

    कुल मिलाकर यह कि लय व ताल दिमाग में हों तो मात्राएँ सही बनती हैं और नवगीत रचना आसान हो जाता है फिर चाहे मात्राएँ संगीत की हों, गज़ल की हों या सॉनेट की ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता। नवगीत में सब आत्मसात हो जाता है। जिस प्रकार संगीत में विवादी स्वर संगीत की शोभा बढ़ाता ही है घटाता नहीं उसी प्रकार एक अच्छा नवगीतकार मात्राओं को तोड़कर भी बहुत सुंदर प्रभाव उत्पन्न करता है। इस प्रकार के उदाहरण हम इस पाठशाला में आगे देखेंगे।
    --पूर्णिमा वर्मन

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  10. पूर्णिमा जी - बिल्कुल सही। कहते हैं ना कि कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ सकते हैं। जो लकीर के फ़कीर रह गए, वे बस फ़िसड्डी ही रह गए।

    अब अनाम जी की ही रचना ले लीजिए, उसे तारीफ़ों के पुल से बाँधा गया। जबकि उसने कार्यशाला 1 के अधिकांश नियम तोड़ें। "प्यार का रंग न बदला" होना चाहिए था, लेकिन "प्यार का रंग नहीं बदला" लिखा गया। कम से कम दो अंतरे होने चाहिए थे, वहाँ बस एक ही मौजूद था।

    और अब यह आचार्य जी का 'नवगीत' - कितने अंतरे हैं इसमें? सिर्फ़ एक!

    आपने हर पंक्ति में 26 मात्राएँ गिनी। कटारे जी ने स्थाई में 26 गिनी और अंतरे में 28।

    बिचारा मात्रा गणक यंत्र। जब आप दो के अपने अपने तरीके हैं तो इस यंत्र के निर्माता का भी एक अपना ही तरीका होगा।

    कटारे जी - मात्रा की गणित से मैं वाकिफ़ नहीं हूँ - लेकिन ये क्या कि आप 2 मात्राएँ अपने आप जोड़ ले? और अगर जोड़नी ही है तो कोई तुक तो हो, नियम तो हो?

    आप ने कहा कि स्थाई में 'सब' जोड़ ले। 'सब' क्यों? क्या कोई भी दो मात्राओं वाला शब्द नहीं चल सकता? या आप 'सब' इसलिए कह रहे हैं कि आप इस नवगीत को ऐसे पढ़ रहे हैं:

    गीत क्या? नवगीत क्या है?
    यह समझ लें, फिर लिखें सब
    गीत संसद में सभी से,
    बेहतर ही हम दिखें सब

    शब्द कम, हों भाव ज्यादा
    न्यून सज्जा, अधिक सादा
    शिल्प-बिम्ब प्रतीक नव हों,
    कलश कम हों, नींव ज्यादा
    धरा से ऊगे हुए नव
    अंकुरों जैसे दिखें सब

    जाहिर है, इस शब्द को जोड़ने से कविता का मूलभाव नहीं बदल रहा। अगर ऐसा है तो आचार्य जी ने खुद क्यों नहीं जोड़ दिया? एक शब्द कम करने के चक्कर में? (शब्द कम हो, भाव ज्यादा…) हर पाठक आप सा गुणी तो नहीं होता कि उपयुक्त शब्द खोज निकाले।

    अब आते हैं मात्राओं की गिनती पर:
    गी-2, त-1, क्या-2; न-1, व-1, गी-2, त-1, क्या-2, है-2 = कुल 14
    य-1, ह-1, स-1, म-1, झ-1, लें-2, फि-1, र-1, लि-1, खें-2, स-1, ब-1 = कुल 14
    गी-2, त-1, सं-2, स-1, द-1, में-2, स-1, भी-2, से-2 = कुल 14
    श-1, ब्द-2, क-1, म-1, हों-2, भा-2, व-1, ज्या-2, दा-2 = कुल 14
    न्यू-3, न-1, स-1, ज्जा-2, अ-1, धि-1, क-1, सा-2, दा-2 = कुल 14
    शि-1, ल्प-2, बि-1, म्ब-2, प्र-1, ती-2, क-1, न-1, व-1, हों-2 = कुल 14
    क-1, ल-1, श-1, क-1, म-1, हों-2, नीं-2, व-1, ज्या-2, दा-2 = कुल 14
    ध-1, रा-2, से-2, ऊ-2, गे-2, हु-1, ए-2, न-1, व-1 = कुल 14
    अं-2, कु-1, रों-2, जै-2, से-2, दि-1, खें-2, स-1, ब-1 = कुल 14

    क्या मेरी गणना सही है? मैं समझता था कि 'से', 'गे' को 1 मात्रा गिना जाएगा। लेकिन आपकी गणना के आधार पर मैं इसे अब 2 गिन रहा हूँ।


    सद्भाव सहित,
    राहुल
    http://mere--words.blogspot.com

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  11. राहुल जी, जैसा मैंने पहले कहा, कुछ शब्दो को लघु (एक) या गुरू (दो) जिस प्रकार वे जिस जगह पर उच्चारित किए जाते हैं, उस प्रकार गिना जाता है। जैसे अ(1)+अ(1)=आ(2) होता है, आ(2)+अ(1)=आ(2) होता है और आ(2)+आ(2)भी =आ(2) होता है। यह दीर्घ संधि का नियम है। शायद बचपन की किसी कक्षा में पढ़ा हो। इसके अतिरिक्त नवगीत में अक्सर मात्राओं को खाली भी छोड़ते हैं। ज़ाहिर है हम अभी वहाँ तक नहीं पहुँचे हैं।

    संगीतकार जब किसी गीत को संगीतबद्ध करते हैं तब खाली मात्राओं को भरने के लिए संगीत या आलाप का सहारा लेते हैं। इसलिए शास्त्री जी ने उसे उस प्रकार गिना। एक ही गीत को दो तालों में संगीतबद्ध किया जा सकता है उसके लिए खाली मात्राएं या साहित्यर में जिसे अवकाश कहते हैं अलग-अलग हो सकते हैं। शास्त्री जी ने गीत को 7 मात्राओं की ताल में बाँधा और उस तरह से गणना की।

    बेहतर हो लिखना जारी रखें, मात्राएँ- गिनने से नहीं अभ्यास से बराबर होती हैं। केवल मात्राओं से भी गीत, नवगीत या गज़ल नहीं बन जाते। काव्य तो होना ही होना चाहिए अगर भाव और भाषा सौंदर्य न हुआ तो केवल छंद के अनुसार सही मात्राओं की पंक्तियाँ लिख देने से तो गीत नहीं बन जाएगा। नवगीत लिखने में रुचि है तो इसका एक ही रास्ता है खूब पढ़ें खूब लिखें। जो लोग साहित्य, संगीत या गज़ल की पृष्ठभूमि से आए हैं जाहिर है उनके लिए यह आसान है क्यों कि वे जानते हैं कि कहाँ कहाँ छूट ले सकते हैं और कहाँ कहाँ नियमों को ज़ोर से पकड़े रहना है।
    -- पूर्णिमा वर्मन

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  12. अरे ये क्या .... ! मात्राओं की माथापच्ची में कहाँ पड़ गए आप सब.......? मात्राओं और सगण, मगण ....... की माथापच्ची से बचने के लिए ही तो नवगीत का जन्म हुआ......... मात्राएँ गिनकर गीत या नवगीत नहीं लिखा जा सकता केवल ढाँचा तैयार किया जा सकता है...... और नवगीत एक ढाँचा नहीं है ..... एक सशक्त कविता है जो पाठक को बहुत कुछ संदेश देती है, उससे संवाद करती है.... उसमें कथ्य पर बल दिया जाता है शिल्प पर उतना नहीं..... प्रवाह न टूटे इसका ध्यान रखे........... मात्राएँ ही गिननी हैं तो सवैया या अन्य मात्रिक छन्द लिखिए ........ नवगीत को रीतिकाल के पटल पर खींच कर मत ले जाइए.......... उचित होगा कि अपने अंदर नवगीतकार को जगाइए ....मात्राओं के गणित की गड़गड़ाहट से उस नवजात को भयभीत मत कर दीजिए........
    -डा० जगदीश व्योम

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  13. राहुल जी ने फिर बहुत मेहनत की है गुणा भाग करने में,और कई प्रश्न भी उठाये हैं । जिनका यथा संभव समाधान करने की कोशिश करता हूँ। सबसे पहले यह जान लें कि जिस प्रकार भाषा सीखने के प्रमुख चार चरण होते है् ।पहला सुनना दूसरा बोलना तीसरा पढना और चौथा है लिखना । उसी प्रकार गीत के साथ भी यही नियम लागू होता है। पहले खूब सुनें, फिर बोलें, फिर खूब पढें तो फिर लिखना आसान हो जायेगा । यदि उसका व्याकरण भी जान लें तो बहुत अच्छा लिखा जा सकता है। गीतों को ध्यान से पढें और गुनगुनायें तो अपने आप गीत का व्याकरण समझा जा सकता है।टिप्पणी भी बताती हैं कि गीत कैसा है। आपने अनाम जी के गीत पर प्रश्न किया है तो गीत किसी एक नियम में नहीं बाँधा जा सकता .वह कई प्रकार से लिखा जाता है।उनका गीत १६ मात्रा वाली १६ पंक्तियों का है जो पर्याप्त है। सलिल जी का गीत टिप्पणी मे् आया है इसलिये वह उदाहरण स्वरूप है। मैंने जो "सब" जोड़ने की बात की है वह केवल समझने के लिये है। और कोई शब्द भी आप ले सकते हैं। लेकिन सुन्दरता अवकाश रखने में ही है। आपने जो मात्राओं की गणना की है वह ठीक है केवल दो जगह गलत है । न्यून ३ और सज्जा ४ मात्रा हैं।

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  14. कटारे जी एवं पूर्णिमा जी - मेरे प्रश्नों को पढ़ने का और उनका उत्तर देने का शुक्रिया.

    आज मैंने YouTube पर कटारे जी के कुछ गीत सुने. बहुत आनन्द आया. और जैसा कि आपने कहा, कुछ सीखने को भी मिला..

    एक रचना आज लिखी थी... उसका नवगीत से कोइ लेना देना नहीं है.... फिर भी यहाँ लिख रहा हूँ ... अब moderator चाहें तो इसे रहने दे न चाहें तो delete कर दें

    चीख रहे हैं चित्र सारे
    मिमिया रहा है काव्य
    रंगों की नुमाईश है
    साहित्य का दुर्भाग्य

    शब्द के बल पर जो कह देती थी
    अपने मन की बात
    पिक्सल-पिक्सल मर रही है
    फोटोशॉप्पर के हाथ

    माँ एक ऐसा शब्द है
    जिसमें सैकड़ो अर्थ निहित
    फोटो जोड़ा साथ में
    अर्थ हुए सीमित

    जिसे पढ़ के सुन के होते थे
    पाठक-श्रोता भाव-विभोर
    पलट-पलट के ग्लॉसी पन्ने
    हो रहे हैं बोरम्-बोर

    एक हज़ार शब्द के बराबर
    होता होगा एक अकेला चित्र
    लेकिन एक भी ऐसा चित्र नहीं
    जो समझा सके कबीर का कवित्त

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ
    जैसे पेड़ खजूर
    लिखते आज कबीर तो क्या
    साथ में होता पेड़ हुज़ूर?

    सिएटल | 425-445-0827
    30 मई 2009
    ============ ========= =
    पिक्सल = pixel ; फोटोशॉप्पर = photoshopper;
    ग्लॉसी = glossy; बोर = bore
    A picture may be worth a thousand words. But mere words can inspire millions


    सद्भाव सहित
    राहुल

    जवाब देंहटाएं
  15. राहुल उपाध्याय ने अनाम के नवगीत में तमाम कमियाँ बताईं हैं, इससे यह लगता है कि गीत और नवगीत की उन्हें जानकारी होनी चाहिए। बहुत सारा मात्राओं का गणित भी लिखकर पाठशाला के सदस्यों तक पहुँचाया है........ उचित होगा कि वे (राहुल) अपना कोई प्रतिनिधि गीत, नवगीत या कविता की चार पंक्तियाँ अवश्य भेजें ताकि सभी सदस्य यह समझ सकें कि गीत या नवगीत की रचना में वे कितने दक्ष हैं। अन्यथा अन्य सदस्य जो यहाँ नवगीत लिखने का अभ्यास करना चाहते हैं उनके समय का सदुपयोग नहीं हो सकेगा। ...... नियम बनाने वाले ही नियमों को तोड़ते हैं........ (या) ......अमुक (अनाम) के गीत की तारीफ के पुल बाँध डाले........ जैसी टिप्पणी करना यहाँ प्रासंगिक नहीं लगता।
    -अनाम

    जवाब देंहटाएं
  16. इस आखिरी टिप्पणी का मैं भी पुरजोर समर्थन करता हूँ....

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  17. नवगीत की पाठशाला में
    आज भी आलेखों के साथ-साथ
    टिप्पणियों के माध्यम से
    इतनी ही महत्त्वपूर्ण चर्चाओं की आवश्यकता है!

    जवाब देंहटाएं
  18. राहुल उपाध्याय जी सुझाया गया
    मात्रा-गणक सही नहीं है!

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आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।