1 जून 2009

१- मालवा की रातें मालवा के दिन

मालवा की रातें
मालवा के दिन
याद है अभी भी
गर्मी के दिन

जाता था अपनी नानी के घर
खेलता था अपने भाईयों के संग
दिन भर नहाता था कुएँ पे मैं
बावला सा घूमता था नंग-धड़ंग
याद है वो बाल्टियाँ
जो खींची गिन-गिन

दो या तीन नहीं बच्चे थे वहाँ
बच्चे थे पूरे दस-बारह वहाँ
बेर से ले कर तरबूज-ककड़ी तक
हर चीज की होती थी पांती वहाँ
याद है वो कुल्फ़िया
जो खाई गिन-गिन

सोते थे ठंडे पतरों पर
जगते थे मोर की तानों पर
पी के कड़वे नीम का रस
खाते थे मिश्री मुट्ठी भर-भर
याद है अभी भी
वो प्यारे पल-छिन
--राहुल उपाध्याय

10 टिप्‍पणियां:

  1. नवगीत तो नहीं है ये अभी, हाँ रचनाकार यदि थोड़ी मेहनत और कर सकें तो कुछ बात बन सकती है। मुझे लगता है कि नवगीत लिखने के लिए कुछ नवगीत पढ़ लिए जाएँ तो बहुत कुछ समझ में आ जाता है। बचपन की स्मृतियों को नवगीत में दिया जा सकता है पर ऐसे नहीं, कुछ नयेपन के साथ दीजिए। तुकबंदी से नवगीत का दूर दूर तक का रिश्ता नहीं है। "गर्मी के दिन" का नवगीत में आना आवश्यक नहीं है ऐसा लिखा भी गया है।
    -अनाम

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  2. हमेँ तो यह कविता पसँद आयी
    बचपन की यादेँ
    और अगर "गर्मी के दिन " शब्द
    आ भी जायेँ तो क्या हर्ज़ है ?

    ये शब्द "जरुरी नहीँ " ये आदेश है,
    आ जायेँ उसका निषेध तो नहीँ कहा गया है ???

    -- लावण्या

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  3. ये नया कांसेप्ट तो बहुत ही रोचक है। यानि कि बस गुरूजनों को मालूम है या फिर खुद रचनाकार को कि आज किसकी रचना लगी है।
    पाठशाला में सस्पेंस....!!!
    वाह !
    आज की रचना का विषय-वस्तु थोड़ा हट कर लगा, लेकिन कहीं-कहीं से कमजोर भी..

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  4. मालवा की रातें मालवा के दिन अच्छे रहे। रचना अच्छी है विषय वस्तु भी लेकिन नवगीत के रूप में अभी ढली नहीं है। शास्त्री जी होते तो कुछ शब्द इधर उधर कर के इसको रवानगी देते। वे 5 दिन के लिए एक सेमीनार में बाहर हैं पर उनका वादा है कि लौटकर वे हर रचना पर अपनी टिप्पणी देंगे। इस बीच एक दूसरे का उत्साह बढ़ाते हुए, कुछ सीखते-कुछ सिखाते हुए हमें आगे बढ़ना है।

    इस बार सभी की रचनाएँ पहली कार्यशाला से बेहतर हैं जो खुशी की बात है। भास्कर चौधरी, अनाम, पारुल, राघव, मोहिन्द्र कुमार की रचनाओं की प्रतीक्षा है। शार्दूला और भावना छुट्टी मना रही हैं इसलिए इसबार उनकी रचनाएँ तो नहीं आएंगी। शायद कुछ नए लोग और आ मिलें लिखना चाहें तो देर से ही सही रचना भेज दें। गिरीश बिल्लौरे मुकुल, कमलेश कुमार दीवान और डॉ. श्रीमती अजित गुप्ता तीन नए रचनाकार हैं इस बार। सबका हार्दिक स्वागत है।

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  5. रचनाकार का शायद ये नवगीत लिखने का पहला प्रयास है. प्रयास किया ये अच्छी बात है. कथ्य में नवगीत का आभास है तुकें हैं लेकिन लय नहीं है उम्मीद है अगली कार्यशाला तक आ जायेगी. अनाम जी की टिप्पणी मार्के की है-"कुछ नयेपन के साथ" इस सूत्र को तो गांठ बांध लिया जाय. इस बार नाम नहीं दिये जायेंगे यह निर्णय पूरी तरह सही है. इससे उम्मीद है कि टिप्पणी रचना को मिलेगी और बिना किसी भेद-भाव के. एक बात और पाठशाला में कुछ अच्छे नवगीत संकलनों के नाम प्रकाशक के नाम के साथ दिये जायें तो कैसा रहे ताकि यदि कोई पढना चाहे तो मंगा सके जैसे भाई यश मालवीय जी के संकलन -कहो सदाशिव, उडान से पहले, दादा कैलाश गौतम जी का संकलन -सर पर आग आदि-आदि प्रकाशक-आशु प्रकाशन,1143/31,पुराना कटरा,इलाहाबाद. हम जितने नवगीत पढेंगे नज़र उतनी ही साफ़ होगी क्योंकि परिभाषाओं से जो नहीं आ पाता अधिकतर उदाहरणों से आ जाता है. भाई अनाम जी से मेरा भी विनम्र निवेदन है कि अब तो अपने बारे में कुछ अता-पता दें या ये ही बता दें कि क्यों नहीं.

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  6. अच्छी कविता है पर थौड़ी पच्चीकारी हो जाए तो सुन्दर लगने लगेगी। बचपन की याद को कविता में सँजोने से कविता की प्रभावकता बढ़ जाती है क्योंकि सबने बचपन को जिया है। इसलिए इस तरह की कविताओं में पाठक अपना बचपन खोजने लगता है..... यहाँ भी रचनाकार ने सपाट बयानी के साथ कह दिया है जो उसे कहना था। इसे नवगीत बनाने में बस थौड़ा सा ही परिश्रम करना होगा।
    कुछ ऐसा भी लिखा जा सकता है (यह केवल संकेत मात्र है)-

    मालवा के रात औ दिन
    गर्मियों की याद के दिन

    जाता था नानी के घर पर
    धमा चौकड़ी करता दिनभर
    कुएँ पर जा खूब नहाता
    नंग धड़ंग बावला बनकर

    तरह तरह के खेल खेलकर
    सब मित्रों को खूब छकाता
    याद अभी तक सब है मुझको
    खींची थीं बाल्टियाँ गिन गिन।
    गर्मियों की याद के दिन।।

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  7. संजीव जी आपने अनाम के विषय में जानने के लिए लिखा है, धन्यवाद

    क्या करेंगे जानकर
    बेनाम (अनाम) रहने दें
    नाम में ही क्या धरा है
    काम करने दें।
    -अनाम

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  8. ये बात तो सही है कि जितने नवगीत पढेंगे उतने नवगीत के समझ बढेगी. बचपन की यादे सबकी अलग अलग हैं लेकिन हैं सबकी. और कविता का इससे पवित्र विषय कोई हो नहीं सकता.

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  9. Namaskar,
    Anchahe pahun and Phool gaya Bogenvila mujhe achhe lage hain.
    ----KshetrapalSharma

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  10. प्रयास तो अच्छा किया गया हे कवि द्वारा पर गीत की लय नहीं बन सकी है । कुछ काट॰छाँट करके देखिये॰॰
    शर्द मालवा की वे रातें
    और तेजस्वी दिन
    याद अभी भी आ जाते हैं
    वे गर्मी के दिन

    जाता था ग्रीष्मावकाश में सतत वहाँ पर
    कितना सुन्दर लगता था वह नानी का घर
    लुका छुपी का खेल खेलते घर के अन्दर
    खूब नहाते मस्ताते थे वहीं कुएँ पर
    याद अभी आ रही बाल्टियाँ
    जो खींची गिन-गिन

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