3 जून 2009

२- याद करें हम

याद करें हम गर्मी के दिन

दुपहर सूनी
धूप की चादर
धरती व्याकुल प्यासा सागर
पुरवा संग पत्तों की झिन झिन
याद करें हम गर्मी के दिन

घना कनेरा
गर्मी भूले
शाम चमेली आँगन झूले
सूने साँझ सकारे तुम बिन
याद करें हम गर्मी के दिन

खुशबू महके
धरती सारी
सुबह ओस की ठंडक प्यारी
ऋतु मनमोहक खुशियाँ अनगिन
याद करें हम गर्मी के दिन

--संध्या

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर याद है गर्मी के दिनों की। मुझे लगता है कि यह सहज, सरल, सुंदर नवगीत है। रचनाकार को बधाई।

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  2. सहमत मुक्ता जी, 'धूप की चादर' प्रयोग नया तो नहीं पर 'सूनी दुपहर' के साथ मिलकर नवीनता पैदा करता है। सूखे पत्तों की झिन झिन सुरीली लगी। घना कनेरा भी अच्छा है। बधाई

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  3. इस बार कार्यशाला-२ में अब तक प्रकाशित सभी नवगीतों/कविताओं में एक अच्छा standard देखने को मिल रहा है। बिम्बों आदि का सुंदर प्रयोग हुआ है, जो पहली कार्यशाला में उतना नहीं हुआ था। शायद इसका कारण शीर्षक भी हो सकता है।

    सुंदर नवगीत- याद करें हम।

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  4. सहमत मानोसी जी. ये पाठशाला की सफलता है

    'ऋतु मनमोहक खुशियाँ अनगिन'
    गर्मियों के लिये कम ही ऐसा पढने को मिला है.
    रचनाकार को बधाई.

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  5. ये नवगीत भी
    सुँदर ध्वनि प्रयास लिये
    अच्छा लगा
    - लावण्या

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  6. बहुत सुंदर लय बनी है...
    "सूने सांझ सकारे तुम बिन"
    ’ऋतु मनमोहक खुशियां अनगिन"

    मनमोहक पंक्तियां...

    अभी सोचता हूँ कि रचनाकार का नाम नहीं लगाने वाली बात इतनी अच्छी भी नहीं थी...क्योंकि इन बेहतरीन नायाब रचनाओं को पढ़ने के बाद मन बरबस गीतकार का नाम जानने को मचल पड़ता है।
    गुरूजनों से निवेदन है कि इस पर पुनर्विचार किया जाये...!!

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  7. बहुत ही प्यारा नवगीत लगा। खूब सुन्दर और अच्छे शब्दों का प्रयोग किया है। रचनाकार को बहुत बधाई।
    गौतम जी ने सही कहा कि इतना अच्छा नवगीत पढ़ने के बाद गीतकार का नाम जानने का मन करता है पर शायद इस उत्सुकता का भी अपना अलग आनन्द है।

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  8. धैर्य रखें गौतम जी, बस 15 ही तो गीत हैं, उसके बाद सबको रचनाकारों का नाम पता चल जाएगा।
    पूर्णिमा वर्मन

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  9. शाम चमेली अंगना झूले
    सूने सांझ सकारे तुम बिन
    सुन्दर मनोभाव,

    धूप की चादर का प्रयोग बहुत ही अच्छा लगा।
    सुन्दर गीत. बधाई

    शशि पाधा

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  10. शिल्प अति उत्तम है लेकिन गर्मी के दिनों मैं सुवह ओस कहा होती है ? ऋतु मनमोहक - गर्मी ले लिए पहली वार इतने आनंदकर शब्द पढ़े. धरती व्याकुल प्यासा सागर - सागर की अनंत प्यास कही पढा था "प्यास सागर की कभी मिटती नहीं है" अच्छा प्रयास.

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  11. चलिये किसी ने तो गर्मी के दिनों को मनमोहक कहा । नहीं तो कोई अनचाहे पाहुन से ,कोई निष्ठुर से, कोई अगन लगाने वाले ,कोई विरहन की पीड़ा से गर्मी के दिन कहते चले आ रहे थे। गीतकार को सुबह ओस की ढण्डक का भी अनुभव हो रहा है और इन दिनों को याद करना चाहता है। बहुत सुन्दर

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