4 जून 2009

३- गर्मी के दिन

कुछ अलसाये
कुछ कुम्हलाये
आम्रगन्ध भीजे, बौराये
काटे ना
कटते ये पल छिन
निठुर बड़े हैं गर्मी के दिन

धूप-छाँव
अँगना में खेलें
कोमल कलियाँ पावक झेलें
उन्नींदी
अँखियां विहगों की
पात-पात में झपकी ले लें
रात बिताई
घड़ियां गिन-गिन
बीतें ना कुन्दन से ये दिन

मुर्झाया
धरती का आनन
झुलस गये वन उपवन कानन
क्षीण हुई
नदिया की धारा
लहर- लहर
में उठता क्रन्दन
कब लौटेगा बैरी सावन
अगन लगायें गर्मी के दिन।

सुलग- सुलग
अधरों से झरतीं
विरहन के गीतों की कड़ियाँ
तारों से पूछें दो नयना
रूठ गई
क्यों नींद की परियाँ
भरी दोपहरी
सिहरे तन-मन
विरहन की पीड़ा से ये दिन

--शशि पाधा

13 टिप्‍पणियां:

  1. तारों से पूछें दो नयना
    रूठ गई
    क्यों नींद की परियाँ
    सुंदर गीत है। बहुत बहुत बधाई। लगा दी अगन कुंदन से दिनों ने।

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  2. बहुत सुंदर, बहुत ही सुंदर कविता। वाकई ग्रीष्म की तपन उतर आई कविता में।

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  3. अच्छा गीत
    कुछ अलसाये
    कुछ कुम्हलाये
    आम्रगन्ध भीजे, बौराये
    निर्वाह अच्छा है लेकिन भाषा के स्तर पर नवीनता कम है
    कोमल कलियाँ पावक झेलें
    उन्नींदी
    अँखियां विहगों की
    क्षीण हुई
    नदिया की धारा
    लहर- लहर
    में उठता क्रन्दन
    कब लौटेगा बैरी सावन
    अगन लगायें गर्मी के दिन।
    क्षीण हुई
    नदिया की धारा
    लहर- लहर
    में उठता क्रन्दन
    कब लौटेगा बैरी सावन
    अगन लगायें गर्मी के दिन।
    विरहन की पीड़ा से ये दिन
    यहां नवीनता कम पारम्परिकता ज्यादा.

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  4. आम्रगंध का भीजना, बौराना, और उन पलों का काटे ना कटना, गर्मियों के दिनों का निठुर होना, अंगना में धूप छाँह का खेलना, कोमल कलियों का पावक समान गर्मी को झेलना, उनीदी अंकियों वाले विहगों का पत्तों के बीच झपकी लेना, नदिया की धारा का क्षीण हो जाना.... इतनी सारी बातों को नवगीत में सलीके से पिरोना बहुत मँजी हुई लेखनी के ही वश की बात है। बहुत सुन्दर और परिपक्व नवगीत के रचनाकार को बहुत बहुत वधाई। नवगीतकार का नाम जानने की सभी को उत्सुकता रहेगी।

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  5. रात बिताई
    घड़ियां गिन-गिन
    बीतें ना कुन्दन से ये दिन

    मुर्झाया
    धरती का आनन
    झुलस गये वन उपवन कानन
    क्षीण हुई
    नदिया की धारा
    लहर- लहर
    में उठता क्रन्दन
    कब लौटेगा बैरी सावन
    अगन लगायें गर्मी के दिन
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    नवगीत का ह्र्दय है ये पँक्तियाँ
    सुँदर प्रवाह है यहाँ भाषा मेँ -
    बहुत अच्छा लगा ये प्रयास भी -
    - लावण्या

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  6. dvuteey karyashala men bahut sundar navgeet aa rahe hain sabhi geetkaron ko bhut hut badhai main is samay prvas par hun hindi likhne ka sadhan nahin hai par men sabke geet prati din padhta hun lautkar kuchh likhunga

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  7. बहुत ही प्यारा गीत बन पड़ा है, ऐसा कि बस पढ़ते ही मन अनायास गाने लगे।
    "सुलग- सुलग
    अधरों से झरतीं
    विरहन के गीतों की कड़ियाँ
    तारों से पूछें दो नयना
    रूठ गई
    क्यों नींद की परियाँ
    भरी दोपहरी "

    बहुत प्यारी पंक्तियां...मेरा पहला गेस "मानोशी" होतीं, लेकिन उन्होंने टिप्पणी किया हुआ है पहले ही। खुद पूर्णिमा जी तो नहीं हैं?

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  8. देखा! इस बार क्या ज़बरदस्त नवगीत आ रहे हैं। विरहन के गीत की कड़ी ने सबको रिझाया हुआ है। नहीं भई, यह गीत मेरा नहीं। मेरे सारे गीत अच्छे हों वह ज़रूरी नहीं।
    - पूर्णिमा वर्मन

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  9. बहुत सुन्दर नवगीत। सहज प्रवाह नपे तुले शब्द, ग्रीष्म ॠतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों का सजीव चित्रण ,
    " उन्नींदी
    अँखियां विहगों की
    पात-पात में झपकी ले लें "
    मुर्झाया
    धरती का आनन
    झुलस गये वन उपवन कानन
    क्षीण हुई
    नदिया की धारा
    लहर- लहर
    में उठता क्रन्दन
    अत्यन्त सुन्दर गीत के लिये पुनः बधाई

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  10. कितना सुन्दर नवगीत है!! ढेरों बधाई। गर्मी के दिन को कुन्दन से दिन कहना भी बहुत अच्छा लगा।

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  11. यह अच्छा गीत है॔"कब लौटैगा बैरी सावन,अगन लगाये गर्मी के दिन ,अच्छी पक्तियाँ हैं।गीतकार को बधाई।

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  12. क्षीण हुई
    नदिया की धारा
    लहर- लहर
    में उठता क्रन्दन
    कब लौटेगा बैरी सावन
    अगन लगायें गर्मी के दिन।
    विरहन की पीड़ा से ये दिन
    bahut badhiya

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