गर्मी की
है बात निराली
दिन तपता पर रात सुहानी
जलता सूरज
आग लगाए
दावानल सा खूब जलाए
कोई
कहीं बचे न बाकी
माँगे मिले कहीं
ना पानी
गर्मी की
है बात निराली
दिन तपता पर रात सुहानी
तप कर
ही तो कुन्दन बनता
तप से सबका रूप निखरता
झीलों में,
सागर में पानी
गर्मी नहीं तो सब
बेमानी
गर्मी की
है बात निराली
दिन तपता पर रात सुहानी
--अर्बुदा ओहरी
है बात निराली
दिन तपता पर रात सुहानी
जलता सूरज
आग लगाए
दावानल सा खूब जलाए
कोई
कहीं बचे न बाकी
माँगे मिले कहीं
ना पानी
गर्मी की
है बात निराली
दिन तपता पर रात सुहानी
तप कर
ही तो कुन्दन बनता
तप से सबका रूप निखरता
झीलों में,
सागर में पानी
गर्मी नहीं तो सब
बेमानी
गर्मी की
है बात निराली
दिन तपता पर रात सुहानी
--अर्बुदा ओहरी
गर्मी के दिनों का यह नवगीत पहले अंतरे में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन करता है और दूसरे में ग्रीष्म की महिमा का। शब्दों का चयन सुंदर है, शैली में लय है, कुछ संदेश भी है- 'गर्मी नहीं तो सब बेमानी' कुल मिलाकर एक अच्छा नवगीत।
जवाब देंहटाएं--पूर्णिमा वर्मन
बहुत बढिया नवगीत...दिन की तपती गरमी के बाद रात सुहानी आती है। अच्छा पिरोया गया है शब्दों को....नवगीतगार को बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंएक बात तो है, दिन तपता पर रात सुहानी वही कह सकता है जो या तो रास्थान का हो या फिर मध्यपूर्व का। इसी प्रकार एक नवगीत में (याद करें हम में) सुबह ओस की ठंडक प्यारी कहा गया था। अब तो रचनाकार का नाम भी लग गया- संध्या। शायद वे भी मध्यपूर्व में रहती होगी। इस कार्यशाला में जगह जगह की गर्मी के दिन देखने को मिल रहे हैं। क्या बात है! कोई गीत यूरोप या अमेरिका से भी होता तो अच्छा था वैसे एक गीत इस प्रकार का था...गर्मबंडी वाली गुनगुनी धूप का... कार्यशाला सच में लाजवाब रही। आयोजकों को भी बधाई! सब लोग ध्यान से सब गीतों पर टिप्पणियाँ लिखें और सब गीतों पर लिखी गई टिप्पणियाँ ध्यान से पढ़ें तो और भी सीखने को मिलेगा। अनाम जी की रचना रह गई इस बार न जाने वे कहाँ हैं...
जवाब देंहटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंये नवगीत भी कुदरती विवरण के समीप है पसंद आया -
रचनाकारों के नाम ,
मैं पढ़ नहीं पा रही --
कहाँ लिखे गए हैं ?
- लावण्या
अच्छा नवगीत । गीत की सभी पंक्तियाँ १६ मात्रा वाली हैं किन्तु अंतिम पंक्ति " गर्मी नहीं तो सब बेमानी " में १७ मात्राएँ हैं जो " बिन गर्मी के सब बेमानी " जैसा कुछ किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंकटारे जी क्या "गर्मी नहीं तो सब बेमानी" में 'तो' की मात्रा गिराकर नहीं पढ सकते ?
जवाब देंहटाएंक्रपया मार्गदर्शन करें
तप कर
जवाब देंहटाएंही तो कुन्दन बनता
तप से सबका रूप निखरता
झीलों में,
सागर में पानी
गर्मी नहीं तो सब
बेमानी
sunder vichaar hai lekin raat suhaanee sirf registann mai hotee hai. baakee to rat din mai yahee anter hai ki raat mai surya kee tapan nahee hotee to jaise dukh kaa abhaav sukh hai aise hee garmee kee raat main suhanaa abhaas kar saktwe hain..
सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएं" तप कर ही तो कुन्दन बनता
जवाब देंहटाएंतप से सब का रूप संवरता"
बहुत मन को भाईं यह पंक्तियां । माननीय कटारे
जी का सुझाव ठीक लगा ।
एक सुन्दर रचना के लिये नवगीत कार कॊ बधाई।
--शशि पाधा
बेमिसाल रचना....
जवाब देंहटाएंअनाम का प्रश्न ’तो" को गिरा कर लघु करने वाला के जवाब की प्रतिक्षा में हम भी हैं
सुन्दर रचना
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