सुख
का मेरे पहचान रे !
तेरी सहज मुस्कान रे !
कहता है तू
तुझको नहीं अब
पूछता मैं इक जरा
इतना तो कह
है कौन फिर
इन धड़कनों में अब बसा
ले, सुन ले तू भी आज ये
तू ही मेरा अभिमान रे !
हर राग में
तू है रचा सब
छंद तुझसे ही सजे
सा-रे-ग से
धा -नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे !
आया जो तू,
लौ्टे हैं अब जीवन
में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे ये
सब महीने तेरे बिन
हर पल रहे तू साथ में
अब इतना ही अभियान रे !
--गौतम राजरिशी
लय और विषय से भटका हुआ. बहुत मेहनत मांग रहा है ये गीत. क्या नवगीत में मात्रा गिराने की छूट है?
जवाब देंहटाएंप्रत्येक वन्द की अन्तिम दो पंक्तियाँ अच्छी लग रही हैं। प्रारम्भ में सुख का मेरे पहचान रे के स्थान पर सुख की मेरे पहचान रे होना चाहिये। यहाँ का या की पहचान के लिये आया सुख के लिये नहीं है। जैसे आपकी पहचान कहा जाता है आपका पहचान नहीं। आशा है रचनाकार अन्यथा नहीं लेंगे।
जवाब देंहटाएंहर राग में
जवाब देंहटाएंतू है रचा सब
छंद तुझसे ही सजे
सा-रे-ग से
धा -नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे
अच्छी कोशिश है नवगीत लिखने की किन्तु पहली पंक्ति
सुख
का मेरे पहचान रे !
कुछ भ्रम उत्पन्न कर रही है इसे बदला जाना चाहिये
मैं इस कार्यशाला को देख रहा हूँ। कार्यशाला तीन की तीनों रचनाओं में से कोई नवगीत नहीं है। भ्रम में न रहें। संजीव गौतम ने अच्छी टिप्पणी की है। गीत अच्छे हैं पर नवगीत तो बिल्कुल ही नहीं हैं।
जवाब देंहटाएं-नवल
कोशिश अच्छी है, कहीं कहीं तो बहुत अच्छा जज़बाती बहाव है मगर नवगीत की राह से भटका हुआ गीत है जिसे मेहनत से दूर किया जा सकता है। एक अच्छी कोशिश की रचनाकार को मुबारकबाद देता हूँ।
जवाब देंहटाएंसुख
जवाब देंहटाएंका मेरे पहचान रे ! ये पंक्तियां कुछ खटकती हैं।
कहता है तू
तुझको नहीं अब
पूछता मैं इक जरा
इतना तो कह
है कौन फिर
इन धड़कनों में अब बसा
ले, सुन ले तू भी आज ये
तू ही मेरा अभिमान रे !
ये पंक्तियां यदि सुख के लिए है तो अजीब सी लगती हैं, क्योंकि कोई भी ऐसा इस दुनिया पर नहीं हैं जो सुख को नहीं पूछता है या उसकी कद्र नहीं करता है, अत: हमें तो भाव स्पष्ट नहीं हुए।
ज्यादातर लोगों की आपत्ति सुख का मेरे पहचान रे के विषय में हैं। मेरे विचार से यह एक प्रयोग है। तू यहाँ पुलिंग है। यह मित्र अथवा ईश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है। तू मेरे सुख का पहचान... यह सहज प्रयोग है। जिन लोगों ने उर्दू साहित्य पढ़ा है उनको शायद अजीब नहीं लगेगा। इस रचना में कहीं 14 और कहीं 15 मात्राओं का प्रयोग किया गया है रचना में लय और बहाव है। मात्राओं के विषय में कितनी सख्ती रखी जाय इस विषय में अलग अलग विद्वानों के अलग अलग विचार हो सकते हैं।
जवाब देंहटाएंनवगीत पसँद आया - रचनाकार, अपने वाक्य प्रयोगोँ को समझाता चले वही बेहतर है
जवाब देंहटाएंहरेक नवगीत पर टीप्पणी नहीँ दे पा रही - आजकल व्यस्तता बढ गई है -
- लावण्या
काश कि सब लोग इस ब्लौग-जगत में संजीव जी जैसी, अनाम भाई/बहन जैसी और अजीत गुप्त जैसी टिप्पणियां देने लगें तो हम जैसे छात्रों के लिये कितना सीखने को मिले।
जवाब देंहटाएंकटारे जी और पूर्णिमा जी, यदि ऊपर संजीव जी के प्रश्न का जवाब दिया जाये तो बेहतर हो।
क्या उर्दू ग़ज़लों की तरह यहाँ भी मात्रायें गिराने की छूट है?
अपने ईश को सम्बोधित करती हुई यह रचना हमें अच्छी लगी । पहली दो पंक्तियों के भाव रचना कार ही स्पष्ट कर सकता है ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
गौतम जी....
जवाब देंहटाएंमात्रा गिराने में छूट ....!!!
छूट जैसी बात ही अजीब लगती है.....
ईश्वर ने जो जबान दे रखी है ...वो बखूबी जानती है कि क्या गिराना है और क्या नहीं....
हाँ, इस गिराने उठाने कि वाट उन लोगों ने लगा रखी है जो इसे सहजता से ना लेकर लेखन में भी दर्शाना चाहते हैं....
मसलन...मेरा ..( मिरा )
तेरा ....( तिरा )
कभी.....( कभू )
कोई... ( कुई )
यहाँ पर आकर जबान अपनी सहजता खोने लगती है..और सवाल उठते हैं कि उर्दो ग़ज़ल में ऐसा ..और हिंदी गीत में वैसा....
और फलां गीत है..और फलां नवगीत है....सब बनावटी बातें हैं...एकदम कोरी बनावटी ....
गौतम जी....
जवाब देंहटाएंमात्रा गिराने में छूट ....!!!
छूट जैसी बात ही अजीब लगती है.....
ईश्वर ने जो जबान दे रखी है ...वो बखूबी जानती है कि क्या गिराना है और क्या नहीं....
हाँ, इस गिराने उठाने कि वाट उन लोगों ने लगा रखी है जो इसे सहजता से ना लेकर लेखन में भी दर्शाना चाहते हैं....
मसलन...मेरा ..( मिरा )
तेरा ....( तिरा )
कभी.....( कभू )
कोई... ( कुई )
यहाँ पर आकर जबान अपनी सहजता खोने लगती है..और सवाल उठते हैं कि उर्दो ग़ज़ल में ऐसा ..और हिंदी गीत में वैसा....
और फलां गीत है..और फलां नवगीत है....सब बनावटी बातें हैं...एकदम कोरी बनावटी ....