3 नवंबर 2009

२- एक गहरी श्‍वांस लेकर

एक गहरी श्‍वांस लेकर!
मैं अंधेरे में खड़ा था, रोशनी की आस लेकर।

मिट गया गहन-तिमिर
जल गया जब दीप कोई।
दे गया मोती धवल
पड़ा तट पर सीप कोई।
उतर आए लो! सितारे झील में आकाश लेकर।

मन कहीं उलझा हुआ था,
मकड़ियों सा जाल बुनकर।
झँझड़ियों की राह आती
स्वर्ण किरण एकाध चुनकर।
उठा गहरी नींद से मैं, इक नया विश्‍वास लेकर।

छोड़ दी बैसाखियाँ जब
चरण ख़ुद चलने लगे।
हृदय में नव सृजन के
भाव फिर पलने लगे।
भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।
समय देहरी पर खड़ा है हाथ में मधुमास लेकर।

--मनोज कुमार

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन रचना है आपकी
    आनंद आया पढ़कर

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  2. मनोजकुमार जी का नवगीत निश्चित रूप से एक अच्छे नवगीत की श्रेणी में आता है।नवगीत की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले इस गीत की लय भी सधी हुई है मात्र एक जगह थोड़ा अवरोध दिख रहा है,।प्रथम अन्तरा में ३मात्राओं की कमी है।दूसरे और तीसरे अन्तरे प्रथम पंक्तियों में १४ मात्रा हैं जबकि प्रथम अन्तरे की प्रथम पंक्ति में ११ मात्रा ही हैं। इसे " मिट गया सब तिमिर गहरा" जैसा कुछ किया जा सकता है। शेष सब बहुत अच्छा है ।
    मिट गया गहन-तिमिर
    मन कहीं उलझा हुआ था,
    छोड़ दी बैसाखियाँ जब

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  3. छोड़ दी बैसाखियाँ जब
    चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के
    भाव फिर पलने लगे।
    भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।
    समय देहरी पर खड़ा है हाथ में मधुमास लेकर।

    अनुशासित छंद में उत्प्रेरक भावों की उत्तम अभिव्यक्ति ! प्रवाह एवं प्रभाव अद्वितीय !!

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  4. आशा का संदेश देता हुआ यह नवगीत हृदय में नई उमंग का संचार करता है। मैंने इसे जितनी बार पढ़ा,भोर की प्रथम किरण को छू लेने जैसा एह्सास हुआ।
    उतर आए लो! सितारे झील में आकाश लेकर --में मनोहर शब्द चित्र है ।

    "छोड़ दी बैसाखियाँ जब
    चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के
    भाव फिर पलने लगे।" यह पंक्तियाँ भी बहुत प्रभावशाली हैं । इतने अच्छे नवगीत के लिये मनोज जी कॊ बधाई तथा पूर्णिमा जी को धन्यवाद ।

    शशि पाधा

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  5. अच्छा लगा यह नवगीत।
    छोड़ दी बैसाखियाँ जब
    चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के
    भाव फिर पलने लगे।
    भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।

    ये इस नवगीत की सबसे प्रभावशाली पंक्तियाँ लगीं।
    मनोज जी को बधाई!

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  6. छोड़ दी बैसाखियाँ जब
    चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के
    भाव फिर पलने लगे।

    वाह,वाह शब्द-शक्ति और अभिव्यक्ति क्षमता की जयकार करती रचना हेतु गीतकार को बधाई..

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  7. मुझे कटारे जी की सलाह मान्य है। यह चूक रह ही गई थी। इस संशोधन से काफी लय और गेयता बढ़ती है। यदि इस पोस्ट में भी प्रस्तुतकर्ता सुधार कर दें -- मिट गया सब तिमिर गहरा -- तो अच्छा रहेगा। इसी तरह दो मात्रा और चाहिए-- दे गया मोती धवल -- इसे इस प्रकार से कर दें -- दे गया था धवल मोती -- कटारे जी को बहुत-बहुत धन्यवाद। इस ब्लॉग को भी। यहां सीखने को बहुत कुछ मिलेगा।

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  8. मनोज जी को शायद पहली बार पढ़ रही हूँ और विस्मित हूँ. बहुत ही मधुर नवगीत!
    इतने दिनों बाद आने का यह फायदा हुआ कि सुझाए गए सुधारों के साथ पढ़ रही हूँ :
    "दे गया था धवल मोती
    पड़ा तट पर सीप कोई।
    उतर आए लो! सितारे झील में आकाश लेकर।"
    "छोड़ दी बैसाखियाँ जब
    चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के
    भाव फिर पलने लगे।
    भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।"
    अतिसुन्दर!

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