10 नवंबर 2009

४- जगत के अज्ञान तम में

जगत के अज्ञान तम में
दीप अभिनन्दन तुम्हारा...

यदि तिमिर से जूझने का
प्रण लिये हो
ज्योति जल में डूब
अवगाहन किये हो
तो असंख्यक बार है
वन्दन तुम्हारा...

आखिरी दम तक दमन
तम का किया हो
जग किया आलोकमय
न भ्रम दिया हो
तो ॠणी है देश का
कण कण तुम्हारा...

--विपन्नबुद्धि

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस नवगीत का दूसरा बन्द मुझे अच्छा लगा।
    बधाई!

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  2. आखिरी दम तक दमन
    तम का किया हो
    जग किया आलोकमय
    न भ्रम दिया हो
    तो ॠणी है देश का
    कण कण तुम्हारा...

    सनातन चिन्तक पंक्तियों हेतु अभिवादन. 'देश' के स्थान पर विश्व क्यों नहीं?

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  3. पूरे गीत का भाव तो सुन्दर है ही किन्तु दूसरा बन्द इस गीत का केन्द्र बिन्दु है। बधाई।

    शशि पाधा

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  4. बहुत सुन्दर नवगीत है विपन्नबुद्धि जी का .... यदि एक बंध और हो जाए तो फिर क्या बात है !

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