28 दिसंबर 2009

२- कुहासा

मौसम ने
एक बार किया फिर खुलासा
कौन करे दूर मेरे मन का कुहासा

झेला जो मैंने वो झेले न कोई
जाड़ों की रातें हैं छम छम के रोईं
नहीं अफ़साना है कोई ये
सुना सा

बर्फ़ीली सर्दी ये सबको बताती
उल्फ़त की गर्मी है रिश्ते जमाती
कंपकंपी सी छूटे है मिले जो
नया सा

कपड़ों पे कपड़े तन पे रहते चढ़े
ठंडी नज़र उनकी सीधी मन में गड़े
शीत लहर को भी चढ़ा है
नशा सा

बाहर की ठंडक औ अंदर की ठिठुरन
आहों की सरगम औ सीने की जकड़न
कैसा है कम्पन नहीं चैन
ज़रा सा


पागल सा मन है ढूँढे उसी को
तड़पाया जिसने रह-रह इसी को
बर्फ़ में दबे हम न दोस्त न
दिलासा

निर्मल सिद्धू

6 टिप्‍पणियां:

  1. आज वाली रचना भी बहुत बढ़िया ..मौसम पर काफ़ी पकड़ है आपकी..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. बर्फ़ीली सर्दी ये सबको बताती
    उल्फ़त की गर्मी है रिश्ते जमाती
    बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति। बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. निर्मल जी धीरे धीरे नवगीत के रंग में रंग रहे हैं। अच्छा प्रयास है।

    मुक्ता पाठक

    जवाब देंहटाएं
  4. No use of being anonymous when you give your identity

    जवाब देंहटाएं
  5. निर्मल सिद्धू जी नवगीत का प्रारम्भ बहुत ही अच्छा हुआ है.... एकदम बहती हुई सी पंक्तियाँ हैं-
    " मौसम ने
    एक बार किया फिर खुलासा "

    जवाब देंहटाएं
  6. आरम्भ उत्तम... लयबद्धता में एकाध स्थान पर कमी. शिल्प सही.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।