गचम पेल सड़कों पर देखी
देख देख बुद्धि चकराई
किसी काम से दिल्ली आई
बड़े गांव की छिद्दन बाई|
सड़कों पर थी पेलम पेला
कारें जीप बसें और ठेला
चारों ओर दिख रहा उसको
जैसे लगा महादेव मेला
दोपहर रात शाम भुनसारे
वाहन देख नयन थक हारे
अविरल द्दष्टि लगी सड़क पर
हिली डुली न डर के मारे
पुरुष और नारी में अंतर
बड़ी देर तक समझ न पाई|
फुटपाथों पर छिटके छिटके
लिपे पुते से लोग लुगाई
अपने अपने कामदेव को
लेकर रति साथ में आई
कभी कभी तो ऐसा लगता
लैला मजनूं पिघल रहे हों
चपल रोमियों किसी जूलियट
को आँखों से निगल रहे हों
बड़ी सड़क के बड़े अजूबे
देख देख कर बहुत लजाई|
तभी अचानक किसी कार पर
कोई बड़ा डंपर चढ़ आया
जैसे लोहे के प्रहार से
टूटा बर्फ और छितराया
कोई गया सुरलोक किसी का
हाथ किसी का फूटा माथा
पतिहीना हुई कोई अभागी
हुआ कोई विकलांग अनाथा
देख अनोखे गज़ब तमाशे
चीखी रोई और चिल्लाई|
--प्रभु दयाल
अद्भुत आँचलिकता से सुवासित अत्यंत मनोहारी नवगीत| परन्तु इस मजेदार नवगीत के रचियता का नाम पता नहीं चल रहा|
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंपतिहीना हुई कोई अभागी
जवाब देंहटाएंहुआ कोई विकलांग अनाथा
देख अनोखे गज़ब तमाशे
चीखी रोई और चिल्लाई| ...मन को छूती हैं पंक्तियाँ..बेहद दर्दनाक !!
सुंदर.
जवाब देंहटाएंप्रभु दयाल जी इतने विशिष्ट नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई|
जवाब देंहटाएंachchha geet
जवाब देंहटाएंrachana
प्रवाहमय गेय रचना..
जवाब देंहटाएंबधाई आपको..
नवीन सी चतुर्वेदी जी
जवाब देंहटाएंनवगीत पसंद आया लेखन सार्थक हुआ|आपको बहुत सारा धन्यवाद
प्रभुदयाल
धर्मेंन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन'
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया पर धन्यवाद
प्रभुदयाल
धर्मेंन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन'
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया पर धन्यवाद
प्रभुदयाल
के के यादवजी
जवाब देंहटाएंमुझे स्मरण है कि मैंने आपके किसी कहानी संग्रह पर समीक्षा लिखी थी
जो गोवर्धन यादव के द्वारा भेजी थी|नवगीत पर प्रतिक्रिया के लिये
धन्यवाद प्रभुदयाल छिंदवाड़ा
शारदा मोंगाजी नवगीत पर प्रतिक्रिया के लिये
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रभुदयाल छिंदवाड़ा
रचनाजी नवगीत पर प्रतिक्रिया के लिये
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रभुदयाल छिंदवाड़ा
गीता पंडित जी
जवाब देंहटाएंनवगीत पर प्रतिक्रिया के लिये
धन्यवाद प्रभुदयाल छिंदवाड़ा
सड़क का सटीक शब्द-चित्र प्रस्तुत करने हेतु साधुवाद.
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