4 सितंबर 2011

२३. गाँव छोड़ा शहर आए

गाँव छोड़ा
शहर आए
उम्र काटी सर झुकाए
ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
जुड़ गए कुछ खास
नामों में

माँ नहीं सोई
भिगोकर आँख रातों रात रोई
और हर त्योहार बापू ने किसी की
बाट जोही
मीच आँखे सो नहीं पाए
बाँध कर उम्मीद
पछताए
हाँ हुजूरी में सलामों में
खो गए बेटे निजामों में
ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
जुड़ गए कुछ खास
नामों में

घर नहीं कोई
यहाँ दरबार हैं या हैं दुकानें
जो हँसी लेकर चले उस पर पुती हैं
सौ थकानें
कामयाबी के लिये सपने
बेच डाले रात दिन
अपने
सिर्फ कुछ छोटे छदामों में
खो गए रंगीन शामों में
ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
जुड़ गए कुछ खास
नामों में

-विजय किशोर मानव

3 टिप्‍पणियां:

  1. भाई विजयकिशोर मानव की इस बार की 'नवगीत पाठशाला' में उपस्थिति पाठशाला को निश्चित ही एक नया आयाम देती है| कुछ पंक्तियाँ तो सच में अद्भुत लगीं| मुझे इन पंक्तियों ने विशेष नोहा -
    हाँ हुजूरी में सलामों में
    खो गए बेटे निजामों में
    ... ...
    घर नहीं कोई
    यहाँ दरबार हैं या हैं दुकानें
    जो हँसी लेकर चले उस पर पुती हैं
    सौ थकानें
    कामयाबी के लिये सपने
    बेच डाले रात दिन
    अपने
    सिर्फ कुछ छोटे छदामों में

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  2. विजय किशोर मानव जी का नवगीत पाठशाला में शामिल हुआ है यह नवगीत प्रेमियों के लिये बहुत सुखद है। बहुत सरल और बोलचाल की भाषा में नवगीत लिखने में जो सिद्धहस्त हैं उनमें विजय किशोर मानव का नाम बहुत जाना पहचाना है। बहुत सुन्दर नवगीत के लिये वधाई।
    " गाँव छोड़ा
    शहर आए
    उम्र काटी सर झुकाए
    ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
    जुड़ गए कुछ खास
    नामों में "

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  3. बहुत ही सुंदर नवगीत है ये विजय किशोर जी का। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस नवगीत के लिए।

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