चढ़ीं मुँडेरे पीली धूप
आँगन आँगन मौसम साथी
बाँच रहा है कोई पाती
बाग बाग अब
गंध उलीचे
सूरज बैठा लेकर सूप
सुधियाँ झाँकें मन गलियारे
मिटने आतुर बंधन सारे
ओस पाँख पर
मोती सींचे
मनभावन सा धरती रूप
पंछी चहके सोना किरने
भरें कुलाँचे हिरनी हिरने
साधक बरगद
आँखें मीचे
ऋतु है रानी मौसम भूप
-अशोक गीते
(खण्डवा)
बहुत सुंदर नवगीत है अशोक जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअशोक जी!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अच्छे नवगीत हेतु बधाई.
शिल्प की दृष्टि से सुन्दर नवगीत है।
जवाब देंहटाएंडा० व्योम
पंछी चहके सोना किरने
जवाब देंहटाएंभरें कुलाँचे हिरनी हिरने
साधक बरगद
आँखें मीचे
ऋतु है रानी मौसम भूप
सुन्दर नवगीत बधाई
rachana