दिन उत्सव के
दीप लिये हैं खड़े द्वार पर
उन्हें नमन है
जोत उन्हीं दीयों की
सबको उजियारेगी
लखमी मइया
सबके दुख-विपदा टारेगी
दिन उत्सव के
ड्योढ़ी-ड्योढ़ी दीप रहे धर
उन्हें नमन है
सूरज भी है
मेघों के घेरे से निकला
यही प्रार्थना
छँटे अँधेरा जो है पिछला
दिन उत्सव के
नेह रहे बो, साधो, घर-घर
उन्हें नमन है
यही दुआ है
ताल-कुएँ हों कभी न खारे
शोक-मोह जो रहे आसुरी
बीतें सारे
दिन उत्सव के
जगा रहे सुख सबके भीतर
उन्हें नमन है
-कुमार रवीन्द्र
दीप लिये हैं खड़े द्वार पर
उन्हें नमन है
जोत उन्हीं दीयों की
सबको उजियारेगी
लखमी मइया
सबके दुख-विपदा टारेगी
दिन उत्सव के
ड्योढ़ी-ड्योढ़ी दीप रहे धर
उन्हें नमन है
सूरज भी है
मेघों के घेरे से निकला
यही प्रार्थना
छँटे अँधेरा जो है पिछला
दिन उत्सव के
नेह रहे बो, साधो, घर-घर
उन्हें नमन है
यही दुआ है
ताल-कुएँ हों कभी न खारे
शोक-मोह जो रहे आसुरी
बीतें सारे
दिन उत्सव के
जगा रहे सुख सबके भीतर
उन्हें नमन है
-कुमार रवीन्द्र
उत्सवधर्मिता को प्रकट करने वाला सुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंजय हो रवीन्द्र साहब।
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त, सारगर्भित, सरल, सुंदर नवगीत है। बहुत बहुत बधाई कुमार रवींन्द्र जी को इस नवगीत के लिए
जवाब देंहटाएंयही दुआ है
जवाब देंहटाएंताल-कुएँ हों कभी न खारे
शोक-मोह जो रहे आसुरी
बीतें सारे
दिन उत्सव के
जगा रहे सुख सबके भीतर
उन्हें नमन है
अति उत्तम नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई
सादर
रचना
जोत उन्हीं दीयों की
जवाब देंहटाएंसबको उजियारेगी
एक आशावादी
सुंदर नवगीत के लियें मेरी बधाईयाँ आपको
सादर
गीता पंडित
सरस सारगर्भित नवगीत हेतु साधुवाद.
जवाब देंहटाएंAcharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
सरल, सरस और सुंदर नवगीत के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंसूरज भी है
जवाब देंहटाएंमेघों के घेरे से निकला
यही प्रार्थना
छँटे अँधेरा जो है पिछला
दिन उत्सव के
नेह रहे बो, साधो, घर-घर
उन्हें नमन है
कुमार रवीन्द्र जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई स्वीकारें इस सुंदर नवगीत के लिये
प्रभुदयाल छिंदवाड़ा