जीवन की भागदौड़, स्पर्धा से भरा कार्यक्षेत्र और उपभोक्तावादी संस्कृति से भरा घर बाहर ! क्या हमें कभी मौसम के बारे में सोचने का समय मिलता है? मीडिया नकारात्मक वातावरण में नहाए हम सदा कष्टों, अभावों और असंतोष के शिकार बने रहते हैं। मौसम में जो कुछ भी है- सुख-दुख उसे आनंद से स्वीकारने की भारतीय परंपरा धूमिल होती दिखाई देती है। ऐसे समय में क्या हमारे रचनाकारों को गर्मी के मौसम की ओर देखने का अवसर मिला है? इसी की खोज में हमारी कार्यशाला- २२, दिन गर्मी के। ध्यान रहे यह कोई समस्यापूर्ति नहीं है। इसलिये शीर्षक को आधार बनाकर रचना न की जाय। कुछ ऐसा लिखा जाय जो पहले नहीं लिखा गया।
रचना भेजने की अंतिम तिथि १ जून २०१२ है। पर रचनाएँ जल्दी पहुँच गईं तो पहले से ही प्रकाशित करना शुरू कर देंगे। रचना निश्चित रूप से नवगीत विधा में रची हुई होनी चाहिये।
रचना भेजने का पता है- navgeetkipathshala@gmail.com
सार्थक प्रयास ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ....!!
सादर नमन ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
क्यों नहीं ? मौसम पर भी लिखने का सोचा जाये...अच्छा बिचार है...
जवाब देंहटाएंनवगीत की पाठशाला नवगीतकारोँ के आगे बढ़ने के लिए एक मँच की तरह है । इसके अंतर्गत बहुत अच्छे गीत पढ़ने को मिल रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार .....।