टूट गयी सुख चैन की माला
बिखर गए फुरसत के मोती
यश वैभव की लहर चली तो
मंद हुई
रिश्तों की ज्योति
छूट गया है प्रथम पहर में
पत्तों पर वो ओस ढूँढना
गहरी साँसे ,आँख मींच कर
कोई ताज़ा फूल सूंघना
आँगन की बरखा भी अब तो
हथेलियों को
नहीं भिगोती
चकाचौंध की दीवारों ने
जज्बातों की हवा रोक ली
ढकी हुई है मन की गागर
धडकन सूनी श्वास खोखली
चेहरे पर ख्याति की परतें
आखिर इक
दिन आँखें धोतीं
गणित हो गया जीवन पूरा
हर लम्हा कागज़ में अंकित
भरी सितारों से झोली पर
धरती की मिट्टी से वंचित
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
तन्हाई की
फसलें बोती
--संध्या सिंह
लखनऊ
बिखर गए फुरसत के मोती
यश वैभव की लहर चली तो
मंद हुई
रिश्तों की ज्योति
छूट गया है प्रथम पहर में
पत्तों पर वो ओस ढूँढना
गहरी साँसे ,आँख मींच कर
कोई ताज़ा फूल सूंघना
आँगन की बरखा भी अब तो
हथेलियों को
नहीं भिगोती
चकाचौंध की दीवारों ने
जज्बातों की हवा रोक ली
ढकी हुई है मन की गागर
धडकन सूनी श्वास खोखली
चेहरे पर ख्याति की परतें
आखिर इक
दिन आँखें धोतीं
गणित हो गया जीवन पूरा
हर लम्हा कागज़ में अंकित
भरी सितारों से झोली पर
धरती की मिट्टी से वंचित
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
तन्हाई की
फसलें बोती
--संध्या सिंह
लखनऊ
जवाब देंहटाएंडॉ सरस्वती माथुर.......
बहुत ही सुंदर नवगीत संध्याजी ,मन में गहरे उतर गया !
डॉ सरस्वती माथुर
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
जवाब देंहटाएंतन्हाई की
फसलें बोती
..........बहुत ही सुन्दर.. गहरी साँसे ,आँख मींच कर
कोई ताज़ा फूल सूंघना..वाह ..
बधाई ..!!
यह गीत चमत्कृत करता है, इसको पढते हुए लगता है मन के अंदर से कोई यह सब अपने आप से कह रहा है. संध्या जी ने खूब टटोला है मन में छिप कर बैठ गयी मासूम भावनाओं को, चेहरे के पीछे की सच्चाई को और जीवन की गणित के जटिल समीकरण को. सच कहूँ तो इतना सुन्दर गीत शायद पहले नहीं पढ़ा. संध्या जी का रूख अब सितारों की ओर है...बधाई.
जवाब देंहटाएंटूट गयी सुख चैन की माला
जवाब देंहटाएंबिखर गये फुर्सत के मोती.
विषय की सुन्दर प्रस्तावना संध्या जी. इसका कथानक और भी सुन्दर है. आधुनिकता की दौड़ में हमने प्राकृतिक सौन्दर्य को भी सरसरी नज़र से ही देखते हैं. एक रीते घट सी दिनचर्या हो गयी है.
गणित हो गया जीवन पूरा..
धरती की मिटटी से वंचित....
तन्हाई की फसलें बोती.
बहुत खूबसूरत नवगीत है आपका. बधाई आपकी रचनाशीलता को.
संध्या जी , आपके लेखन का स्वाद पहले भी चखा है पर सच कहती हूँ इस गीत की तो बात ही निराली है ..भाव और शिल्प दोनों पक्षों में अपनी चरम पराकाष्ठा छूने में सफल हुआ है यह गीत , शुरू से लेकर अंत तक भाव और शब्द किसी झरने की तरह दिल की गहराइयों में उतर गए हैं . सचमुच एक बार रुककर सोचने को मजबूर कर रहा है आपका ये गीत ,कि हम अन्धों कि तरह जिस ओर भाग रहे हैं वो मंजिल अगर पा भी ली तो हमें मिलेगा क्या ..?? क्या उतना मिलेगा जितनी हम कीमत चुका रहे हैं ??
जवाब देंहटाएंसंध्या जी आपका यह गीत नवगीतों में एक मिसाइल कि तरह है और आप एक मिसाल !!
आपके इस गीत को मेयार माना जा सकता है नमन आपकी वरद लेखनी को और शब्दातीत कल्पनाशक्ति को ,आप सचमुच एक उच्च स्तरीय कवियत्री हैं संध्या जी !!
तमगे देकर. '''''''
जवाब देंहटाएंआ संध्या सिंह जी मर्म छिल गया ...'कुछ पल बस पंक्तियों कोमूक अंतर्मन में गूँजता अनुभव करना चाहता हूं।
गणित हो गया जीवन पूरा
जवाब देंहटाएंहर लम्हा कागज़ में अंकित
भरी सितारों से झोली पर
धरती की मिट्टी से वंचित
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
तन्हाई की
फसलें बोती... बहुत ही सुन्दर. विषयवस्तु का अक्षरशःनिर्वाह करती रचना के लिये बधाई संध्या जी.
वाह अद्भत, संध्या जी कमाल कर रखा है आपने, और आप कहती हैं आप नवगीत लिखना नहीं जानती??
जवाब देंहटाएंचकाचौंध की दीवारोँ ने
जवाब देंहटाएंजज्बातोँ की हवा रोक ली
ढकी हुई है मन की गागर
धड़कन सूनी श्वास खोखली
चेहरे पर ख्याति की परतें
आखिर इक
दिन आँखे धोती ।
....संवेदनाओँ की गहराई तक उतरते नवगीत के लिए संध्या सिंह जी को हार्दिक शुभकामनाएं ।
संध्या जी नवगीत नहीं यह तो गीत ही है सुन्दर भाव प्रधान भी है | पत्तों पर ओस ढूढने की बात जो आप ने लिखी है वह तो ठीक है लेकिन प्रथम पहर में यह गलत लग रहा है आप यदि भोर या चौथे पहर में लिखती तो ठीक लगता ''हथेलियों '' की जगह पर ''करतल '' कर लें तो प्रवाह और सुन्दर बन जाता है | दूसरी बात यह की '' जज्बातों '' नहीं होता है बहुबचन के लिए जज्बात का प्रयोग होना चाहिए था | सुन्दर गीत के लिए वधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत नवगीत संध्या जी मै तो पहले से ही आपकी फैन हूँ इस गीत को पढने के बाद तो आपकी लेखनी के प्रति श्रद्धा और भी बढ़ गयी बस एक प्रश्न मन में था इस अन्यथा मत लीजिएगा बल्कि मेरी बात ठीक लगे तो इसे सुधारियेगा ...मुखड़े में आपने मोती के लिए ज्योति तुक लिया है जो मेरे विचार से गलत है
जवाब देंहटाएंटूट गयी सुख चैन की माला
बिखर गए फुरसत के मोती
यश वैभव की लहर चली तो
मंद हुई
रिश्तों की ज्योति
आप सही कह रही हैं सीमा जी ...इसे ठीक करने का प्रयत्न करूंगी ....आपने हमेशा हौसला दिया है इसके लिए ह्रदय से आभार
हटाएंगणित हो गया जीवन पूरा
हटाएंहर लम्हा कागज़ में अंकित
भरी सितारों से झोली पर
धरती की मिट्टी से वंचित
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
तन्हाई की
फसलें बोती..............kitni shjta se puri jindgi ki baato ko rakh diya
गणित हो गया जीवन पूरा
जवाब देंहटाएंहर लम्हा कागज़ में अंकित
भरी सितारों से झोली पर
धरती की मिट्टी से वंचित
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
तन्हाई की
फसलें बोती
संध्या जी, जीवन दौड़ में क्या पाया -क्या खोया , सारी अनुभूतियों का लेखा जोखा है यह नवगीत | बधाई
छूट गया है प्रथम पहर में
जवाब देंहटाएंपत्तों पर वो ओस ढूँढना
गहरी साँसे ,आँख मींच कर
कोई ताज़ा फूल सूंघना
आँगन की बरखा भी अब तो
हथेलियों को
नहीं भिगोती
पद प्रतिष्ठा से पीड़ित समाज को आईना दिखाती सशक्त रचना .मनोहर नव -गीत ,नव उद्बोधन लिए आया है ,मन को बेहद हर्षाया है .
भरी सितारों से झोली पर
जवाब देंहटाएंधरती की मिट्टी से वंचित...मंद हुई रिश्तों की ज्योती...!!
सच ही तो है..न तो पल भर चैन ही रहा..और न ही फुर्सत के पल...ताज़े फूल कहाँ रह गए...अब तो गमलों में मौसम आते हैं ..चले जाते हैं ...
रचनाकार को बहुत बधाई ..!!
बहुत ही सुंदर नवगीत रचा है संध्या जी ने, ढेरों बधाई उन्हें।
जवाब देंहटाएंसंध्या जी का यह नवगीत जीवन की सच्ची उपलब्धि की ओर इंगित कर रहा है. इस सफल नवगीत के लिए संध्या जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंसंध्या जी, बहुत बहुत सुंदर नवगीत के लिए बहुत बधाई। प्रथम अंतरा बहुत सुंदर है और पूरा गीत गहरे भाव लिए अति सुंदर।
जवाब देंहटाएंओह ! कितनी सार्थक रचना है !अद्भुत ! बधाई संध्या जी !
जवाब देंहटाएंsunder navgeet..
जवाब देंहटाएंगणित हो गया पूरा जीवन
जवाब देंहटाएंहर लम्हा कागज में अंकित.
यह पूर्ण रूप से ऐसी कविता है इसे नवगीत और गीत में बांधना नामुमकिन हैं.जिन्दगी के यथार्थ और और सच के करीब |
कितने एकाकी है हम कितने अंतरद्वंद से गुजरती जिन्दगी. संध्या जी आप को ढेर सारी बधाई........लेकिन वो भी काम है ..लाजवाब भाव और भावो को शब्द देती लेखनी;.
गणित हो गया जीवन पूरा
जवाब देंहटाएंहर लम्हा कागज़ में अंकित
भरी सितारों से झोली पर
धरती की मिट्टी से वंचित
तमगे दे कर भीड़ हमेशा
तन्हाई की
फसलें बोती
................ जीवन की विसंगतियों पर एक सार्थक नवगीत के लियें संध्या जी आभार और आपको बधाई...