दशहरे के जाते ही दीपावली की रौनक शुरू हो जाती है। शहरों में बाजार की रौनक, शाम को खरीदारी की रौनक और सारी रौनकों में यथास्थिति चलते हुए जीवन की भागदौड़, छुट्टियों की कमी और काम का दबाव। इन सबके बीच कैसे बीतती है शहर की दीपावली? कभी गाँव की याद, कभी देश की याद, कभी इन सब से उबर कर दौड़ में शामिल हो जाने का उत्साह... एक नवगीत में इतना सबकुछ तो नहीं आ सकता पर जिस भी कोण पर कैमरा ठहरे बस उसी को रचकर हम तक पहुँचाएँ।
रचना भेजने की अंतिम तिथि है- २५ अक्तूबर २०१३ और
पता है- navgeetkipathshala@gmail.com
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रचना भेजने की अंतिम तिथि है- २५ अक्तूबर २०१३ और
पता है- navgeetkipathshala@gmail.com
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pratiksha rahegi :)
जवाब देंहटाएंswagt..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आयोजन!
जवाब देंहटाएंउत्तम
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