11 जुलाई 2014

कार्यशाला-३५ शहर में बरसात



शहर में बरसात आ गई है, और इस बरसात से खुश-हैरान-परेशान जन अपनी अपनी जीवन गाथा को अलग अलग तरह से व्यक्त करने लग गए हैं। अपने शहर की बरसात को रेखांकित करने का यह विशेष अवसर है जब सभी रचनाकार इस कार्यशाला में अपने उस विशेष शहर की बरसात को नवगीत में बाँध सकते हैं जहाँ वे रहते हैं। जो लोग शहर में नहीं रहते गाँव में रहते हैं वे अपने गाँव की बारिश के विषय में नवगीत लिख सकते हैं। नवगीत भेजने की अंतिम तिथि है १५ जुलाई २०१४, पता है- navgeetkipthshala@gmail.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर …

    - पवन प्रताप सिंह 'पवन'

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  2. आ0 पूर्णिमाजी, नवगीत लेखन के प्रचार प्रसार हेतु सराहनीय पहल को दिल से नमन है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। शुभ-शुभ

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  3. आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक
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  4. अब भी मन करता है.....आज फिर से एक बार भीग जाने का मन करता है वो घंटो-घंटो की बरसात में नंगे पैरों से छप-छप करते हुए सूनी पड़ी सड़क पर
    कहीं दूर भाग जाने का अब भी मन करता है बस्ते को प्लास्टिक से लपटे हुए जुराबे-जूते हाथ में पकड़े हुए
    खुद को जान-बूझ कर भिगाते हुए भीगते-भीगते घर,भाग-भाग कर जाने को हर बार सोचते-सोचते खुद पर हँसने का अब भी मन करता है मेरा प्राचीन वक्त और वो चुले पर चढ़ी कड़ाही अब भी माँ के हाथ के आलू और प्याज के पकौड़े खाने का मन करता है वो गुड की डली चोरी करके खाने का अब भी मन करता है वो छोटे-छोटे बेर वो भट भुने हुवे खाने को अब भी मन करता है वो स्कूल की छूट्टी होते ही सबसे पहले घर भाग-भाग कर जाने को अब भी मन करता है उफ कमबख्त उन बचपन की यादों में डूब जाने को मन करता है अब की बरसात में भी बिना कष्ट साँस लेना चाहता हूँ मैं अपने
    खुद के आँसुओं को सबसे छिपाने के लिए इस बरसात में भी खूब भीगने का अब भी मन करता है (गुड्डू गोस्वामी जिला अल्मोडा) फोन नम्बर 8527004698

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