गमकत, गरजत, बरसत, सावन
पावस ऋतु, आवत अति पावन
विरहित, तुम बिन, मेह न भावे,
बूँद परत यह देह जरावे
जरत बदन बुँदियन जल भींजत
बिजुरी तड़कत, ताड़त सौतन
पावस ऋतु आवत
अति पावन
डालि, कदम पर झूला डारे
झूलत लरजत साँझ सकारे
सखियन सँग मिल रास रचाने
नाचत मन-मयूर सुन साजन
पावस ऋतु आवत
अति पावन
नदि तड़ाग उफनत भरि वारी
नभ पर छाई बदरी कारी
हरषि धरनि ओढ़ी हरियाली
इन्द्र-धनुषि उमगत मन भावन
पावस ऋतु आवत
अति पावन
- हरिवल्लभ शर्मा
पावस ऋतु, आवत अति पावन
विरहित, तुम बिन, मेह न भावे,
बूँद परत यह देह जरावे
जरत बदन बुँदियन जल भींजत
बिजुरी तड़कत, ताड़त सौतन
पावस ऋतु आवत
अति पावन
डालि, कदम पर झूला डारे
झूलत लरजत साँझ सकारे
सखियन सँग मिल रास रचाने
नाचत मन-मयूर सुन साजन
पावस ऋतु आवत
अति पावन
नदि तड़ाग उफनत भरि वारी
नभ पर छाई बदरी कारी
हरषि धरनि ओढ़ी हरियाली
इन्द्र-धनुषि उमगत मन भावन
पावस ऋतु आवत
अति पावन
- हरिवल्लभ शर्मा
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