23 जुलाई 2014

२४. घन कुंतल मेघ घिरे - राजेन्द्र गौतम

दिग्नूपुर झनक उठे
घन कुंतल-मेघ घिरे

कब सुध-बुध क्षण-पल की
चम-चम-चम जब चमकी
चंचल-चंचल जल की
हीरक-सी छवि, छलकी
ऐसी रस-धार बही
मन डूबे, डूब तिरे

चेतनता तन की हर
रहा अन्धकार उतर
अम्बर, भू-आँगन भर
यौवन की उठे लहर
ज्वार राग का उमड़ा
बन्धन-तट टूट गिरे

रोम-रोम रोमांचित
तंद्रिल, विश्लथ, कम्पित
हास-सुधा-उर-सिंचित
हुए अधर-पुट कुंचित
दल के दल शतदल के
आनन पर आन फिरें
जब कुंतल-मेघ घिरे
घन कुंतल-मेघ घिरे

- राजेन्द्र गौतम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।