11 मई 2009

6- निर्मल सिद्धू

जग बदला है मौसम बदला
क़ुदरत का हर पहलू बदला,
पर, प्यार का
रंग न बदला...

आज भी पंछी जब हैं गाते
बात प्रेम की वो समझाते,
झर-झर झरने जब हैं बहते
गीत प्यार के
वो हैं गाते,

जिधर भी देखो सब-कुछ बदला
जीने का हर ढंग है बदला,
पर, प्यार का
रंग न बदला....

प्यार बिना कोई बात बने ना
प्यार बिना इक रात कटे ना,
प्यार ख़ुदा का नूर है ऐसा
इक-पल भी जो
दूर हटे ना,

इन्सान ने चेहरा तो है बदला
चेहरे का हर अंग है बदला,
पर, प्यार का
रंग न बदला...

प्यार कहीं जो बदल जायेगा
जग में फिर क्या रह जायेगा,
आस की कलियां मुरझायेंगी
हर ख़्वाब सुहाना
मर जायेगा,

दौर पुराना वक्त का बदला
तौर-तरीका सबका बदला,
पर, प्यार का
रंग न बदला....

8 टिप्‍पणियां:

  1. निर्मल जी ने बहुत अच्छा प्रयास किया है। गीत का तौर तरीका पारम्परिक है।कहीं कहीं कुछ बदलने से और भी सुन्दरता आ सकती है। जैसे मुखड़ा "
    १ पर, प्यार का
    रंग न बदला.. यहाँ पर की जगह किन्तु या मगर होना चाहिये।
    २॰॰आज भी पंछी
    जब हैं गाते यहाँ "सुबह शाम पंछी जब गाते" करें तो अच्छा होगा।
    ३॰॰ झर-झर झरने
    जब हैं बहते
    गीत प्यार के
    वो हैं गाते, के स्थान पर ॰
    झर झर झर झरने जब बहते
    वे संदेश प्यार के कहते

    ४॰॰इन्सान ने चेहरा इन्साँ ने चेहरा तो बदला चेहरे का हर अंग भी बदला मगर प्यार का रंग न बदला
    तो है बदला
    चेहरे का हर
    अंग है बदला,
    पर, प्यार का
    रंग न बदला. के स्थान पर
    इन्साँ ने चेहरा तो बदला
    चेहरे का हर अंग भी बदला
    मगर प्यार का रंग न बदला
    ५॰॰हर ख़्वाब सुहाना हर शब्द को हटा लेना चाहिये
    मर जायेगा,
    यहाँ से हर शब्द को हटा लेना चाहिये

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  2. कटारे जी की टिप्पणी से पूर्णत: सहमत हूँ।

    पूर्णिमा जी - मानोशी के नवगीत को समझाने का शुक्रिया! काश आप स्कूल में साथ में पढ़ी होती या फिर मेरे स्कूल की अध्यापिका होती तो मैं हिंदी साहित्य को ठीक से समझ पाता। गोपालप्रसाद व्यास जी की "आराम करो" के अलावा तकरीबन सारी कविताएं सर से उपर निकल गई।

    प्रतिभागी कवियों के नाम अब अपनी रचना/प्रविष्टि से जोड़ दिए गए हैं। धन्यवाद! लेकिन -
    1 - "राघव" जी की कड़ी टूट रही है। जरा देख लें और सही कर दें।
    2 - हर कवि का अपना ब्लाग या वेबसाईट है। क्यों न उसकी भी जानकारी साथ में दे दी जाए?

    सद्भाव सहित
    राहुल
    http://mere--words.blogspot.com

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  3. सबसे पहले सिद्धू जी की कविता के बारे में- सुंदर बहती हुई रचना है बधाई। कविता के विषय के अनुसार सहज शब्दों का प्रयोग है। कोई दुरूह कल्पना नहीं है। कही इसमें संगीत होता तो शायद यह इस कार्यशाला का सबसे लोकप्रिय गीत बन जाता। शास्त्री जी के सुझाव सुंदर हैं।

    अब राहुल जी के प्रश्नों के उत्तर में- राघव जी की कड़ी ठीक कर दी है। चलिए देर आयद दुरुस्त आयद यहाँ बहुत सी कविताओं के अर्थ समझने का अवसर मिलेगा। जिस कवि का भी ब्लॉग या वेब साइट है वह इस ब्लॉग को फॉलो करता है तो उसका ब्लॉग अपने आप यहाँ से जुड़ जाता है इसलिए अलग से लिंक करने की ज़रूरत नहीं आप किसी को भी क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।

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  4. निर्मल सिद्धू का नवगीत-लेखन की दिशा में प्रयास सराहनीय है। "प्यार कहीं जो बदल जायेगा
    जग में फिर क्या रह जायेगा" भाव की दृष्टि से बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं। गोपालदास नीरज जी ने "गीत" के सन्दर्भ में लिखा है-
    "गीत जब मर जाएगा, फिर क्या भला रह जाएगा।
    सिर्फ साँसों का सिसकता काफिला रह जाएगा।।"
    "पर, प्यार का
    रंग न बदला...." "पर" की जगह यदि "मगर" कर दें तो ठीक रहेगा।
    -डा० व्योम

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  5. "प्यार ख़ुदा का नूर है ऐसा
    इक-पल भी जो
    दूर हटे ना"

    सुन्दर !
    सादर शार्दुला

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  6. सचमुच जैसा कि पूर्णिमा जी ने लिखा है...निर्मल जी का ये गीत पूरे तरन्नुम में है...सहज सामान्य शब्दों में एक बहुत ही सुंदर रचना

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  7. आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद
    आपके कीमती सुझाव मेरी अमुल्य निधि है। आशा है, भविष्य में भी आपकी टिप्पणियां मिलती रहेंगी। हो सके तो मेरे ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें। कोई भी, कैसा भी मश्वरा हो मुझे इंतज़ार रहेगा। एक बार फिर आप लोगों का धन्यवाद।

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