प्यार का रंग ना बदला !
परिवर्तन के नियम ठगे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
अब तक है ये कितना उजाला !
आम का पकना, रस्ता तकना
पगडंडी का घर घर रुकना
कोयल का पंचम सुर गाना
हर महीने पूनम का आना
अरे कहो! कब व्रत है अगला ?
तीज, चौथ कब, कब कोजगरा ?
क्या कहते हो सब कुछ बदला !
गाँव का मेरे ढंग ना बदला !
आम मधुर, रस नेह पगे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
होली के हुडदंग सा पगला !
एक पल जो घर आँगन दौड़ा
चढ़ भईया का कंधा चौड़ा
आज अरूण रंग साड़ी लिपटा
खड़ा हुआ है वह पल सिमटा
उस पल को आखों में भरता
छाया माँ मन कोहरा धुंधला !
अभी चार दिन पहले ही तो
पहनाया चितकबरा झबला !
माँ के आगे सब बच्चे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
हर सागर है उससे उथला !
नयन छवि बिन, गगन शशि बिन
माधव बिन ज्यों राधा के दिन
कृषक मेह बिन, दीप नेह बिन
शरद ऋतु में दीन गेह बिन
उतना ही कम खेत को पैसा
जितना हाथ अनाज ने बदला
जल विहीन मन बिना तुम्हारे
मीन बना तड़पा और मचला !
कष्ट जगत के बहुत बड़े हैं
प्यार का रंग हो जाता धुंधला !
आज बुद्ध तज घर फिर निकला !
कष्ट जगत के बहुत बड़े हैं
जवाब देंहटाएंप्यार का रंग हो जाता धुंधला
आज बुद्ध तज घर फिर निकला
"बहुत अच्छी बात कही शार्दुला जी, बधाई स्वीकार हो"
शार्दूला के गीत में रवानी है, सुंदर दृष्टांत दिए गए हैं, भाषा, उपमाएँ और बिंब अच्छे हैं तो भी यह गीत पूरी तरह से नवगीत के रंग में रंगा नहीं है फिर भी गीत पढ़कर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि रचनाकार में नवगीत लिखने की सभी संभावनाएँ नज़र आती हैं। आशा है अगली कार्यशाला "गर्मी के दिन" में गीत से नवगीत की ओर ज्यादा झुकाव नज़र आएगा।
जवाब देंहटाएं""आम का पकना, रस्ता तकना
जवाब देंहटाएंपगडंडी का घर घर रुकना
कोयल का पंचम सुर गाना
हर महीने पूनम का आना
अरे कहो! कब व्रत है अगला ?
तीज, चौथ कब, कब कोजगरा ?
क्या कहते हो सब कुछ बदला !
गाँव का मेरे ढंग ना बदला !""
बहुत सुन्दर शार्दूला जी! एक दो शब्द अगर इधर से उधर कर दें तो इसमें और निखार आ जाएगा। जेसे- "हर महीने पूनम का आना" की जगह "बार बार पूनम का आना"
डा० व्योम
शार्दुला जी ने अच्छा प्रयास किया है आदरणीय संजीव सलिल जी की नवगीतमय टिप्पणी को ध्यान से देखें तो नवगीत लिखने का तरीका सीखा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है।
जवाब देंहटाएंआहहा...बहुत सुंदर गीत शार्दुला जी
जवाब देंहटाएंअद्भुत शब्द संयोजन और लय...
कोजगरा, चितकबरा झबला, कृषक मेह बिन दीप नेह बिन...
सुंदर बानगी
अपने सभी अग्रजों और अनुजों का बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने गीत पढ़ा और मार्गदर्शन दिया. यही स्नेह लेखनी को सही दिशा और रवानी देगा, ऐसा मानती हूँ. पूर्णिमा दी, अभी कुछ सुखद व्यस्तताएं हैं इस महीने, और ऊपर से यहाँ मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा है:) नहीं जानती कि मन 'गरमी के दिन' विषय पे कोई गीत गा पायेगा या नहीं:) पर इससे मेरा नाम ना काट देना पाठशाला से :)
जवाब देंहटाएंफिर से आप सभी का हार्दिक आभार. मैंने व्योम जी, कटारे जी और पूर्णिमा जी की बातें नोट कर लीं हैं.
सादर शार्दुला