लो आई गर्मियाँ
बिछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ।
सुर्ख, कोमल, लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती
डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वे पीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
बिछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ।
बिछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ।
--कमलेश कुमार दीवान
नोटः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
बिछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ।
सुर्ख, कोमल, लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती
डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वे पीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
बिछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ।
बिछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ।
--कमलेश कुमार दीवान
नोटः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
एक ही लंबे अंतरे में विभिन्न छंदों को सुंदरता से समा लेने वाला यह नवगीत मुझे पसंद आया। प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण तो यह करता ही है अपनी लय में भी बाँधे रहता है।
जवाब देंहटाएंछा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
सेमल के फूलों ने मन मोह लिया।
-पूर्णिमा वर्मन
अच्छे गीत। सुंदर उपमान।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुंदर। बेहद मनोरम और संवेदनशील प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएंखदबदाती सी खड़ी
वे पीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
ये पंक्तियाँ बहुत सुंदर लगीं।
रेशे -रेशे सेमल का उड़ना,और इस के साथ ही इसे विचलित,प्रतिकूल मन की अवस्था से जोड़ना एक बहुत ही संवेदनशील चित्रण है। ग्रीष्म ऋतु का एक कोमल रूप। नवगीतकार को बधाई ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
"फूल सेमल के" के माध्यम से गर्मी के आने का चित्रण बहुत सजीव है। पूरा नवगीत एक अच्छा नवगीत है। विशेषकर ये पंक्तियाँ--
जवाब देंहटाएं""खदबदाती सी खड़ी
वे पीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।""
और इसमें भी-
" ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे"
पंक्ति का क्या कहना.... पूरे नवगीत का प्राण है..... सेमल के रेशों को गर्मियों में जिसने उड़ते देखा होगा, उसके सामने ये पंक्तियाँ पढ़ते ही एक दृश्य उभर कर आ जाएगा.....।
बहुत सुन्दर नवगीत के लिए नवगीतकार को वधाई।
यह नवगीत बहुत सुन्दर है। नवगीत का प्रारम्भ बहुत ही अच्छा है...." बिछ गये हैं फूल,
जवाब देंहटाएंसेमल के"" गर्मियों में सफेद छतरियाँ लेकर उड़ती सेमल की रेशेदार परियाँ ........ कितनी लुभावनी और मनभावनी होती हैं इसे वही महसूस कर सकता है जिसने ये मंजर अपनी आँखों से देखा हो.....
""लो आई गर्मियाँ
बिछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ।""
पूरे नवगीत का निर्वाह भी ठीक तरह से किया गया है।
छा गई मैदान पर,
जवाब देंहटाएंरक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
रक्तिम छटाएँ, नंगे पाँव को गुदगुदाएँ..बहुत खूब लगा...
बिछ गए हैं सेमल के फूल...
बढ़िया नवगीत के लिए बधाई...
अद्भुत गीत...गीतकार की सोच, और उन सोचों को शब्दों और छंदों में ढ़ाल लेने की अतुलनीय क्षमता पर हैरानी होती है।
जवाब देंहटाएं"खदबदाती सी खड़ी
वे पीर लगती है"
अहा...बहुत सुंदर !
soch rahee hoon , kisne likha ye sundar navgeet?
जवाब देंहटाएंशानदार!!!!
जवाब देंहटाएंछा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
क्या बात है!!!
सब कुछ अच्छा. नगीतकार को बधाई..
बहुत सुन्दर गीत है। सेमल नाम ही इतना कोमल है और गीत उससे भी कोमल।
जवाब देंहटाएंपूर्णिमाजी का आभार कि नवगीत पाठशाला शुरू करके गीत परम्परा को जीवित किया है।
लो आई गर्मियाँ
जवाब देंहटाएंबिछ गये हैं फूल
सेमल के
अति सुन्दर नवगीत, पूरी लय बद्धता व बिम्ब-प्रतिबिम्ब के साथ लिखा गया। बहुत पसन्द आया\
गीतकार को बधाई हो।
कथ्य की दृष्टि से इस गीत ने सबको पीछे छोड़ दिया है। किन्तु मुखड़ा के साथ न्याय नहीं किया गया है । " लो आई गर्मियाँ " के स्थान पर " लो आ गए दिन पुनः ग्रीषम के " जैसा कुछ करके बहुत सुन्दर नवगीत बनाया जा सकता है। इसी प्रकार एक जगह और कुछ रुकावट लगती है
जवाब देंहटाएंसुर्ख, कोमल, लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती
डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
यहाँ पंखुरियाँ करें और अनेकों हटा दें और फिर पढकर देखें तो शायद बहुत अच्छा लगेगा।
गुजराती कविता की पँक्तियाँ याद आ गईँ -
जवाब देंहटाएं"सेमळ ना झाड हेठे,
सबकारे चालती,
दीठी, साँथाल नी नारी..."
अर्थात्`
सेमल के वृक्ष तले,
चाबुक सी घार लिये
चलती,
देखी,(वो)
साँथाल नारी "
ग्रीष्म मेँ सेमल के रेशोँ का उडना,
ये सजीव किया आपने इस नवगीत मेँ,
बहुत अच्छा लगा ...
- लावण्या
पूरे गीत मे एक सकारात्मक पहल है गर्मी के दिनों की.
जवाब देंहटाएंअच्छी यादों का स्मरण है और अमर कर दिया है रचनाकार ने सेमल के फूलो को.
विखेर दी है खुशबू जन जन के मन में.
नवगीत नवीनता लिए हुए है...कोमल भावों का चित्रण सेमल के रेशों से करके रचनाकार ने जो शब्द चित्र खड़ा किया है वह सराहनीय है ...रचनाकार को बधाई...
जवाब देंहटाएं-- डा.रमा द्विवेदी