गर्मी के दिन दुई चार हो भैया,
गर्मी के दिन, दुई -चार !
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन दुई चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार ..
आता जाडा,खूब ठिठुरता,
कँपकँपी बदन मेँ,
ओढ, रजाई गुजरता
काँपे, हम दिन रैन
हैँ ये मौसम के खेल..
हो भैया, फिर, आते हैँ,
गर्मी के दिन, दुई चार !
बरखा रानी, झमझम आतीँ,
नदियाँ,पोखर,छलका जातीँ
काले मेघा, बरस बरस कर
कर देते, मालामाल
यूँ बीतता सावन भादो
कहाँ गये बताओ भैया,
गर्मी के दिन,दुई चार?
काले जामुन, आम रसीले,
बेर,अचार,छाछ,शरबत,
चलता पँखा घर्र घर्र कर,
सब गर्मी से बदहाल,
छुट्टी मेँ बच्चे करेँ धमाल
यूँ बीते हैँ रे,भैया,
गरमी के दिन दुई चार!
रम्मी,कैरम,ताश के पत्ते,
रानी राजा, सत्ती, अट्ठे,
जीजा, जीजी,'हा हा'हँसते,
कूलरवाले कमरे मेँ,
फैमेली फन का इँतजाम
बीते चैनभरे दिन यूँ,
गरमी के दिन दुई चार !
सीझन ब्याह का,आये दुल्हेराजा
बैन्ड बाजे गाजे,शहनाई
आरती करे दुलहिन की मम्मी,
तरबतर नाचेँ, सँग बाराती,
आइस्क्रीम खायेँ ,दादी, नानी,
उत्सव से जगमग- लकदक,
गरमी के दिन, दुई चार !
हो भैया,
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन, दुई -चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार
--लावण्या शाह
गर्मी के दिन, दुई -चार !
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन दुई चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार ..
आता जाडा,खूब ठिठुरता,
कँपकँपी बदन मेँ,
ओढ, रजाई गुजरता
काँपे, हम दिन रैन
हैँ ये मौसम के खेल..
हो भैया, फिर, आते हैँ,
गर्मी के दिन, दुई चार !
बरखा रानी, झमझम आतीँ,
नदियाँ,पोखर,छलका जातीँ
काले मेघा, बरस बरस कर
कर देते, मालामाल
यूँ बीतता सावन भादो
कहाँ गये बताओ भैया,
गर्मी के दिन,दुई चार?
काले जामुन, आम रसीले,
बेर,अचार,छाछ,शरबत,
चलता पँखा घर्र घर्र कर,
सब गर्मी से बदहाल,
छुट्टी मेँ बच्चे करेँ धमाल
यूँ बीते हैँ रे,भैया,
गरमी के दिन दुई चार!
रम्मी,कैरम,ताश के पत्ते,
रानी राजा, सत्ती, अट्ठे,
जीजा, जीजी,'हा हा'हँसते,
कूलरवाले कमरे मेँ,
फैमेली फन का इँतजाम
बीते चैनभरे दिन यूँ,
गरमी के दिन दुई चार !
सीझन ब्याह का,आये दुल्हेराजा
बैन्ड बाजे गाजे,शहनाई
आरती करे दुलहिन की मम्मी,
तरबतर नाचेँ, सँग बाराती,
आइस्क्रीम खायेँ ,दादी, नानी,
उत्सव से जगमग- लकदक,
गरमी के दिन, दुई चार !
हो भैया,
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन, दुई -चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार
--लावण्या शाह
गरमी और बरसात का क्या समाँ बांधा है, बालक, जवान और वृद्ध तीनों आनंद ले सकते हैं।
जवाब देंहटाएंलोकगीत के प्रभाव से युक्त गीत है। बहुत अच्छा प्रयास है कवि/कवयित्री का। परन्तु यह नवगीत नहीं है। कुछ प्रयास करने से नवगीत बन सकता है।
जवाब देंहटाएंgarmi ke jaane ka intzaar hai...
जवाब देंहटाएं...barish ke aane ka intzaar hai !!
dilli ki sadko ka haal pichli baar ki tarah na ho bas !!
टीप्पणियोँ का आभार
जवाब देंहटाएं- लावण्या
garmi aur barish ke jaane aane pe sundar kavita likhi hai .badhai ho .
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