आते हैं जब गर्मी के दिन
आ जाते तब छुट्टी के दिन
नाचे गायें धूम मचायें
अच्छे कितने, मस्ती के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
दूर पहाड़ों पर जो जायें
कुदरत का सब मज़ा उठायें
ठंडे मौसम में जब घूमें
गर्म हवा फिर भूल ही जायें
क़ुल्फ़ी ठंडी खाने के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
जेठ तपे है, आम पके है
सड़कें रो रो कर पिघले हैं
पोंछ पसीना लाल हुआ तन
पीयें बहुत, न प्यास मिटे है
कटती रातें तारे गिन-गिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
आषाढ़ के पीछे हंसता सावन
सर्दी-गर्मी कुदरत का तन
क्यूं घबराये मेरे साथी
सुख-दुख से बनता है जीवन
पंछी प्यासे गाते निश-दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
आंखों में सूरज है चुभता
तन्हाई में सीना तपता
रिश्ते सारे टूट हैं जाते
साथ बदन के जी है जलता
ऐसे होते मुफ़लिस के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
दुनिया में बारूदी गर्मी
हिंसा औ बदले की गर्मी
इन्सा से अब इन्सा लड़ता
गई किधर वो प्यारी गर्मी
कौन भुलाये वैसे दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
--निर्मल सिद्धू
आ जाते तब छुट्टी के दिन
नाचे गायें धूम मचायें
अच्छे कितने, मस्ती के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
दूर पहाड़ों पर जो जायें
कुदरत का सब मज़ा उठायें
ठंडे मौसम में जब घूमें
गर्म हवा फिर भूल ही जायें
क़ुल्फ़ी ठंडी खाने के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
जेठ तपे है, आम पके है
सड़कें रो रो कर पिघले हैं
पोंछ पसीना लाल हुआ तन
पीयें बहुत, न प्यास मिटे है
कटती रातें तारे गिन-गिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
आषाढ़ के पीछे हंसता सावन
सर्दी-गर्मी कुदरत का तन
क्यूं घबराये मेरे साथी
सुख-दुख से बनता है जीवन
पंछी प्यासे गाते निश-दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
आंखों में सूरज है चुभता
तन्हाई में सीना तपता
रिश्ते सारे टूट हैं जाते
साथ बदन के जी है जलता
ऐसे होते मुफ़लिस के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
दुनिया में बारूदी गर्मी
हिंसा औ बदले की गर्मी
इन्सा से अब इन्सा लड़ता
गई किधर वो प्यारी गर्मी
कौन भुलाये वैसे दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
--निर्मल सिद्धू
ऐसे होते मुफ़लिस के दिन
जवाब देंहटाएंआते हैं जब गर्मी के दिन...
बहुत अच्छा लगा ये नव गीत भी ..
- लावण्या
अच्छा गीत कथ्य की सहजता लिये हुए.
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास किया गया है सभी नवगीतों को ध्यान से पढा जाये तो अगली कार्यशाला में अच्छा नवगीत अवश्य आयेगा। कवि में गीत लिखने का पूर्ण सामर्थ्य है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं(इस ब्लोग की कड़ी आदि के ब्लोग में जोड़ रहा हूँ)
बहुत सुन्दर.....! गर्मी की अपनी तरह की एकि
जवाब देंहटाएंअभिनव व्याख्या।
दुनिया में बारूदी गर्मी
हिंसा औ बदले की गर्मी
इन्सा से अब इन्सा लड़ता
गई किधर वो प्यारी गर्मी
स्वाभाविक गर्मी से बारुद तथा हिंसा की गर्मी अधिक असहनीय और दारुण होती है। ऐसे वातावरण में प्यारी गर्मी भी निराश हो जाती है। सही लिखा आपने। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
स्वाभाविक गर्मी से बारुद तथा हिंसा की गर्मी अधिक असहनीय और दारुण होती है। ऐसे वातावरण में प्यारी गर्मी भी निराश हो जाती है। सही लिखा आपने। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
टिप्पणियों का हार्दिक धन्यवाद, यही तो कवियों की हौसला अफ़ज़ाई का प्रतीक है। सच है, इस नवगीत पाठशाला में बहुत कुछ नया सीखने को मिल रहा है। इसके लिये पुर्णिमा जी, कटारे साहब और डा. व्योम सब बधाई के पात्र हैं। कार्यशाला २ की सफलतापूर्वक समाप्ति की सबों को बहुत-बहुत बधाई हो।
जवाब देंहटाएं