12 जुलाई 2009

२- सुख दुख

सुख दुख
सिक्के के दो पहलू
ज्यों सुविधा दुविधा जीवन में

कभी अमावस रात घनेरी
लगे कभी पूनम पग फेरी
घटते-बढते
चंदा पाहुन
ले उतरे डोली आँगन में

सपनों के बुझते अलाव हों
थके हुए सारे चिराग हों
अंधकार
हरने को लाए
हम जुगनू अपने आँचल में

नीरव में गूँजे गान कहीं
मुखरित होते हैं मौन वहीं
जब निज को ही
पहचान लिया
कोयल कूके मन उपवन में

मृगतृष्णा सी छलना देखी
भाग्यरेख अनकही अलेखी
कण-कण
लिए नवयुग निमंत्रण
प्रभुता ढूँढो जड़ चेतन में

--वन्दना सिंह

7 टिप्‍पणियां:

  1. कभी अमावस रात घनेरी
    लगे कभी पूनम पग फेरी
    घटते-बढते
    चंदा पाहुन
    ले उतरे डोली आँगन में

    पूरा गीत ही दिल को छूता है
    ये छ़द पसन्द आया

    सुधार का काम गुरू लोग करे़

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  2. geet sunder hai .kuchh panktiyan to bahut hi sunder hain .
    pr asa lagta hai ki shayad yadi isko gaya jaye to thoda kuchh badalna pade
    saader
    rachana

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  3. गीत का शास्‍त्रीय पक्ष तो वि
    शेषज्ञ बताएंगे, लेकिन मुझे ये प‍ंक्तियां अच्‍छी लगी -

    सपनों के बुझते अलाव हों
    थके हुए सारे चिराग हों
    अंधकार
    हरने को लाए
    हम जुगनू अपने आँचल में
    इन पंक्तियों में कुछ करने का हौसला है, निराशा नहीं है। जुगनू अंधकार में भी अपनी टिमटिमाती रोशनी से प्रकाश करने का साहस करता है, यह प्रतीक अच्‍छा लगा।

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  4. एक सुन्दर नवगीत है। नीरव में गूंजे गान कहीं, मुखरित होते मौन वहीं-- वाह! इन पंक्तियों में दुख के बाद सुख के आने का संदेश है।
    गायन की दृष्टि से कहीं कहीं बाधा आ सकती है । सुन्दर भाव,सुन्दर प्रतीक। रचनाकार को हमारी बधाई

    शशि पाधा

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  5. बहुत सुन्दर नवगीत । लय और गेयता के साथ साथ शब्दकौशल भी उत्कृष्ट है किन्तु अन्तिम अन्तरा की तीसरी पंक्ति में थोड़ा सा प्रवाह भटका है ।
    कण-कण
    लिए नवयुग निमंत्रण
    इसको कुछ इस तरह कहा जा सकता है
    कण-कण में नवयुग आमंत्रण

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  6. "अंधकार
    हरने को लाए
    हम जुगनू अपने आँचल में"

    इन पंक्तियों को रचने वाले गीतकार को सलाम !

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  7. ये नवगीत अच्छा लगा
    आ. कटारे जी की टीप्पणी
    सही लगी
    - लावण्या

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