कोई हो मौसम मितवा.
निकलो ताज़ा दम मितवा.
दामन में खु़शबू भर लो,
भूलो सारे ग़म मितवा।
क्या रोना, क्या चिल्लाना
क्या डरना, क्या घबराना
ताल ठोककर जीना है
जब तक दम में दम मितवा।
पैसे चार नहीं तो क्या
कोठी कार नहीं तो क्या
बेची नहीं अना हमने
हम न किसी से कम मितवा
अपने ज़ख्म़ दिखाना मत
सबको राज़ बताना मत
हॅंसते-मुस्काते रहना
ऑंख न करना नम मितवा
आँखों में रखना मंज़िल
बढ़ते जाना तुम तिल-तिल
दीप जलाए रखना बस
छँट जाएगा तम मितवा
--कुमार ललित
आँखों में रखना मंज़िल
जवाब देंहटाएंबढ़ते जाना तुम तिल-तिल
दीप जलाए रखना बस
छँट जाएगा तम मितवा
बहुत सुंदर और आशावादी गीत..
YAH TO KAHIN SE BHI NAVGEET NAHIN HAI.......
जवाब देंहटाएंललित भाई क्या खूब लिखा है मै नही जानता कि यह नवगीत है या नही लेकिन गीत अति सुन्दर है लय ऐसी है कि बस गाते चले जाओ
जवाब देंहटाएंवैसे तो किसी भी गुनगुनाने योग्य शब्द रचना को गीत कहने से नहीं रोका जा सकता। किसी एक ढांचे में रची गयीं समान पंक्तियो वाली कविता को किसी ताल में लयबद्ध करके गाया जा सकता हो तो वह गीत की श्रेणी में आती है, किन्तु साहित्य के मर्मज्ञों ने गीत और कविता में अन्तर करने वाले कुछ सर्वमान्य मानक तय किये हैं ।छन्दबद्ध कोई भी कविता गायी जा सकती है पर उसे गीत नहीं कहा जाता। गीत में स्थाई और अन्तरों में स्पष्ट भिन्नता होनी चाहिये। प्राथमिक पंक्तियां जिन्हें स्थाई कहते हैं ,प्रमुख होती है,और हर अन्तरे से उनका स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई देना चाहिये। इस तरह के गीत में गीतकार कुछ मौलिक नवीनता ले आये तो वह नवगीत कहलाने लगता है।
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