5 अगस्त 2009
गीत और नवगीत
नवगीत में गीत होना ज़रूरी है। यों तो किसी भी गुनगुनाने योग्य शब्द रचना को गीत कहने से नहीं रोका जा सकता। किसी एक ढांचे में रची गयीं समान पंक्तियो वाली कविता को किसी ताल में लयबद्ध करके गाया जा सकता हो तो वह गीत की श्रेणी में आती है, किन्तु साहित्य के मर्मज्ञों ने गीत और कविता में अन्तर करने वाले कुछ सर्वमान्य मानक तय किये हैं। छन्दबद्ध कोई भी कविता गायी जा सकती है पर उसे गीत नहीं कहा जाता। गीत एक प्राचीन विधा है जिसका हिंदी में व्यापक विकास छायावादी युग में हुआ। गीत में स्थाई और अंतरे होते हैं। स्थाई और अन्तरों में स्पष्ट भिन्नता होनी चाहिये। प्राथमिक पंक्तियां जिन्हें स्थाई कहते हैं, प्रमुख होती है, और हर अन्तरे से उनका स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई देना चाहिये। गीत में लय, गति और ताल होती है। इस तरह के गीत में गीतकार कुछ मौलिक नवीनता ले आये तो वह नवगीत कहलाने लगता है।
साठवें दशक के आसपास जब कविता- नई कविता के रूप में विकसित हो रही थी तब गीत- नवगीत के रूप में विकसित हुआ। नई कविता ने तुक और छंद के बंधन तोड़ दिये लेकिन नवगीत इन सबके साथ रहते हुए नवीनता की ओर बढ़ा। निराला ने अपनी एक रचना में इस ओर संकेत करते हुए कहा है- नव गति, नव लय, ताल, छंद नव। यही आगे चलकर नवगीत की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ भी बनीं। इसके साथ साथ नवगीत में नया कथन, नई प्रस्तुति, प्रगतिवादी सोच, नए उपमान, नए प्रतीक, नए बिम्ब, समकालीन समस्याएँ और परिस्थितियाँ प्रस्तुत करते हुए इस विधा को नई दिशा दी गई। यही एक गीत को नवगीत बनाते हैं। आवश्यक नहीं कि एक नवगीत में इन सभी चीज़ों का समावेश हो लेकिन 3-4 होना ज़रूरी है। नवगीत में छंद आवश्यक है लेकिन वह पारंपरिक न हो, नया छंद हो और उसका निर्वाह भी किया गया हो। छंद में बहाव हो लय का सौंदर्य हो, ताकि गीत में माधुर्य बना रहे।
ऊपर के लेख में हमने देखा कि नवगीत के लिए आवश्यक तत्व क्या क्या हैं। अगले अंकों में एक एक कर के हम इनके विषय में विस्तार से बात करेंगे। सदस्यों के सुझावों और प्रश्नों का स्वागत है।
--पूर्णिमा वर्मन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
badee gyaan vardhak jaankaaree milee. abhaar
जवाब देंहटाएंनवगीत पर विशेषज्ञ जानकारी देने के लिए आभार। वैसे जब से यह पाठशाला प्रारम्भ हुई है, बहुत सारी जानकारियां प्राप्त हुई हैं और बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। हमें अपनी कमियां भी समझ आने लगी है। इसी तरह मार्गदर्शन करती रहें, शीघ्र ही हमारी कलम भी चलने लगेगी। पुन: आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी है पूर्णिमा जी, आशा है इसका अगला लेख जल्दी ही प्रकाशित होगा पहले छंद के विषय में बताएँ तो बहुत अच्छा हो। सधन्यवाद,
जवाब देंहटाएंमुक्ता
likhte smy pata nahi chal raha tha ki kya galti ho rahi hai pr is kryashala se bahut kuchh pata chala .
जवाब देंहटाएंaap ke is lekh se bhi achchhi jankari mili
aap ka dhnyavad
saader
rachana
बहुत जानकारी वाला लेख पूर्णिमा जी ने लिखा है। जो नवगीत लिख रहें हैं वो शायद और सीख सकते हैं और जो लिखने का प्रयास करना चाहते हैं उन्हें इस लेख से बहुत हौसला मिलेगा।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से धन्यवाद
दीपिका जोशी
नवगीत-रचना करना
जवाब देंहटाएंसीखने के लिए यह
एक महत्त्वपूर्ण आलेख है!