2 सितंबर 2009

२- रिश्तों का व्याकरण

अनुकरण की
होड़ में अन्तःकरण चिकना घड़ा है
और रिश्तों का पुराना व्याकरण बिखरा पड़ा है।

दब गया है
कैरियर के बोझ से मासूम बचपन
अर्थ-वैभव हो गया है सफलता का सहज मापन
सफलता के
शीर्ष पर जिसके पदों का हुआ वन्दन
देखिये किस-किस की गर्दन को दबा कर वो खड़ा है।
और रिश्तों का पुराना व्याकरण
बिखरा पड़ा है।

शृंखलात्मक
नाटकों में समय अनुबंधित हुआ है
परिजनो से वार्ता-परिहास क्रम खंडित हुआ है
है कुटिल
तलवार अंतर्जाल का माया जगत भी
प्रगति है यह या कि फिर विध्वंस का खतरा बड़ा है।
और रिश्तों का पुराना व्याकरण
बिखरा पड़ा है।

नग्नता नवसंस्कृति
की भूमि में पहला चरण है
व्यक्तिगत स्वच्छ्न्दता ही प्रगतिधर्मी आचरण है
नई संस्कृति
के नये अवदान भी दिखने लगे अब
आदमी अपनी हवस की दलदलों में जा गड़ा है
और रिश्तों का पुराना व्याकरण
बिखरा पड़ा है।

--अमित

18 टिप्‍पणियां:

  1. आज की परिस्थितियों का चित्रण करती एक जबरदस्त नवगीत रचना-- शृखलात्मक नाटकों (जो शायद टीवी सीरियलों की ओर इशारा है) में समय का अनुबंधित हो जाना, अंतर्जाल की कुटिल तलवार के समक्ष वार्ता और हास परिहास का समय खतम हो जाना जैसे प्रगति के आचरणों से किस प्रकार रिश्तों का पारंपरिक व्याकरण बिखर गया है बेहद सफलता से चित्रित किया गया है। कुछ लोगों को शायद इस नवगीत की भाषा से थोड़ी शिकायत हो लेकिन कुल मिलाकर यह नवगीत भी कार्यशाला की सफलता व्यक्त कर रहा है। बधाई अमितजी।

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  2. बदलते कल्चर को खूबसूरती से गीत मे बाँधा है..मोहक और विचारोत्तेजक

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  3. Bahut hee badhiya rachana. aaj ke kautumbik sthitiyon ka sahee sahee chitran. Aapko badhaee. Aapki shialee bhee pasand aaee.

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  4. sunder shabd abhivykti aur uttam bhav abhivyakti bahut dino bad kuchh achchhi hindi mein mila

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  5. रिश्तों का पुराना व्याकरण बिखरा पड़ा है ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..!!

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  6. बहुत सुंदर नवगीत। फिर नवीनता मिली इस नवगीत में।

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  7. शीर्ष पर जिसके पदों का हुआ वन्दन
    देखिये किस-किस की गर्दन को दबा कर वो खड़ा है।
    बहुत सुन्दर गीत की रचना की है , बहुत बहुत बधाई
    धन्याद
    विमल कुमार हेडा

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  8. बेहद ही जबरदस्त लिखा है... सच में आपने बिखेर कर रख दिया है...
    उम्मीद है की आगे भी बेहतरीन नवगीत पढने को मिलें....
    शुरुआत बढ़िया है.
    मीत

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  9. बहुत सुन्दर नव-गीत, साथ में सुन्दर शब्द चयन,अर्थ-प्रतीति,भाव व लक्षणाएं-व्यन्जनाएं।

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  10. अमित जी ! अभिभूत हो गया मैं तो ।
    शब्द-संयोजन अर्थपूर्ण और भाव- संयोजन लयपूर्ण ।
    और हाँ, व्याकरण पक्ष पर सामान्यतः आजकल कोई ध्यान नहीं देता, रिश्तों का हो तो भी।
    बहुत अच्छी रचना , बधाई।

    प्रवीण पंडित

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  11. समाज की बदलती हुई तस्वीर को बहुत ही सुन्दर ढंग से शब्दचित्रों में बाँधा है आपने इस रचना में । बार-बार पढ़ने से एक प्रश्न मन में उठता है कि हम कहाँ जा रहे हैं? और रिश्तों के व्याकरण के बिखरने की बात ने मन को छू लिया । एक अत्यन्त विचारोत्तेजक रचना के लिये बधाई और धन्यवाद स्वीकार करें।

    शशि पाधा

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. नवगीत की सभी विशेषताओं को समेटे यह गीत बहुत कुछ संदेश देने में सफल है। उत्कृष्ट नवगीत बधाई।

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  14. आदरणीय धर्मेन्द्र जी,
    सराहना के लिये आभार! अभी ३० अगस्त को ही इस गीत को पूर्ण किया है। लिखना भी पाठशाला में की गयी घोषणा के बाद ही प्रारंभ किया था। मैंने कहीं सुनाया नहीं और जहाँ तक याद है कहीं सुना भी नहीं। अतः आपके कथन से आश्चर्यचकित अवश्य हूँ।

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  15. अमित जी, वो आपके नवगीत से कुछ मिलता जुलता नवगीत था। शायद उसका भी भाव यही रहा हो। इसीलिये मैंने अपनी टिप्प्णी हटा दी है।

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  16. अमित जी इस नवगीत के लिये मैं आपके सम्मान में खडा होकर सैकडों बार वाह-वाह-वाह्.........करता हूं.

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