सिमट गए दायरे
बिखर पड़ा मन
बगियाँ के सामने
ठिठक खड़ा वन।
बरगद है गमले में
कुण्डी में जामुन
सुआ है पिंजरे में
बिल्ली है आँगन
छाँव गंध नायरे
पसर गया डर
सिमट गए दायरे
बिखर पड़ा मन।
चूल्हा ना चौका है
जीमण ना झूठा
ऑवन में बर्गर है
फ्रीजर है मोटा
माँ न रही साथ रे
बिसर गया अन्न
सिमट गए दायरे
बिखर पड़ा मन।
बूढ़ी सी आँखे हैं
आँगन में झूला
परिधी में जैसे है
बेलों का जोड़ा
कोई नहीं हाय रे
झुलस रहा तन
सिमट गए दायरे
बिखर पड़ा मन।
श्रीमती अजित गुप्ता
एक पुरानी अभिव्यक्ति को नये तरह से पेश किया है..सुन्दर नवगीत के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंबूढ़ी सी आँखे हैं
जवाब देंहटाएंआँगन में झूला
परिधी में जैसे है
बेलों का जोड़ा
कोई नहीं हाय रे
झुलस रहा तन
सिमट गए दायरे
बिखर पड़ा मन।
अच्छा गीत लिखा, बहुत बहुत बधाई, धन्याद
विमल कुमार हेडा
बहुत सुंदर लखिा है मन की बात अच्छे से बयां की है
जवाब देंहटाएंमीत
हम सभी प्रतिभागी सभी गीतों के लिए एक दूसरे को अच्छा ही कहेंगे लेकिन आव
जवाब देंहटाएंश्यकता है कार्यशाला के गुरुजनों की टिप्पणियों की। गुरुजनों की टिप्पणी के साथ ही गीत को पोस्ट करें तो हम प्रतिभागियों को समझ आएगा कि हमने क्या सीखा है? फिर शेष भी उसी के अनुरूप अपनी टिप्पणी लिख सकेंगे। ऐसा मेरा निवेदन है, फिर जैसा गुरुजन उचित समझे।
सुंदर गीत है अजित जी, सिमट गए दायरे बिखर पड़ा मन- यह पंक्ति जीवन के सिमटते दायरों और बिखरते मन को अच्छी तरह व्यक्त करती है।गीत में बहुत नवीनता न होते हुए यह पंक्ति समाज के आधुनिक वातावरण को सुंदरता से व्यक्त करती है। अंतरों की आँचलिकता भी सुंदर लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही विनम्रता से अपनी बात रख रही हूँ, कार्यशाला का विषय था बिखरा पडा है - यदि हम इस का अर्थ लें तो जीवन में या तो भौतिक संसार बिखरा पडा होता है या फिर मानसिक संसार। जब मानसिक संसार के बिखरने की बात आती है तब परिवार और रिश्ते ही प्रमुखता पाते हैं। इसलिए जब इस विषय पर कोई भी नवगीत लिखा जाएगा तब वह पुराना अर्थात परिवारवाद वाला विषय ही होगा। उसे नए संदर्भों में हम पिरो सकते हैं, इसलिए मैंने बौन्जाई पेडों का वर्णन और फास्ट फूड को आधार बनाया था। मैं चाह रही हूँ कि नवगीत के विद्वान समीक्षक हमें बारीकी से समझाएं की हम कहाँ सही हैं और कहाँ गलत। कार्यशाला का अर्थ ही यह होता है कि हम जो भी कार्य करें उसकी सही तरह से मीमांसा हो। मैं पहले भी लिख चुकी हूँ कि हम सभी सहभागी एक दूसरे के नवगीत को अच्छा ही लिखेंगे, हमारी वास्तविक समीक्षा तो समीक्षक ही कर सकेंगे। यदि समीक्षक नवगीत को पोस्ट करते समय ही अपनी टिप्पणी लिख दें तब निश्चित ही अच्छे प्रश्न आएंगे और हमें समझने में आसानी होगी।
जवाब देंहटाएंगुरुजन की टिप्पणी निःसंदेह आवश्यक है और शिरोधार्य भी।
जवाब देंहटाएंहाँ,मन मे उठी शंका(टिप्पणी के विषय मे नहीं,प्रथम टिप्पणी के विषय मे है ) मे समभागी बना रहा हूं--प्रथम पूजित टिप्पणी के पश्चात साथी पाठकों को कोई हिचकिचाहट न रह जाए-अपनी बात कहने में।समीक्षक की , दृष्टि तो सर्वांग जाएगी ,किंतु मुझे तो जाने रचना का कौन सा अंश प्रफ़ुल्लित कर दे।
अतः, अच्छा लगा तो अच्छा कहूंगा ही।
सस्नेह
प्रवीण पंडित