1 दिसंबर 2009

१६- यादें तेरी भर आँचल में

यादें तेरी भर आँचल में, ये दीवाली फिर आई है|

विरह-व्यथा में भिगो-डुबो कर, वर्ष भर रखी मन की बाती,
यादों की माचिस से जल, फिर भभक उठी है मेरी छाती,
पीड़ा का तूफान समेटे रात अँधेरी घिर आई है,
यादें तेरी भर आँचल में, ये दीवाली फिर आई है,

थीं मुस्काती फुलझड़ियों सी, घर में फिरती थी चरखी सी,
तेरी पायल की छुन-रुन-झुन, लगती थी मीठी गुझिया सी,
जब गुस्सा करती तो लगता तू ऐटम-बम की भी माई है,
यादें तेरी भर आँचल में, ये दीवाली फिर आई है|

फीकी लगती है ये गुझिया, घर-आँगन-देहरी रोते सब,
दीप मुझे आँखों में चुभते, झालर साँपों सी डँसती अब,
चीख पड़ा है देखो रॉकेट, छुरछुरिया भी चिल्लाई है,
यादें तेरी भर आँचल में, ये दीवाली फिर आई है|

--धर्मेन्द्र सिंह सज्जन

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