मन के दीप जले फिर दिवाली आई है
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है
न हो छल विषाद मनों में अब
द्वेष हटा प्रेम में हों लीन सब
बुराई का विनाश कर अच्छाई छाई है ।
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है ।।
तिमिर मार रोशन हो जग अब
सब के मन से मिटे कालिमा अब
रावण मार रामजी ने कैसी लीला रचाई है।
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है ।।
उजला हो मन सब का अब
दीप जला जागो इन्सान अब
सौहार्द औ प्रेम की छटा चहुँ ओर छाई है।
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है ।।
मन के दीप जले फिर दिवाली आई है ।
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है ।।
--अरविन्द चौहान
बहुत सुन्दर गीत है बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है। भाव, विचार और शिल्प सभी प्रभावित करते हैं। सार्थक और सारगर्भित प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमैने अपने ब्लग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं-समय हो पढ़ें और कमेंट भी दें ।- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
गद्य रचनाओं के लिए भी मेरा ब्लाग है। इस पर एक लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं को तन और मन लिखा है-समय हो तो पढ़ें और अपनी राय भी दें ।-
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