9 मई 2010

११ : कफ़न के बस्ते : डॉ. जय जयराम आनंद

चील गिद्ध कौवे मंडराते
लिए कफ़न के बस्ते
टिड्डी दल बन फसल चाटते
आतंकवादिए दस्ते
पलक झपकते ही बिछ जाती
लाशों पर जब लाशें
शक-संदेहों के घेरों से
निकल न पातीं फांसें
छाई रहती है दहशतगर्दी
सुबह शाम दोपहरी
आतंकबाद के सौदागर
बुनते चादर धुन्धरी
तंत्र मन्त्र हैरान
भय का तना वितान
नींद नहीं जब आए
कैसे मन मुस्काए?

कांक्रीट के जंगल बुनते
वनंउपवन की ठठरी
पञ्च तत्व हो गए विषैले
चिंतित दुनिया सबरी
तापमान की उछलकूद से
काँप उठा भूमंडल
प्रक्रतिनटी के तेवर तीखे
लिए विनाश कमंडल
वादों के दलदल में दुनिया
भटक गई है रस्ता
वैश्वीकरण बाजारबाद से
हुई उधारी खस्ता
बर्बादी आभूषण
भ्रष्टाचार-प्रदूषण
आतंकवाद बन छाए
कैसे मन मुस्काए ?
--
डॉ. जय जयराम आनंद

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा शब्द चित्र खींच दिया है इस गीत के माध्यम से...

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  2. आत्मीय!
    वन्दे मातरम.
    भोपाल प्रवास में आपसे भेंट के पल अब भी जीवंत हो उठते हैं. तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा कि भावना सहित अर्पित हिं कुछ पंक्तियाँ.
    जय-जय राम सभी मिल गाते.
    अवधपुरी के रस्ते.
    लेकिन आनंद तनिक न पाते
    दिखे काल-क्रम सस्ते...
    अपनी छाया भी तज जाती.
    किसको कौन पुकारे?
    बन्दूकों की दन-दन सुनकर
    कौन भजन उच्चारे?
    हूक रहे गीदड़-सियार मिल
    सुबह दुपहरी संझा.
    आशाओं की पतंग कटाकर
    लूटें सद्दी-मंझा.
    इंसां हैं शैतान
    कौन बने भगवान?
    मंदिर में राम न पाए
    कवि मानस कहाँ सुनाये?
    Acharya Sanjiv Salil

    http://divyanarmada.blogspot.com

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  3. अच्छा है और सही कहा है:

    आतंकबाद के सौदागर
    बुनते चादर धुन्धरी
    तंत्र मन्त्र हैरान
    भय का तना वितान
    नींद नहीं जब आए

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  4. समग्र धरती तथा इसमें बसने वाले प्राणी,सभी पर आतंक का साया है कहीं प्रदूशन का आतंक, कहीं शोषण का आतंक। किन्तु प्रश्न तो यह है कि दोषी कौन? बहुत अच्छी रचना है आपकी, धन्यवाद ।
    शशि पाधा

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