डरी-डरी चौपाल है,
काँपती है हर गली।
कैसी यह हवा चली ?
झर गई हैं कोंपलें
रिश्तों की बेल की,
रीती-रीती गागरें
रँगों के मेल की।
मन के किसी छोर में,
आस्था गई छली।
कैसी यह हवा चली?
किस दिशा से आ रही
बारूद की दग्ध गंध,
कब किसी ने तोड़ दी
प्रेम की पावन सौगंध?
भस्म सद्भाव है,
संवेदना घुली-गली।
कैसी यह हवा चली?
टूटे पुलिन तो क्या हुआ,
नदी क्यों बहना छोड़ दे?
तरंग विश्वास की,
दो किनारे जोड़ दे।
मरुथलों में ढूँढ़ लो,
हरीतिमा की नव कली!
भीनी-सी हवा चली!
--
शशि पाधा
बहुत अच्छा नव गीत।
जवाब देंहटाएंभाव तो सुन्दर हैं,
जवाब देंहटाएंमगर लय में कमी लग रही है!
मैंने गाने का बहुत प्रयास किया लेकिन गा नही पाया!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छा नव गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है ...
जवाब देंहटाएंटूटे पुलिन तो क्या हुआ,
जवाब देंहटाएंनदी क्यों बहना छोड़ दे?
तरंग विश्वास की,
दो किनारे जोड़ दे।
मरुथलों में ढूँढ़ लो,
हरीतिमा की नव कली!
भीनी-सी हवा चली!
सकारात्मक सन्देश देता अच्छा नवगीत....
भस्म सद्भाव है,
जवाब देंहटाएंसंवेदना घुली-गली। bimb achchha hai
aur
मरुथलों में ढूँढ़ लो,
हरीतिमा की नव कली!
भीनी-सी हवा चली!।aasha ka drishtikon poornta pradan karta hai
टूटे पुलिन तो क्या हुआए
जवाब देंहटाएंनदी क्यों बहना छोड़ देघ्
तरंग विश्वास कीए
दो किनारे जोड़ दे।
मरुथलों में ढूँढ़ लोए
हरीतिमा की नव कली!
भीनी.सी हवा चली!
सुंदर गीत शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई।
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा
अतिसुन्दर नवगीत,
जवाब देंहटाएंबधाई हो
शशि जी !
जवाब देंहटाएंअत्यंत हृदयस्पर्शी एवं भाव पूर्ण गीत
चुम्बकीय प्रतीक | संदेश निहित किए एक सुंदर सकारात्मक रचना |
सदैव की भाँति पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
शशि जी!
जवाब देंहटाएंएक सार्थक प्रयास... आपको अर्पित कुछ पंक्तियाँ:
लुट गयी है झोपडी
महलों को झेलती.
बेबस ऊषा-संध्या
चुप वसुधा ठेलती.
सदा ठीक महांबली
रवि-शशि का गलत- सही
कैसी यह हवा चली?
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
डरी-डरी चौपाल है,
जवाब देंहटाएंकाँपती है हर गली।
कैसी यह हवा चली?...
टूटे पुलिन तो क्या हुआ,
नदी क्यों बहना छोड़ दे?
तरंग विश्वास की,
दो किनारे जोड़ दे।
मरुथलों में ढूँढ़ लो,
हरीतिमा की नव कली!
भीनी-सी हवा चली!
...एक सुंदर सकारात्मक रचना! अतिसुन्दर!
इसी रचना की एक और कड़ी जो नियमानुसार मैं रचना के साथ नहीं भेज सकी थी सोचा आज आप सब के साथ बाँट लूँ --
जवाब देंहटाएंटूटी लाल चूड़ियाँ
आज किसी शहर में
गोद सूनी हो गई
हिंसा के गहन कहर में
और इक मासूम के
हाथ से चिता जली
कहाँ से यह हवा चली ?
आप सब गुणीजनों का हार्दिक धन्यवाद
सादर ,
शशि पाधा