सेवा का सुफल मिला
धीरे से
मन के इस मंदिर का ताल हिला
कमल खिला
पंकिल इस जीवन को
जीवन की सीवन को
अनबन के ताने को
मेहनत के बाने को
निरानंद विमल मिला
सुधियों ने
झीनी इस चादर को आन सिला
कमल खिला
अंतर में जाग हुई
आहट सी आज हुई
जन्मों के कर्म फले
क्यों कर संसार छले
चेतन का द्वार खुला
सुखमन ने
जीत लिया अनहद का राम किला
कमल खिला
--
पूर्णिमा वर्मन
धीरे से
मन के इस मंदिर का ताल हिला
कमल खिला
पंकिल इस जीवन को
जीवन की सीवन को
अनबन के ताने को
मेहनत के बाने को
निरानंद विमल मिला
सुधियों ने
झीनी इस चादर को आन सिला
कमल खिला
अंतर में जाग हुई
आहट सी आज हुई
जन्मों के कर्म फले
क्यों कर संसार छले
चेतन का द्वार खुला
सुखमन ने
जीत लिया अनहद का राम किला
कमल खिला
--
पूर्णिमा वर्मन
प्रवाह लाजवाब है, छंद नया है, सुन्दर रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर
शब्द चयन अति सुंदर
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंसचमुच नवगीत मिला
जवाब देंहटाएंसुन्दर सा
गीतों की शाला में लालकिला
कामल खिला
पूर्णिमाजी, वाह। अनजाने तो नहीं होगा यह। आप ने कबीर को और उनके योग को ध्यान से, गहराई से पढा है और उसे इस गीत में इस तरह बुना है कि आनन्द आ गया। झीनी-झीनी रे बीनी चदरिया। योग की आकांक्षा मे साधक गुरु की सेवा करता है, और सेवा का सुफल क्या है? मन के ताल मे कमल का खिलना। यही तो ज्ञान है। कबीर की इड़ा पिंगला आप के गीत में अनबन और मेहनत बनकर आये हैं। एक ताना है, एक बाना। झीनी चादर के भीतर निरानन्द विमल। हां, यह अमल सुखराशी, आत्म ही तो है। यह आत्म साक्षात्कार जन्मों के कर्म फलने पर ही मिलता है। फिर अंतर में जागरण का अनुभव होता है। चेतन का द्वार खुल जाता है। और योगी वहां पहुंच जाता है, जहां अनहद है, राम का किला है। यह भाव साम्य अद्भुत है। बधाई।
जवाब देंहटाएं"चेतन का द्वार खुला
जवाब देंहटाएंसुखमन ने
जीत लिया अनहद का रामकिला !!"
बहुत सुन्दर !....... पूरा नवगीत भरपूर लय के साथ उभरकर आया है....... कथ्य और शिल्प का पूरा निर्वाह हुआ है...... वधाई.....!!
नवगीतों को रचनाकार की आवाज में भी यदि दिया जाय तो नवगीत का आनन्द दूना हो सकता है......
डा० व्योम
अंतर में जाग हुई
जवाब देंहटाएंआहट सी आज हुई
जन्मों के कर्म फले
क्यों कर संसार छले
चेतन का द्वार खुला
सुखमन ने
जीत लिया अनहद का राम किला
कमल खिला
बहुत ही सुन्दर एवं सशक्त नवगीत, पूर्णिमा जी की इन पंक्तियो को बार बार पढ़ने का मन करता है।
बहुत बहुत बधाई,
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
पंकिल इस जीवन को
जवाब देंहटाएंजीवन की सीवन को
अनबन के ताने को
मेहनत के बाने को
निरानंद विमल मिला
सुधियों ने
झीनी इस चादर को आन सिला
कमल खिला
’सुधियों ने झीनी इस चादर को आन सिला’ कम से कम “ाब्दोें में जीवन की विसंगतियों को उकेड़ना, फिर उसे कमल की पंखुरियों से स्ंावारने की महारत अगर किसी लेखनी में है तो उसका नाम है
पूर्णिमा बर्मन। हो सकता है विनम्रता के आगार उस व्यक्तित्व को
मेरा यह विषेशण थोड़ा अतिषयोक्तिपूर्ण लगे, किन्तु उनकी वास्तविकता के आगे मेरा यह विषेशण भी बौना इसमें कोई “ाक नहीं।
धन्यवाद।
पूर्णिमा जी प्रणाम करता हूं आपको और आपकी ऊर्जा दोनों को. आप मुझ जैसे को भी इतना स्नेह करती हैं और मैं आपकी किसी कसौटी पर आज तक खरा नहीं उतरा।
जवाब देंहटाएंमैंने इस कार्यशाला में अब तक प्रकाशित गीतों को हल्का कहा हालांकि मेरा मन नहीं था कुछ भी कहने का क्योंकि मैं भी मानता हूं कि कुछ भी लिखना कितना टेढ़ा काम है. उस पर आसानी से नकारात्मक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. इसीलिए जब मन का गीत नहीं मिलता मैं मौन रहने की कोशिश करता हूं क्योंकि झूठी तारीफें करना मैं दुर्भाग्य से सीख नहीं पाया और इसका मुझे अफसोस भी है। खैर अब इस गीत के बारे में कुछ कहने का मन है इस लिए नहीं कि ये आपका गीत है। मेरे लिए ये बस गीत है इसलिए-
पहली बार इस कार्यशाला में एक सम्पूर्ण नवगीत पढ़ने को मिला है। पूरी तरह से सुघटित। मुखड़ें में जिस भाव भूमि की बात की गई है तो सारे सन्दर्भ उसी से सम्बन्धित और हरेक बन्द में इस बात का निर्वाह पूरी कुशलता से किया गया है एक-एक बन्द देखें-
पहले बन्द में जीवन की सीवन, अनबन का ताना, मेहनत का बाना, मिलान में सुधियों ने चादर को सिला वाह! दूसरे बन्द में अन्तर में आज, आहट सी आज मिलान में चेतन का द्वार खिला सुखमन ने जीत लिया अनहद का रामकिला वाह! वाह! विषय से इंच भर भटकाव नहीं सन्दर्भों का सटीक प्रयोग, भाषा का विषयानुकूल प्रयोग गीत तो सुन्दर बनना ही है।
कार्यशाला में इससे भी सुन्दर नवगीत आयें ऐसी कामना के साथ-
कई कार्यशालाओं के बाद पूर्णिमा जी के
जवाब देंहटाएंइस नवगीत का आना पाठशाला के लिए बहुत सुखद रहा!
एक पारंपरिक विषय को इतने सुन्दर नवगीत में ढाल कर आप ने एक राह दिखाई है.
जवाब देंहटाएंपंकिल इस जीवन को
जीवन की सीवन को
अनबन के ताने को
मेहनत के बाने को
निरानंद विमल मिला
सुधियों ने
झीनी इस चादर को आन सिला
कमल खिला
बहुत ही सुन्दर!
मंगलवार 27 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
अंतर में जाग हुई
जवाब देंहटाएंआहट सी आज हुई
जन्मों के कर्म फले
क्यों कर संसार छले
चेतन का द्वार खुला
सुखमन ने
जीत लिया अनहद का राम किला
कमल खिला
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पूर्णिमा वर्मन सहज गति, लय व प्रवाह के साथ नवीतनतम छंदो से लबालब इस गीत ने बसरबस उंगलियों को कीबोर्ड पर थिड़कने को विवष कर दिया। मुद्दतों बाद नवगीत का यह चमन ऐसी हरियाली से आबाद हुआ है। आखिरकार उन्होंने पाठको की सुध तो ली।
’सुधियों ने झीनी इस चादर को आन सिला’ कम से कम “ाब्दोें में जीवन की विसंगतियों को उकेड़ना, फिर उसे कमल पंखुरियों से स्ंावारने की महारत अगर किसी लेखनी में है तो उसका नाम है पूर्णिमा बर्मन। हो सकता है विनम्रता के आगार उस व्यक्तित्व को मेरा यह विषेशण थोड़ा अतिषयोक्तिपूर्ण लगे, किन्तु उनकी वास्तविकता के आगे मेरा यह विषेशण बौना है, इसमें कोई “ाक नहीं।
उम्मीद है, उनका यह नवगीत पाठको का समुचित मार्गदर्षन करेेगा।
धन्यवाद।
क्या कहूँ सचमुच 'निरानंद विमल मिला'। अनहद के राम किले में रमे बिना ऐसी रचना लिख पाना संभव नहीं। कहते हैं कंकरी फेंकने से ताल हिलता है पर सेवा के सुफल से ताल हिलने का यह नवल दृश्य अभिभूत कर गया।
जवाब देंहटाएंएक सुरूचिपूर्ण व प्रवाहपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबधाई।
स्वागत है. नवगीत में राष्ट्रीय भाव धारा का स्पर्श कथ्य को नवता का स्पर्श देता है, अच्छे प्रयास हेतु बधाई.
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