जागी वसुधा की तरुणाई
रवि ने जब-जब ली अँगड़ाई
उपवन हैं सब खिले-खिले
विहगों के दल हिले-मिले
मस्ती-भरी चली पुरवाई
कमल-कली हँसकर शरमाई
रवि ने जब-जब ... ...
लगे नलिन खिल-खिलकर गाए
तितली आ उस पर मँडराए
जीवन की शुभ रीत सिखाई
पंकज ने भी सुषमा पाई
रवि ने जब-जब ... ...
गुन-गुन करे कमलिनी कोमल
अलियों के दल गाएँ सोहल
हर तरु की पत्ती हर्षाई
झीलों में लालिमा नहाई
रवि ने जब-जब ... ...
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संगीता स्वरुप
रवि ने जब-जब ली अँगड़ाई
उपवन हैं सब खिले-खिले
विहगों के दल हिले-मिले
मस्ती-भरी चली पुरवाई
कमल-कली हँसकर शरमाई
रवि ने जब-जब ... ...
लगे नलिन खिल-खिलकर गाए
तितली आ उस पर मँडराए
जीवन की शुभ रीत सिखाई
पंकज ने भी सुषमा पाई
रवि ने जब-जब ... ...
गुन-गुन करे कमलिनी कोमल
अलियों के दल गाएँ सोहल
हर तरु की पत्ती हर्षाई
झीलों में लालिमा नहाई
रवि ने जब-जब ... ...
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संगीता स्वरुप
मनभावन रचना.
जवाब देंहटाएंलगे नलिन खिल-खिलकर गाए
जवाब देंहटाएंतितली आ उस पर मँडराए
जीवन की शुभ रीत सिखाई
पंकज ने भी सुषमा पाई
बहुत सुन्दर. प्रकृति मानों सजीव हो उठी
आपकी इस रचना में प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाप है।
जवाब देंहटाएंek khoobsurat drishy aankhon ke samne aa gaya ...
जवाब देंहटाएंइस गीत में वसुधा की तरुणाई का निदर्शन और लालिमा के झील में नहाने का बिम्ब नया लगता है। इसके लिये संगीता जी को बधाई। गीत में बाकी के अधिकांश चित्र पारम्परिक हैं फिर भी रिदम उन्हें इस तरह बांधे हुई है कि पढ़्ने में प्रवाह भंग नहीं होता।
जवाब देंहटाएंयह नवगीत ठीकठाक रहा। नव के नाम पर भला हो लालिमा को जो झील में नहाई और सुभाष जी को नज़र आई। चलिये हमारी भी बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं--
संगीता जी की मेहनत रंग लाई!
कमल-कली हँसकर शरमाई!!
गुन-गुन करे कमलिनी कोमल
जवाब देंहटाएंअलियों के दल गाएँ सोहल
हर तरु की पत्ती हर्षाई
झीलों में लालिमा नहाई
रवि ने जब-जब ... ...
सुन्दर परिदृश्य, सुुन्दर नवगीत के लिये संगीता जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा
संगीता स्वरूप के गीतों में पिछली कुछ कार्यशालाओं के बाद निरंतर सुधार दिखाई दे रहा है। आशा है यह पाठशाला कुछ नए नवगीतकारों को अवश्य जन्म देगी।
जवाब देंहटाएंशाबाश संगीता और बेहतर... और बेहतर... लगी रहना जब तक इस शिल्प से भावों की गंगा न बहने लगे और लोग वाह वाह न कह उठें। अनेक शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत प्रकृति को चित्रित करता हुआ
जवाब देंहटाएंअच्छा गीत है, बधाई।
जवाब देंहटाएंप्राकृति के सौंदर्य को कवि की अमुपम कल्पना नाएर रूप दे रही है ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...
pyaree kavita .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत....
जवाब देंहटाएंहिन्दी के प्यारे से लगने वाले शब्दों में आपने सुंदर रचना पिरोई है.
जवाब देंहटाएंप्रकृति को सजीव करती एक सुन्दर रचना के लिए बधाई ...
जवाब देंहटाएंगुन-गुन करे कमलिनी कोमल
अलियों के दल गाएँ सोहल
हर तरु की पत्ती हर्षाई
झीलों में लालिमा नहाई
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ!
बहुत खुबसूरत गीत..
जवाब देंहटाएंbahut sundar geet hai mumma..gane ka mann ho raha hai ..iski lay dekh kar..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी!
जवाब देंहटाएंसरस, लयबद्ध रचना, सटीक बिम्ब, यत्किंचित नवता का स्पर्श... आगे श्रेष्ठ रचनाओं की आशा जगाता है.
लयबद्ध सुन्दर रचना के लिए
जवाब देंहटाएंसंगीता जी!
बधाई ...
सभी पाठकों का बहुत बहुत शुक्रिया.....सच कहूँ तो मुझे नवगीत लिखना नहीं आता....आप सबका दिया हौसला ही शायद इस विधा को सिखा दे....
जवाब देंहटाएंपूर्णिमाजी जो और रावेंद्र रवि जी को विशेष धन्यवाद...
लगे नलिन खिल-खिलकर गाए
जवाब देंहटाएंतितली आ उस पर मँडराए
जीवन की शुभ रीत सिखाई
पंकज ने भी सुषमा पाई
रवि ने जब-जब ... ...
गुन-गुन करे कमलिनी कोमल
अलियों के दल गाएँ सोहल
हर तरु की पत्ती हर्षाई
झीलों में लालिमा नहाई
रवि ने जब-जब ... ...
रवि ने जब जब ली अंगराई
होठों पे स्वर लहरी छाई
सहज मनभावन प्रवाह के लिए
तहे दिल से आपको बधाई
संगीताजी आपको।
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