मेरे मन का दीपक तब हर
पथ पर दिये जलाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुसकाता है
ढेर लगे हैं लाशों के और
रक्तिम गृह-बाजार हो रहे
मन की मधुरिम घाटी में स्वर
पीड़ा के हर ओर बो रहे
ऐसे में जब कमल-सा खिलता
बापू कोई आता है
बिना ढाल-बंदूक-बमों के
शांति पाठ पढाता है
जाने क्या हो जाता ये जग
नेह से शीश झुकाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
भूल के ममता की हर लोरी
तोड़ के मन-तन की हर डोरी
देश की सीमाओं पर हँस-हँस
प्राणों की जब खेले होरी
वो सैनिक है कमल राष्ट्र का
नयन-नयन खिल आता है
भारत माँ के मुकुट को माणिक
एक नया मिल जाता है
मैं भारत माँ की बेटी मन
कमल-सा खिल-खिल आता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
बिन पिया के कैसी कल-कल
जल बिन जैसे मीन में हलचल
सुधियों के बदरा हौले से
सावन के ले आते दल-बल
ऐसे में जब कोई कागा
साजन की पाती लाता है
मन-पोखर के इन कमलों को
किरणों का हास सुहाता है
मुँदी-मुँदी-सी इन अँखियों में
स्वप्न नए बरसाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
--
गीता पंडित
पथ पर दिये जलाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुसकाता है
ढेर लगे हैं लाशों के और
रक्तिम गृह-बाजार हो रहे
मन की मधुरिम घाटी में स्वर
पीड़ा के हर ओर बो रहे
ऐसे में जब कमल-सा खिलता
बापू कोई आता है
बिना ढाल-बंदूक-बमों के
शांति पाठ पढाता है
जाने क्या हो जाता ये जग
नेह से शीश झुकाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
भूल के ममता की हर लोरी
तोड़ के मन-तन की हर डोरी
देश की सीमाओं पर हँस-हँस
प्राणों की जब खेले होरी
वो सैनिक है कमल राष्ट्र का
नयन-नयन खिल आता है
भारत माँ के मुकुट को माणिक
एक नया मिल जाता है
मैं भारत माँ की बेटी मन
कमल-सा खिल-खिल आता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
बिन पिया के कैसी कल-कल
जल बिन जैसे मीन में हलचल
सुधियों के बदरा हौले से
सावन के ले आते दल-बल
ऐसे में जब कोई कागा
साजन की पाती लाता है
मन-पोखर के इन कमलों को
किरणों का हास सुहाता है
मुँदी-मुँदी-सी इन अँखियों में
स्वप्न नए बरसाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
--
गीता पंडित
बहुत अच्छा नवगीत है!
जवाब देंहटाएंमेरे मन का दीपक तब हर
जवाब देंहटाएंपथ पर दिये जलाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुसकाता है
---दीपक स्वयं दीपक जलाता है?
--- हर बार गीत की टेक ’जग की...है” रिपीट हुई है, अतः यह गीत ही तो है,नवगीत कहां..
बहुत सुन्दर नव गीत....विशेषतः निम्न पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंऐसे में जब कमल-सा खिलता
बापू कोई आता है
बिना ढाल-बंदूक-बमों के
शांति पाठ पढाता है.............
भूल के ममता की हर लोरी
तोड़ के मन-तन की हर डोरी
देश की सीमाओं पर हँस-हँस
प्राणों की जब खेले होरी
वो सैनिक है कमल राष्ट्र का
नयन-नयन खिल आता है
भारत माँ के मुकुट को माणिक
एक नया मिल जाता है...
गीता जी के इस नवगीत में तीन महत्त्वपूर्ण परिस्थितियों और भावनाओं को कमल से जोड़ा गया है। 1. आतंकवाद पहले अंतरे में, 2.सीमा पर युद्ध दूसरे अंतरे में और 3. वियोग तीसरे अंतरे में। रचना आशावादी है। कुछ प्रयोग नए और आकर्षक हैं जैसे- मन की मधुरिम घाटी में स्वर पीड़ा को हर ओर बो रहे। मन दीपक प्रयोग भी अच्छा प्रतीत होता है। कुल मिलाकर प्रयास सराहनीय है। नवगीत में लिखते समय अक्सर स्थायी दोहराते नहीं हैं पर अगर दोहरा भी दिया तो नवगीत नवगीत ही रहता है।
जवाब देंहटाएंपथ पथ पर दिये जलाने का प्रयास करता यह कमल जब राष्ट्र-कमल के रूप में खिला , तो निश्चय ही एक अनूठी अनुभूति हुई निम्न पंक्तियाँ बहुत खूब बन पड़ी हैं—
जवाब देंहटाएंदेश की सीमाओं पर हँस-हँस
प्राणों की जब खेले होरी
वो सैनिक है कमल राष्ट्र का
नयन-नयन खिल आता है
एक सुंदर रचना पढ़कर हर्ष हुआ |
गीत अथवा नवगीत का विषय विशारदों के लिए |
प्रवीण
पथ पथ पर दिये जलाने का प्रयास करता यह कमल जब राष्ट्र-कमल के रूप में खिला , तो निश्चय ही एक अनूठी अनुभूति हुई निम्न पंक्तियाँ बहुत खूब बन पड़ी हैं—
जवाब देंहटाएंदेश की सीमाओं पर हँस-हँस
प्राणों की जब खेले होरी
वो सैनिक है कमल राष्ट्र का
नयन-नयन खिल आता है
एक सुंदर रचना पढ़कर हर्ष हुआ |
गीत अथवा नवगीत का विषय विशारदों के लिए |
प्रवीण
नवगीत के बारे में बहुत जानकारी नहीं है...बस मुझे आपकी यह रचना बहुत पसंद आई....
जवाब देंहटाएंमयंक जी , श्याम जी ,
जवाब देंहटाएंराणा प्रताप जी ,मुक्ता जी
प्रवीन जी , संगीता जी........
आप सभी का
स्नेह इस नवगीत को मिला....
मैं सभी की
मन से आभारी हूँ.....आगे भी इसी नेह की कामना
के साथ....पुनः आभार तथा
शुभ-कामनाएँ
स-स्नेह
गीता
सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा
गीता जी ने इस नवगीत में जिस तरह समसामयिक मुद्दों को छूने की कोशिश की है, वह एक सराहनीय प्रयास है। गीत की परम्परा से हटकर अगर कुछ कहने की कोशिश की जाती है तो वह नव है। गीत परम्परा से ही कोमल भावों की अभिव्यक्ति करते रहे है, पर आज के समय में, जब लोगों के घर जल रहे हों, भूख से आदमी मर रहा हो, प्यार, सौन्दर्य और मांसलता के गीत गाने का कोई अर्थ नहीं रहा। गीता यह समझती हैं, उन्हें मेरी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंविमल कुमार जी
जवाब देंहटाएंसुभाष जी आभार ।
प्रेम मन का वो गीत है जो
अंतस में उपजता है
अंतर सौंदर्य को देखता है,
अंतर में गुनता है
और राग बनकर अंतर से बाहर तक गुनगुनाता है ।
देह से बहुत ऊपर उथकर |
प्रेम अंतस की प्र्योगशाला में संवेदनशीलता की वो प्रकिया है जो
मन की आभासित दशा को पराकाष्ठा तक पँहुचा देती है
और मन दूसरे की पीङा को आत्मसात कर उसके अश्रु
अपने नयनों में पाता है ।
मैं हूँ मीरा प्रेम दिवानी
पीड़ा से कब रही अजानी
हर एक अश्रू मेरे मन पर
लिख जाता है अमिट कहानी
जब छलके गीतों में आकर
करता तब अपनी मनमानी
भूल सकेगा जग ना मुझको
मैं प्रियतम की अजब निशानी
गीता
बिन पिया के कैसी कल-कल
जवाब देंहटाएंजल बिन जैसे मीन में हलचल
सुधियों के बदरा हौले से
सावन के ले आते दल-बल
ऐसे में जब कोई कागा
साजन की पाती लाता है
मन-पोखर के इन कमलों को
किरणों का हास सुहाता है
मुँदी-मुँदी-सी इन अँखियों में
स्वप्न नए बरसाता है
जग की ताल-तलैया खिलता
देश-कमल मुस्काता है
--
गीताजी आपकी इन पंक्तियों ने मनप्राणों
को झंकृत कर दिया । सचमुच यह गीत,
भावनाआंे को उसकेे लक्ष्य तक पहुंचाने में सफल है
और सफलता के लिए आप बेषक बधाई के पात्र हैं
बधाई गीता जी, आप निरंतर कार्यशालाओं में भाग ले रही हैं और नये प्रयोग कर रही हैं आपको पढ़ना और रचनाओं में होने वाले विकास को देखना अच्छा लग रहा है।
जवाब देंहटाएंसुमधुर गीति रचना, कथ्य में नवता है पर भाषा में कुछ भदेसी स्पर्श हो तो सोने में सुहागा होगा. नवगीत की पहचान शिल्प, कथ्य और शब्द तीनों में लीक से हटकर होने से हो सके तो त्रिवेणी संगम स्नान का आनंद देता है.
जवाब देंहटाएंAcharya Sanjiv Salil